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Posted by GB Pant University
Punjab
2018-02-21 11:49:58

विभिन्न फसलों में रोग प्रबंधन और पशुओं की देखभाल के लिए सलाह 

नैनीताल, 20 फरवरी 2018 

फसल की देखभाल

1.ेहूँ की फसल मे निचली पत्तियो पर पीले र ंग के फफोले दिखाई द ेने पर या पत्तियो पर भूर े धब्बे या नोक से पत्तियो के पीले पड़ कर मरु झाने पर प्रोपीकोनाजोल 25 ई0 सी0 का 1 लीटर/हैक्टेयर की दर से छिड़काव करंे।

2.गेहूॅ के उन्नत कृषि यंत्रो की सहायता के खरपतवार का नियत्रण कर।े

3.बसंत कालीन गन्ने के लिए 120 कि0ग्रा0 नत्रजन, 60 कि0ग्रा0 फासफोरस तथा 40 कि0ग्रा0 पोटाश का प्रय नत्रजन की 1/3 मात्रा तथा फासफोरस व पोटाश की पूर्ण मात्रा बुवाई के समय प्रयोग कर ें।

4.प्रति हैक्टेयर बुवाई के लिए गन्ने के तीन आँख वाले 40-50 हजार टुकड़ों का प्रयोग करं।े

5.बसंत कालीन गन्ने की फसल की बुवाई 15 मार्च तक पूर्ण करें।

6.गन्न े की अन ुमोदित प्रजातियों का चुनाव अपन े क्षेत्र क े अन ुसार ही करें।

7.गन्ने के टुकड़ों का बीज शोधन अवश्य करें। शोधन एैगलाल या इमासान 6 के 0.25 प्रतिशत घोल मं े 10 मिनट तक डुबाकर करें।

उद्यान प्रबंध

1.मध्यम एवं ऊ ँचे पर्वतीय क्षेत्रो में यदि बैंगन, टमाटर, शिमला मिर्च तथा मिर्च की रोपाई की जानी है। तो इस माह इन बीजो की नर्सरी मंे बुवाई कर ें।

2.घाटी क्षेत्रो मे यदि तापक्रम बढ़ गया हो तो फ्रासबीन अर्का कोमल तथा कन्टण्े डर किस्मों की बुवाई करं।े

3.घाटी क्षेत्रो मे प्याज एवं लहसुन की खड़ी फसल में यदि परपल ब्लाॅच रोग की समस्या दिखे तो 25 ग ्राम ब्लाईटाॅक्स रसायन 10 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।

4.मटर मं े यदि लीफ माईनर कीट का प्रकोप हो तो इमिडाक्लोप्रिड रसायन की 0.08 प्रतिशत घोल का छिड़काव करें।

5.आलू की बुवाई हेत ु खेत की तैयारी कर अन्तिम सप्ताह में कुफरी ज्योति किस्म की बुवाई करें। साथ ही 4-5 कुन्तल गोबर की खाद के साथ 2.5 कि0ग्रा0 डी0ए0पी0 तथा 2 कि0ग्रा0 पोटाश उर्वरक प्रयोग करें।

6.मटर में पौधों की सूखन े एवं निचली पत्तियां पीले पड़न े की अवस्था में कार्बन्डाजिम 1.0 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर जड़ों की सिंचाई कर ें ।

7.प्याज और लहसुन की पत्तियाॅ उपर से पीली पड़न े पर प्रोपीकोनाजोल या टेबूकोनाजोल का 1 मिली0 प्रति ली0 पानी की दर से घोल बनाकर छिड़काव कर े।

8.टमाटर मं े पीलापन लिए हुए भूरे धब्बे दिखाई दने े पर मैन्कोजेब 2.5 से 3.0 ग्राम प्रति लीटर की दर से घोल बनाकर छिड़काव करें।

9.गोभी वर्गीय सब्जियो में पत्ती धब्बा रोग के नियत्रंण हेत ु मैन्कोजेब का 2.5 ग्रा0 प्रति ली0 पानी की दर से घोल बनाकर छिड़काव करे।

10.मध्यम एवं ऊ ँचे पर्वतीय क्षेत्रो में शीतोष्ण फल वृक्षो मे पोषक तत्वो की आपूर्ति  सुनिश्चित कर े।

11.गुठलीदार फलों ज ैसे आड़ ू, प्लम आदि म ें पर्ण कुचलन रोग की रोकथाम के लिए कीटनाशी दवाओं का छिड़काव करें।

