1.भेड़ के बच्चों में एंटरीटाॅक्सिमिया और भेड़ पोक्स का टीकाकरण करवाए।
2.इस गर्मी के दिनों मंे पशुओं के लिए पानी की उचित व्यवस्था करें। पीने के पात्र को साफ रखना चाहिए और दिन के समय पशुओ को कम से कम चार बार पानी जरूय पिलाये।
3.पशुओं में मेस्टाईटिस के लक्षण दिखाई देने पर इसका तुरंत इलाज करं।े
4.इस माह तापमान अधिक होने के कारण, पशुओं मंे निर्जलीकरण, शरीर में लवण व भूख मंे कमी तथा उत्पादन आदि में गिरावट की समस्या हो जाती है। इसलिए पशुओं को उच्च तापमान से बचान े के लिए उचित उपाय करें।
5.मुर्गियों के अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए उनके आवास के तापमान का विशेष ध्यान रखें, उन्हें खाने के लिए सन्तुलित आहार दें तथा साफ-सुथरा एवं ताजा जल उपलब्ध करायें।
6.पशुओं के बैठने का स्थान समतल होता चाहिए ताकि उनकी उत्पादन क्षमता प्रभावित न हो तथा इस समय नवजात पशुओं के रख-रखाव पर विशेष ध्यान दें। बैठने का स्थान समतल ना होने पर पशु खड़ा रहेगा जिससे वह तनाव में आ सकता है और उत्पादन क्षमता प्रभावित होगी।
7.जानवरों में प्रसव दर को ध्यान में रखते हुए पशुशाला को अच्छी तरह साफ-सुथरा, सूखा, रोशनीदार, हवादार होना चाहिए। इसके लिए नालियों मंे तथा आस-पास सूखे चनूे का छिड़काव करें तथा जानवर के बैठने के स्थान पर सूखा चारा अथवा सूखी घास बिछा दें। प्रसव के उपरांत पशु पालक स्वच्छता की ओर विशेष ध्यान दें।
8.भैंस के 1-4 माह के नवजात बच्चों की आहार नलिका में टाक्सोकैराविटूलरू म (केचुआँ/पटेरा) नामक परजीवी पाए जाते है। इसे पटेरा रोग भी कहते है। समय से उपचार न होने की दशा में लगभग 50 प्रतिशत से अधिक नवजात की मृत्यु इसी परजीवी के कारण होती है। इस रोग की पहचान - नवजात को बदबूदार दस्त होना और इसका रंग काली मिट्टी के समान होना, कब्ज होना, पुनः बदबूदार दस्त होना व इसके साथ केचुआँ या पटेरो का गोबर के साथ आना, नवजात द्वारा मिट ्टी खाना आदि लक्षणों के आधार पर इस रोग की पहचान की जा सकती है। रोग की पहचान होते ही पीपराजीन नामक औषधी का प्रयोग कर सकते हैं तथा निकटतम पशु चिकित्सक की सलाह के अन ुसार तत्काल उपचार करायें।
9.पटेरा रोग से बचाव हेतु प्रसव होने के 10 दिन पश्चात् 10-15 सी0सी0 नीम का तले नवजात को पिला दें। तदुपरांत 10 दिन पश्चात् पुनः 10-15 सी0सी0 नीम का तेल पिलाना लाभकारी होता है। बथुए का तले इसका रामबाण इलाज है।