चल रहे मौसम में कैसे करें फसलों, पशुओं और बागों की देखभाल
उधम सिंह नगर, उत्तराखंड
फसल प्रबन्धः
1.गेहूँ की फसल मे निचली पत्तियो पर पीले र ंग के फफोले दिखाई द ेने पर या पत्तियो पर भूर े धब्बे या नोक से पत्तियो के पीले पड़ कर मरु झाने पर प्रोपीकोनाजोल 25 ई0 सी0 का 1 लीटर/हैक्टेयर की दर से छिड़काव करंे।
2.बिलम्ब से बोई गहे ॅू की फसल जिसे दिसम्बर के दूसरे पखवाड़े में लगाया गया है, में चैड़ी पत्ती वाले खरपतवारों के नियत्रं ण हेतु बुवाई के 40-45 दिन बाद 2, 4-डी की 80 प्रतिशत शुद्धता वाली दवा के 625 ग्राम/हेक्टेयर मात्रा को 800 लीटर पानी मं े घोलकर छिड़काव फ्लैट फैन नाजल लगग स्प्रेयर द्वारा करं।े अगर यूरिया की टापड्रेसिंग नहीं गई हो तो इसे खरपतवारनाशी के छिड़काव से 2-3 दिन पहले की पूरा कर लने ा चाहिए।
3.गेहॅू मे पीली गेरूई के प्रकोप में पत्तियाँ पीली पड़ जाती है। खेत में पत्तियों को छूने से पीला रंग हाथ में लगे तो रोग के लक्षण दिखाई देत े ही प्रोपीकोनाजाल 25 ई0 जो टिल्ट यादि के व्यवसायिक नाम से बाजार में उपलब्ध है के 500 मि0ली0 हैक्टर की दर से 500 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव कर ें।
4.मेंथा की बुवाई 15-20 फरवरी तक कर सकते हैं। उन्नतशील किस्मों- कोशी, सक्षम, कुशल, हिमालय, सरयू एवं संगंध पौध संस्थान के पन्तनगर प्रक्षेत्र से प्राप्त कर सकते हैं। 400-500 कि0ग्रा0 जड़/हैक्टर की आवश्यकता होती है। बुवाई से पूर्व जड़ों को 5-7 से0मी0 लम्बे ट ुकड़ों जिसमें 3-4 गांठे हो में काटते हैं। इसक े उपरान्त 2 ग्राम कार्बेन्डाजिम प्रति लीटर पानी में घोल कर इसमें 5 मिनट तक डुबोकर शोधित करते हैं। इसके बाद जड़ टुकड़ों केा घोल से निकाल कर आधे घण्टे तक छायादार स्थान में सुखा कर बुवाई करते हैं।
5.नौलख गन्ना की कटाई 15 फरवरी से पहले न करें।
6.चना एवं मसूर में फलीवेदक कीट का प्रकोप होने पर फूल आते समय मैलाथियान 50 ई0सी0 के 2.0 लीटर अथवा क्यूनालफास 25 ई0सी0 1.5 लीटर/है0 की दर से 500-600 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।
7.चना व मसूर की फसल मे फूल बनत े समय 2 प्रतिशत य ूरिया के घोल का पर्णीय छिड़काव करे। प्रथम छिड ़काव के 10-15 दिन बाद दूसरा छिड ़काव करे। प्रति हैक्टर 600-700 लीटर पानी का प्रयोग करे।
उद्यान प्रबंध
1.फरवरी माह में बाग की साफ-सफाई करनी चाहिए तथा पाले से बचाव के लिए लगाए गये पुआल अथवा घास इन्यादि को फरवरी के अन्तिम सप्ताह में निकाल द ेना चाहिए।
2.फल पेड़ों में भुनगा कीट के नियंत्रण हेत ु ऐमिडाक्लोरपिड 17.8 एस0एल0 का 0.03 मि0ली0/लीटर की दर से प्रथम छिड ़काव पुष्पगुच्छ की शुरूआत में करें। फल की मटर अवस्था पर थियामैथौक्ज ैम से दूसरा छिड़काव 0.32 ग्राम/लीटर और तीसरा छिड़काव केवल आवश्यकता पड़ने पर दसू रे छिड़काव के 21 दिन बाद एन0एस0के0ई0 5 प्रतिशत का 5 मि0ली0/लीटर की दर स े करें।
3.लौकी, करेला, तोरई, काशीफल उगाने हेत ु खेत की तैयारी कर ें।
4.खीरा वर्गीय फसलों क े लिए पोषक तत्वो के रूप में गोबर की सड़ी हुई खाद अथवा कम्पोस्ट खाद का अधिक से अधिक प्रयोग करें।