12.शीतोष्ण फल पौधों के उत्तम गुणवत्ता के फल पौध बनाने हेत ु नर्सरी में जिह्वा कलम प्रार ंभ करें।

13.पूर्व मं े आरक्षित किये शीतोष्ण फल वृक्षो जैसे सेब, नाशपाती, खुबानी, अखरोट आदि फल वृक्षो को लगाने का कार्य प्रारम्भ कर े।

14.शीतोष्ण फल पौधो के थाले बनाये तथा गोबर, नत्रजन एवं फास्फोरस की उचित मात्रा का प्रयोग कर।े

15.सेब में क ैंकर रोग की रोकथाम के लिए कटाई छटाई के उपरान्त काॅपर आॅक्सीक्लोराइड 0.3 प्रतिशत का प्रयोग करे। कटाई छटाई के दौरान रोगी एवं कीट ग ्रसित अथवा अवांछनीय शाखाओ को काटकर कीटनाशक तथा फफॅूदी नाशक रसायनो का छिडकाव करे।

16.सेब तथा ग ुठलीदार फलों में तना विगलन रोग की रोकथाम के लिए तनों के चारों तरफ मिट्टी हटाएँ जिससे धूप की किरणें ग ्रसित भाग पर पड़ े। प्रभावित छालों को हटाकर इसमें चैबटिया पेस्ट लगाकर मिट्टी से ढक दें। इसके अलावा 0.3 प्रतिशत काॅपरआॅक्सीक्लोराइड प्रति पौधा में ड्रैंचिंग करें।

17.ऊँचे पर्वतीय क्षेत्रों मं े सेब, नाशपाती, आड़ ू, प्लम, खुमानी आदि शीतोष्ण फल वृक्षों में कटाई-छटाई, खाद एवं कीट व रोगो की रोकथाम का कार्य पूरा करें।

पशुओं की देखभाल

1.सरदी से बचाव के लिए पशुघर का प्रबंध ठीक से करें। पशुओं को ठ ंड से बचाव हेत ु सूखी घास, पुवाल जो जानवरों के खाने के उपयोग मं े नहीं आती को बिछावन के रूप में प्रयोग करें। खिड़की दरवाजों पर त्रिपाल लगा दें ताकि ठंडी हवा प्रवेश न कर ें।

2.पशुओं के बैठन े का स्थान समतल होता चाहिए जिससे उनकी उत्पादन क्षमता प्रभावित न हो तथा इस समय नवजात पशुओं के रख-रखाव पर विशेष ध्यान द ें।

3.ठंड मं े पशुओं के आहार मं े तेल और गुड़ की मात्रा बढ़ा दं।े अधिक ठंड की स्थिति में पशुओं को अजवाइन और गुड़ द ें। 

4.जानवरों में प्रसव दर को ध्यान में रखत े हुए पशुशाला को अच्छी तरह साफ-सुथरा, सूखा, रोशनीदार, हवादार होना चाहिए। इसके लिए नालियों में तथा आस-पास सूखे चनू े का छिड़काव करं े तथा जानवर के नीचे सूखा चारा बिछा द ें। प्रसव के उपरांत स्वच्छता का पूरा ध्यान रखें। ठ ंड का समय आ गया है अतः ठ ंड से बचाव हेत ु पशुपालक इसकी ओर ध्यान दें।

5.भैंस के 1-4 माह के नवजात बच्चों की आहार नलिका में टाक्सोकैराविटूलरू म (केचुआँ/पटेरा) नामक परजीवी पाए जाते है। इसे पट ेरा रोग भी कहत े है। समय से उपचार न होन े की दशा में लगभग 50 प्रतिशत से अधिक नवजात की मृत्यु इसी परजीवी के कारण होती है। इस रोग की पहचान - नवजात को बदबूदार दस्त होना और इसका रंग काली मिट ्टी के समान होता है, कब्ज होना, पुनः बदबूदार दस्त होना व इसके साथ केचुआँ या पट ेरा का होना, नवजात द्वारा मिट्टी खाना आदि लक्षणो ं के आधार पर इस रोग की पहचान कर सकते है। रोग की पहचान होत े ही पीपराजीन नामक औषधी का प्रयोग कर सकते हैं।

6.पटेरा रोग से बचाव हेतु प्रसव होने के 10 दिन पष्चात् 10-15सी0सी0 नीम का तले नवजात को पिला दें। तदुपरांत 10 दिन पश्चात ् पुनः 10-15 सी0सी0 नीम का तेल पिला द ें। बथुए का त ेल इसका रामबाण इलाज है।