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Posted by GB Pant University
Punjab
2018-02-28 11:16:32

नवजात बछड़ों को कृमिनाशक दवा अवशय दें और ऐसे करें अन्य पशुओं की देखभाल 

नैनीताल

1.सभी नवजात पशुओं को कृमिनाशक दवा अवश्य दें।

2.सभी भेड़ व बकरियों के बच्चों को पी0पी0आर0 का टीकाकरण करवाए।

3.डेयरी मवेशियों मे ं थन ेला रोग से बचाव के लिए, थन से द ूध को प ूरी तरह निकाल द े तद ्पश्चात ् थन को पानी से अच्छी तरह धों ले ं। 

4.चारा फसलों, एल्फाल्फा और बरसीम क्लोवर साथ ही साथ ओट की क्रमशः प्रत्येक 12-14 और 18-20 दिन पर सिंचाइ्र करें।

5.बरसीम क्लोवर और एल्फाल्फा को सुखाकर सूखे चार े के रूप में भण्डारण कर ें या सिलेज में पविर्ति त करके जब हरा चारा कम हो या उपलब्ध ना हो तब प्रयोग करं।े

6.पशुओं के बैठन े का स्थान समतल होता चाहिए जिससे उनकी उत्पादन क्षमता प्रभावित न हो तथा इस समय नवजात पशुओं के रख-रखाव पर विशेष ध्यान द ें।

7.जानवरों में प्रसव दर को ध्यान में रखत े हुए पशुशाला को अच्छी तरह साफ-सुथरा, सूखा, रोशनीदार, हवादार होना चाहिए। इसके लिए नालियों में तथा आस-पास सूखे चनू े का छिड़काव करं े तथा जानवर के नीचे सूखा चारा बिछा द ें। प्रसव के उपरांत स्वच्छता का पूरा ध्यान रखें। ठ ंड का समय आ गया है अतः ठ ंड से बचाव हेत ु पशुपालक इसकी ओर ध्यान दें।

8.भैंस के 1-4 माह के नवजात बच्चों की आहार नलिका में टाक्सोकैराविटूलरू म (केचुआँ/पटेरा) नामक परजीवी पाए जाते है। इसे पट ेरा रोग भी कहत े है। समय से उपचार न होन े की दशा में लगभग 50 प्रतिशत से अधिक नवजात की मृत्यु इसी परजीवी के कारण होती है। इस रोग की पहचान - नवजात को बदबूदार दस्त होना और इसका रंग काली मिट ्टी के समान होता है, कब्ज होना, पुनः बदबूदार दस्त होना व इसके साथ केचुआँ या पट ेरा का होना, नवजात द्वारा मिट्टी खाना आदि लक्षणो ं के आधार पर इस रोग की पहचान कर सकते है। रोग की पहचान होत े ही पीपराजीन नामक औषधी का प्रयोग कर सकते हैं।

9.पट ेरा रोग से बचाव हेतु प्रसव होन े के 10 दिन पश्चात ् 10-15सी0सी0 नीम का तेल नवजात को पिला द ें। तदुपरांत 10 दिन पश्चात ् पुनः 10-15 सी0सी0 नीम का तेल पिला द ें। बथुए का त ेल इसका रामबाण इलाज है।