
ग्रामीण कृषि मौसम सेवा बुलेटिन, जनपद-उधम सिंह नगर

मौसम पूर्वानुमानः
भारत सरकार के पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय द्वारा वित्त पोषित एवं भारत मौसम विज्ञान विभाग द्वारा संचालित ग्रामीण कृषि मौसम सेवा परियोजना के अन्तगर्त राष्ट्रीय मौसम पूर्वानुमान केन्द्र, भारत मौसम विज्ञान विभाग, मौसम भवन, नई दिल्ली द्वारा पूर्वानुमानित तथा मौसम केन्द्र, देहरादून द्वारा संसोधित पूवा र्नुमानित मध्यम अवधि मौसम आंकड़ों के आधार पर कृषि मौसम विज्ञान विभाग में स्थित कृषि मौसम विज्ञान प्रक्षेत्र इकाई (AMFU) गो0 ब0 पन्त कृषि एवं प्रौद्यो0 विश्वविद्यालय, पन्तनगर द्वारा उधम सिंह नगर जिले के पर्वतीय क्षेत्रों में अगले पाँच दिनों में निम्न मौसम रहने की संभावना व्यक्त की जाती है:-
पूर्वानुमानित मौसम तत्व |
मौसम पूर्वानुमान - उधम सिंह नगर |
||||
02/02/2019 |
03/02/2019 |
04/02/2019 |
05/02/2019 |
06/02/2019 |
|
वर्षा (मिमी0) |
0 |
0 |
0 |
0 |
0 |
बादल |
घने बादल |
घने बादल |
आंशिक बादल |
घने बादल |
बादल |
अधिक्तर तापमान (डिग्री से.ग्रे) |
22 |
23 |
23 |
24 |
24 |
न्यूनतम तापमान (डिग्री से.ग्रे) |
4 |
3 |
4 |
5 |
6 |
अधिक्तम सापेक्षित आद्रता (प्रतिशत) |
85 |
85 |
85 |
85 |
85 |
न्यूनतम सापेक्षित |
45 |
45 |
45 |
45 |
45 |
हवा की औसत गति(कि0मी0 |
008 |
006 |
008 |
008 |
008 |
हवा की दिशा |
पूर्व-दक्षिण-पूर्व |
उत्तर-पूर्व |
उत्तर-उत्तर-पूर्व |
उत्तर-पश्चिम |
उत्तर-पश्चिम |
ऐसे अनुमानित मौसम में गो0ब0 पन्त कृषि एवं प्रौद्यो0 विश्वविद्यालय, पन्तनगर के वैज्ञानिकों द्वारा इस क्षेत्र के कृषक भाइयों को सलाह दी जाती है कि इस मौसम में विभिन्न फसलों के लिए खेतों में निम्नानुसार कार्यक्रम अपनायें।
कृषि मौसम परामर्ष
फसल प्रबन्धः
- बिलम्ब से बोई गेहॅू की फसल जिसे दिसम्बर के दूसरे पखवाड़े में लगाया गया है, में चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों के नियंत्रण हेतु बुवाई के 40-45 दिन बाद 2, 4-डी की 80 प्रतिशत शुद्धता वाली दवा के 625 ग्राम/हेक्टेयर मात्रा को 800 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव फ्लैट फैन नाजल लगग स्प्रेयर द्वारा करें। अगर यूरिया की टापड्रेसिंग नहीं गई हो तो इसे खरपतवारनाशी के छिड़काव से 2-3 दिन पहले की पूरा कर लेना चाहिए।
- गेहॅू मे पीली गेरूई के प्रकोप में पत्तियाँ पीली पड़ जाती है। खेत में पत्तियों को छूने से पीला रंग हाथ में लगे हो तो रोग के लक्षण दिखाई देते ही प्रोपीकोनाजाल 25 ई0 जो टिल्ट यादि के व्यवसायिक नाम से बाजार में उपलब्ध है के 500 मि0ली0 हैक्टर की दर से 500 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।