5.मटर की पत्तियो पर पील े चकत्ते दिखाई देन े पर प्रोपीकोनाजोल 1 मिली0/ली0 की दर से घोल बनाकर छिड ़काव करे।
6.मटर में पौधों की सूखन े एवं निचली पत्तियां पीले पड़न े की अवस्था में कार्बन्डाजिम 1.0 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर जड़ों की सिंचाई कर ें ।
7.प्याज और लहसुन की पत्तियाॅ उपर से पीली पड़ने पर प्रोपीकोनाजोल या टेबूकोनाजोल का 1 मिली0 प्रति ली0 पानी की दर से घोल बनाकर छिड़काव कर े।
8.आलू एवं टमाटर की फसल में पछेती झुलसा रोग के प्रकोप से बचाव हेतु मैनकोजेब 2.5 ग ्रा0/ली0 या काॅपर आॅक्सीक्लोराइड 3.0 ग्रा0 प्रति ली0 पानी की दर से घोल बनाकर छिडकाव कर े।
9.टमाटर में पीलापन लिए हुए भूर े धब्बे दिखाई देने पर मैन्कोजेब 2.5 से 3.0 ग ्राम प्रति लीटर की दर से घोल बनाकर छिड़काव करें।
10.गोभी वर्गीय सब्जियो में पत्ती धब्बा रोग के नियत्रंण हेत ु मैन्कोजेब का 2.5 ग्रा0 प्रति ली0 पानी की दर से घोल बनाकर छिड़काव करे।
11.पातगोभी एवं फूलगोभी में निराई गुड़ाई करे यूरिया की टाॅप डेªसिंग व खेत में नमी बनाकर रखें।
पशुपालन प्रबंध
1.मुर्गियों के आवास के तापमान का अनुरक्षण करंे| सरद ऋतु मे बिछावन की मोटाई बढा दे जिससे कुक्कुट को पर्याप्त गर्मी मिलती रहे।
2.सरदी से बचाव के लिए पशुघर का प्रबंध ठीक से करें। पशुओं को ठ ंड से बचाव हेत ु सूखी घास, पुवाल जो जानवरों के खाने के उपयोग मं े नहीं आती को बिछावन के रूप में प्रयोग करें। खिड़की दरवाजों पर त्रिपाल लगा दें ताकि ठंडी हवा प्रवेश न करें।
3.पशुओं के बैठन े का स्थान समतल होता चाहिए जिससे उनकी उत्पादन क्षमता प्रभावित न हो तथा इस समय नवजात पशुओं के रख-रखाव पर विशेष ध्यान द ें।
4.ठंड मं े पशुओं के आहार मंे तेल और गुड़ की मात्रा बढ़ा दं।े अधिक ठंड की स्थिति में पशुओं को अजवाइन और गुड़ द ें।
5.जानवरों में प्रसव दर को ध्यान में रखत े हुए पशुशाला को अच्छी तरह साफ-सुथरा, सूखा, रोशनीदार, हवादार होना चाहिए। इसके लिए नालियों में तथा आस-पास सूखे चनू े का छिड़काव करं े तथा जानवर के नीचे सूखा चारा बिछा दें। प्रसव के उपरांत स्वच्छता का पूरा ध्यान रखें। ठ ंड का समय आ गया है अतः ठ ंड से बचाव हेत ु पशुपालक इसकी ओर ध्यान दें।
6.भैंस के 1-4 माह के नवजात बच्चों की आहार नलिका में टाक्सोकैराविटूलरू म (केचुआँ/पटेरा) नामक परजीवी पाए जाते है। इसे पट ेरा रोग भी कहत े है। समय से उपचार न होन े की दशा में लगभग 50 प्रतिशत से अधिक नवजात की मृत्यु इसी परजीवी के कारण होती है। इस रोग की पहचान - नवजात को बदबूदार दस्त होना और इसका रंग काली मिट ्टी के समान होता है, कब्ज होना, पुनः बदबूदार दस्त होना व इसके साथ केचुआँ या पट ेरा का होना, नवजात द्वारा मिट्टी खाना आदि लक्षणो ं के आधार पर इस रोग की पहचान कर सकते है। रोग की पहचान होत े ही पीपराजीन नामक औषधी का प्रयोग कर सकते हैं।
7.पटेरा रोग से बचाव हेतु प्रसव होने के 10 दिन पष्चात् 10-15सी0सी0 नीम का तले नवजात को पिला दें। तदुपरांत 10 दिन पश्चात ् पुनः 10-15 सी0सी0 नीम का तेल पिला द ें। बथुए का त ेल इसका रामबाण इलाज है।