विशेषज्ञ सलाहकार विवरण

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द्वारा प्रकाशित किया गया था GKMS,BIHAR AGRICULTURAL UNIVERSITY
पंजाब
2020-09-22 11:45:47

Advisory from IMD Bihar

आगात बोयी गई धान की फसल में गंधी बग कीट के षिषु एवं पौढ़ दोनों शुरुआत में कोमल पत्तियों एवं तनों का रस चुसकर पौधों को कमज़ोर बना देती है। बालियाँ निकलने तथा दुध भरने की अवस्था में यह दाने को चुसकर खोखला एवं हल्की बना देती है, जिससे उपज काफी प्रभावित होता है। इस समय यह पौधे को अधिक क्षति पहुंचाती है। इसके शरीर से विशेष प्रकार का बदबु निकलती है, जिसकी वजह से इसे खेतों में आसानी से पहचाना जा सकता है। इसके नियंत्रण के लिए फॉलीडाल 10 प्रतिशत धूल का प्रति हेक्टेयर 10 से 15 किलोग्राम की दर से भूरकाव 8 बजे सुबह से पहले अथवा 5 बजे शाम के बाद बालियों पर करें। धान की फसल में ब्राउन प्लांट होपर कीट की निगराणी करे। यह मच्छरनुमा कीट पौधा की पत्तियों एवं तने से रस चुसता है जिससे पत्तिया सूखी हुई तथा भूरे रंग की हो जाती है।प्रारंभ में यह एक स्थान में रहते है जो बाद में सारे खेत में फैल जाते है एवं कभी-कभी यह सारी फसल को नष्ट कर देती है। यदि प्रकोप दिखाई दें तो इमिडाक्लोरोप्रिड 0.3 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी या फेनोबुकार्ब 50 इ सी 1.0 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी की दर से घोल कर छिड़काव करें।

किसानों को धान की फसल में 30 किलोग्राम नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर लगाने की सलाह दी जाती है।

धान- धान की फसल जो दुग्धाअवस्था में आ गयी हो उसमें गंधी बग कीट की निगरानी करें। इस कीट के षिषु एवं पौढ़ दोनों प्रारंभ में धान की कोमल पत्तियों तथा तनों का रस चूसते हैं जिससे पत्तियाँ पीली होकर कमज़ोर हो जाती हैं तथा पौधों की बढ़वार बाधित हो जाती हैं और वो छोटे रह जाते हैं। जब पौधें में बाली निकलती हैं तो यह बालियों का रस चूसना प्रारंभ कर देती हैं जिससे दाने खोखले एवं हल्के हो जाते हैं तथा छिलका का रंग सफेद हो जाता हैं। धान की दुग्धाअवस्था में यह पौधें को अधिक क्षति पहुंचाती हैं जिससे उपज में काफी कमी होती हैं। इसके शरीर से विशेष प्रकार का बदबु निकलती हैं, जिसकी वजह से इसे खेतों में आसानी से पहचाना जा सकता हैं। इसकी संख्या जब अधिक हो जाती हैं तो एक-एक बाल पर कई कीट बैठे मिलते हैं। इसके नियंत्रण के लिए फॉलीडाल 10 प्रतिशत धूल का प्रति हेक्टेयर 10  से 15  किलोग्राम की दर से भूरकाव 8 वजे सुबह से पहले अथवा 5 बजे शाम के बाद बालियों पर करें। खेतों के आस पास के मेड़ों पर दवा का भूरकाव अवष्य करें। किसानों को धान की फसल में 30 किलोग्राम नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर लगाने की सलाह दी जाती हैं , जो कि टेलेररिंग अवस्था में पहुँचती हैं और 40 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर नाइट्रोजन देर से बोई जाने वाली धान की फसल में लागू होती हैं, जो टेलरिंग की अवस्था में पहुँचती हैं।

अरहर की फसल- किसानों को सलाह दी जाती हैं कि वो जल्द से जल्द सितंबर अरहर कि फसल की जल्दी बुआई पूरी करें। पूसा-9 और सारद किस्मों की सिफारिश की जाती हैं।

हरे चने- हरे चने और काले चने में पीला शिरा मोजैक वायरस (YMV) रोग के लिए निगरानी की सलाह दी जाती हैं। यह रोग सफेद मक्खी के कारण होता हैं। यदि संक्रमण पाया जाता हैं , तो फसल की सुरक्षा के लिए इमिडाक्लोरोप्रिड @ 0.3 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी या ट्राईजोफोस 40 इ सी @ 1 मिलीलीटर प्रति पानी का छिड़काव करने का सुझाव दिया जाता हैं। प्रभावित पौधों को स्प्रे से पहले उखाड़कर नष्ट कर देना हैं।

फूलगोभी- फूलगोभी की पूसा अगहनी, पूसी, पटना मेन, पूसा सिन्थेटिक-1, पूसा शुभ्रा, पूसा शरद, पूसा मेधना, काषी कुंवाँरी एवं अर्ली स्नोवॉल अदि किस्मों की रोपाई करे। फूलगोभी की पिछात किस्मों जैसे माघी, स्नोकिंग, पूसा स्नोकिंग-1, पूसा-2, पूसा स्नोवॉल-16,पूसा स्नोवॉल के-1 की नर्सरी में बुआई के लिए खेत की तैयारी शुरू करें। पत्तागोभी की प्राइड ऑफ इंडिया, गोल्डन एकर, पूसा मुक्ता, पूसा अगेती एवं अर्ली ड्रम हेड किस्मों की बुआई नर्सरी में करें।