- मेंथा की बुवाई 15-20 फरवरी तक कर सकते हैं। उन्नतशील किस्मों - कोशी, सक्षम, कुशल, हिमालय, सरयू एवं संगंध पौध संस्थान के पन्तनगर प्रक्षेत्र से प्राप्त कर सकते हैं। 400-500 कि0ग्रा0 जड़/हैक्टर की आवश्यकता होती है। बुवाई से पूर्व जड़ों को 5-7 से0मी0 लम्बे टुकड़ों जिसमें 3-4 गांठे हो में काटते हैं। इसके उपरान्त 2 ग्राम कार्बेन्डाजिम प्रति लीटर पानी में घोल कर इसमें 5 मिनट तक डुबोकर शोधित करते हैं। इसके बाद जड़ टुकड़ो के घोल से निकाल कर आधे घण्टे तक छायादार स्थान में सुखा कर बुवाई करते हैं।
- नौलख गन्ना की कटाई 15 फरवरी से पहले न करें।
- चना एवं मसूर में फलीवेदक कीट का प्रकोप होने पर फूल आते समय मैलाथियान 50 ई0सी0 के 2.0 लीटर अथवा क्यूनालफास 25 ई0सी0 1.5 लीटर/है0 की दर से 500-600 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।
- चना व मसूर की फसल मे फूल बनते समय 2 प्रतिशत यूरिया के घोल का पर्णीय छिड़काव करे। प्रथम छिड़काव के 10-15 दिन बाद दूसरा छिड़काव करे। प्रति हैक्टर 600-700 लीटर पानी का प्रयोग करे।
- गेहूँ की फसल मे निचली पत्तियो पर पीला रतवा रोग का प्रकोप दिखाई पड़ने पर प्रोपीकोनाजोल 25 ई0 सी0 का 1 लीटर/हैक्टेयर की दर से छिड़काव करें।
उद्यान प्रबन्धः
- मटर की पत्तियो पर पीले चकत्ते दिखाई देने पर प्रोपीकोनाजोल 1 मिली0/ली0 की दर से घोल बनाकर छिड़काव करे।
- मटर में पौधों की सूखने एवं निचली पत्तियां पीले पड़ने की अवस्था में कार्बन्डाजिम 1.0 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर जड़ों की सिंचाई करें ।
- प्याज और लहसुन की पत्तियाँ उपर से पीली पड़ने पर प्रोपीकोनाजोल या टेबूकोनाजोल का 1 मिली0 प्रति ली0 पानी की दर से घोल बनाकर छिड़काव करे।
- आलू एवं टमाटर की फसल में पछेती झुलसा रोग के प्रकोप से बचाव हेतु मैनकोजेब 2.5 ग्रा0/ली0 या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 3.0 ग्रा0 प्रति ली0 पानी की दर से घोल बनाकर छिडकाव करे।
- टमाटर में पीलापन लिए हुए भूरे धब्बे दिखाई देने पर मैन्कोजेब 2.5 से 3.0 ग्राम प्रति लीटर की दर से घोल बनाकर छिड़काव करें।
- गोभी वर्गीय सब्जियो में पत्ती धब्बा रोग के नियत्रंण हेतु मैन्कोजेब का 2.5 ग्रा0 प्रति ली0 पानी की दर से घोल बनाकर छिड़काव करे।
- पातगोभी एवं फूलगोभी में निराई गुड़ाई करे यूरिया की टॉप ड्रेसिंग व खेत में नमी बनाकर रखें।
- फल पेड़ों में भुनगा कीट के नियंत्रण हेतु ऐमिडाक्लोरपिड 17.8 एस0एल0 का 0.03 मि0ली0/लीटर की दर से प्रथम छिड़काव पुष्पगुच्छ की शुरूआत में करें। फल की मटर अवस्था पर थियामैथौक्जैम से दूसरा छिड़काव 0.32 ग्राम/लीटर और तीसरा छिड़काव केवल आवश्यकता पड़ने पर दूसरे छिड़काव के 21 दिन बाद एन0एस0के0ई0 5 परतिशत का 5 मि0ली0/लीटर की दर से करें।
- नये बागों की सिंचाई करे।
