पशुओं में मच्छरों, मक्खियों टिक्स आदि से होने वाली बीमारी के लिए सावधानी बरतें
उधम सिंह नगर, उत्तराखंड
1.गर्भवती पशुओ मेंप्यूरपरल बुखार को रोकने के लिए, प्रतिदिन 50-60 ग्राम खनिज मिश्रण को पशुओं की प्रतिरक्षा को बढ़ाने हेतु आहार के रूप में दें।
2.इस महीने में पानी से होने वाली बीमारी की रोकथाम के उपाय करें।
3.पशुओं में मच्छरों, मक्खियों टिक्स आदि से होने वाली बीमारी के लिए सावधानी बरतें।
4.इस समय पशुओं मंे बाॅझपन और जोहन की बीमारी होने की अधिक संम्भावना है। इस स्थिति में पशुओ का तत्काल इलाज करवाए।
5.पशुओं के बैठने का स्थान समतल होता चाहिए जिससे उनकी उत्पादन क्षमता प्रभावित न हो तथा इस समय नवजात पशुओं के रख-रखाव पर विशेष ध्यान दें।
6.जानवरों में प्रसव दर को ध्यान में रखते हुए पशुशाला को अच्छी तरह साफ-सुथरा, सूखा, रोशनीदार, हवादार होना चाहिए। इसके लिए नालियों में तथा आस-पास सूखे चनूे का छिड़काव करंे तथा जानवर के नीचे सूखा चारा बिछा दें। प्रसव के उपरांत स्वच्छता का पूरा ध्यान रखें। ठंड का समय आ गया है अतः ठंड से बचाव हेतु पशुपालक इसकी ओर ध्यान दें।
7.भैंस के 1-4 माह के नवजात बच्चों की आहार नलिका मं े टाक्सोकैराविटूलरू म (केचुआँ/पटेरा) नामक परजीवी पाए जाते है। इसे पटेरा रोग भी कहते है। समय से उपचार न होने की दशा में लगभग 50 प्रतिशत से अधिक नवजात की मृत्यु इसी परजीवी के कारण होती है। इस रोग की पहचान - नवजात को बदबूदार दस्त होना और इसका रंग काली मिट्टी के समान होता है, कब्ज होना, पुनः बदबूदार दस्त होना व इसके साथ केचुआँ या पटेरा का होना, नवजात द्वारा मिट्टी खाना आदि लक्षणों के आधार पर इस रोग की पहचान कर सकते है। रोग की पहचान होते ही पीपराजीन नामक औषधी का प्रयोग कर सकते हैं।
8.पटेरा रोग से बचाव हेतु प्रसव होने के 10 दिन पश्चात् 10-15सी0सी0 नीम का तेल नवजात को पिला दें। तदुपरांत 10 दिन पश्चात् पुनः 10-15 सी0सी0 नीम का तेल पिला दें। बथुए का तेल इसका रामबाण इलाज है।