द्वारा प्रकाशित किया गया था पंजाब एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी, लुधियाना
पंजाब
2022-07-15 13:19:00
इस रोग से नर्सरी में पनीरी मुरझा जाती है और तना और जड़ें गल जाती हैं। यह फंगस मिट्टी के अंदर-अंदर ही खुराकी जड़ को नष्ट कर देता है। यह रोग भारी और रेतीली मिट्टी (जहां पानी की सतह करीब हो) में अधिक नुकसान पहुंचाता है। इस रोग का पहला लक्षण तने के आधार के पास गोंद का निकलना है। जैसे-जैसे घाव बढ़ते हैं, लंबे पेड़ में दरारें विकसित हो जाती हैं, पत्तियां पीली हो जाती हैं और कवक तने के चारों तरफ घूमता है, जिससे पौधे की वृद्धि रुक जाती है और पौधे मर जाते हैं।
रोग की रोकथाम: रोपण के लिए रोगमुक्त नर्सरी से पौध प्राप्त करें। रोपण करते समय उसकी पियोंदी आँख को ज़मीन से 9 इंच ऊपर रखें। खुला पानी लगाने से बचें। अच्छी जल निकासी प्रदान करें। बगीचे में काम करते समय तनों और जड़ों को चोट से बचाएं।
तने के आसपास मिट्टी न चढ़ाएं। पौधे के उपचार के लिए रोगग्रस्त भाग के साथ-साथ स्वस्थ भाग की थोड़ी मात्रा को खुरच दें। रोगग्रस्त सतह को इकट्ठा करके नष्ट कर दें ताकि कवक मिट्टी में न फैले। 2 ग्राम कारजैट एम 8 को 100 मिलीलीटर अलसी के तेल में घोलकर साल में दो बार (फरवरी-मार्च और जुलाई-अगस्त) घावों पर लगाएं। बाद में इसी 25 ग्राम दवाई को 10 लीटर पानी में घोलकर प्रति पौधे के हिसाब से तने के चारों तरफ वाली मिट्टी को अच्छी तरह मिला लें। इसके अलावा पौधे की जड़ और छतरी के नीचे सोडियम हाइपोक्लोराइट 5% (50 मिलीलीटर 10 लीटर पानी में घोलकर) के दो स्प्रे (फरवरी-मार्च और जुलाई-अगस्त) से इस बीमारी की रोकथाम की जा सकती है।