- बड़े फलदार आम तथा लीची के पौधों में सिंचाई न करें। क्योंकि इससे बौर निकलने में बाधा उत्पन्न होती है। परन्तु नये पौधे जो अभी फलत में नहीं आये है उसमें सिंचाई की जा सकती है।
- करी कीट के नियंत्रण हेतु पालीथीन स्ट्रिप का प्रयोग करें ताकि इन कीटों को पौधों के ऊपर चढ़ने से रोका जा सके। इसके लिए 25 से 30 सेमी चौड़ी पालीथीन लेकर पौधों के मुख्य तना पर जमीन की सतह से लगभग 30-40 सेमी ऊपर पौधों के तनों के चारों ओर से लपेट दें। लपेटने के उपरान्त पालीथीन की निचली तथा ऊपरी सतह पर ग्रीस या खराब तेल का प्रयोग करते हुए पालीथीन के दोनों शिरों को रस्सी से बांध दें।
पशुपालन प्रबन्धः
- मुर्गियों के आवास के तापमान का अनुरक्षण करें। सरद ऋतु मे बिछावन की मोटाई बढा दे जिससे कुक्कुट को पयार्प्त गर्मी मिलती रहे।
- सरदी से बचाव के लिए पशुघर का प्रबंध ठीक से करें। पशुओं को ठंड से बचाव हेतु सूखी घास, पुवाल जो जानवरों के खाने के उपयोग में नहीं आती को बिछावन के रूप में प्रयोग करें। खिड़की दरवाजों पर त्रिपाल लगा दें ताकि ठंडी हवा प्रवेश न करें।
- पशुओं के बैठने का स्थान समतल होता चाहिए जिससे उनकी उत्पादन क्षमता प्रभावित न हो तथा इस समय नवजात पशुओं के रख-रखाव पर विशेष ध्यान दें।
- ठंड में पशुओं के आहार में तेल और गुड़ की मात्रा बढ़ा दें। अधिक ठंड की स्थिति में पशुओं को अजवाइन और गुड़ दें।
- जानवरों में प्रसव दर को ध्यान में रखते हुए पशुशाला को अच्छी तरह साफ-सुथरा, सूखा, रोशनीदार, हवादार होना चाहिए। इसके लिए नालियों में तथा आस-पास सूखे चूने का छिड़काव करें तथा जानवर के नीचे सूखा चारा बिछा दें। प्रसव के उपरांत स्वच्छता का पूरा ध्यान रखें। ठंड का समय आ गया है अतः ठंड से बचाव हेतु पशुपालक इसकी ओर ध्यान दें।
- भैंस के 1-4 माह के नवजात बच्चों की आहार नलिका में टाक्सोकैराविटूलूरम (केचुआँ/पटेरा) नामक परजीवी पाए जाते है। इसे पटेरा रोग भी कहते है। समय से उपचार न होने की दशा में लगभग 50 प्रतिशत से अधिक नवजात की मृत्यु इसी परजीवी के कारण होती है। इस रोग की पहचान - नवजात को बदबूदार दस्त होना और इसका रंग काली मिट्टी के समान होता है, कब्ज होना, पुनः बदबूदार दस्त होना व इसके साथ केचुआँ या पटेरा का होना, नवजात द्वारा मिट्टी खाना आदि लक्षणों के आधार पर इस रोग पहचान कर सकते है। रोग की पहचान होते ही पीपराजीन नामक औषधी का प्रयोग कर सकते हैं।
- पटेरा रोग से बचाव हेतु प्रसव होने के 10 दिन पष्चात् 10-15सी0सी0 नीम का तेल नवजात को पिला दें। तदुपरांत 10 दिन पश्चात् पुनः 10-15 सी0सी0 नीम का तेल पिला दें। बथुए का तेल इसका रामबाण इलाज है।
डा0 आर0 के0 सिंह
प्राध्यापक एवं प्रिंसिपल नोडल अधिकारी
ग्रामीण कृषि मौसम सेवा,
गो.ब. पन्त कृषि एवं प्रौद्यो. विष्वविद्यालय, पन्तनगर
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