पशुपालन प्रबंध के लिए जी. बी. पंत यूनिवर्सिटी की तरफ से उधम सिंह नगर के किसानो के लिए कृषि परामर्श
14 November 2017
1.इस बदलते मौसम में नवजात पशुओ ं में निमोनिया की संभावना ज्यादा रहती है। इसलिए पशुओ ं की आवास व्यवस्था को सुदृढ़ करें व आहार में गर्म चीजें दें।
2.वर्षा के बाद नाना प्रकार के अन्तः परजीवी आहार नलिका मं े उत्पन्न हो जाते है। जो पशुओ का आहार स्वंय ग्रहण कर लेते है। अतः सर्वप्रथम निकटतम पशुओ का कृमिनाशक औषधि द ें।
3.जिन पशुओं मं े एफ0एम0डी0 (मुखपका खुरपका) रोग के टीके नही लगं े है उन पशुओं में तत्काल टीकाकरण करा लें। ताकि आपका पशुधन स्वस्थ रहे और उससे लगातार आपको सही उत्पादन प्राप्त होता रहें।
4.खुरपका मुखपका के लक्षण- आँखें लाल होना, तेज बुखार होना (105-107◦
5.थ्), उत्पादन तथा आहार गह्र ण करने की क्षमता में कमी होना, मुहँ मं े छाले होना,लार गिरना समय से उपचार न मिलने की दषा में पशु के खुरो ं मं े घाँव बनना जिसकी वजह से पशुओं का लंगड़ाकर चलना आदि लक्षणो ं के आधार पर मुखपका खुरपका रोग की पहचान की जा सकती है। रोग के लक्षण पता चलते ही रोगी पशुओ ं को अन्य स्वस्थ पशुओ ं से तत्काल अलग कर दें। निकटतम पशु चिकित्सक की सलाह अनुसार उपचार कराय ें तथा स्वस्थ पशुओं को चारा देने के उपरांत ही अंत में पीड़ित पशुओं को मुलायम हरा चारा दें। तदुपरांत हाथों को लाल दवा से अच्छी तरह साफ करं।े
6.इस माह में जानवरों म ें खासकर भैसों में प्रसव दर अधिक बढ ़ जाती है इसको ध्यान में रखते हुए पशुशाला को अच्छी तरह साफ-सुथरा, सूखा, रोशनीदार, हवादार होना चाहिए। इसके लिए नालियों मे ं तथा आस-पास सूखे चूने का छिड ़काव करें तथा जानवर के नीच े सूखा चारा बिछा दें। प्रसव के उपरांत स्वच्छता का पूरा ध्यान रखें। ठंड का समय आ गया है अतः ठंड से बचाव हेतु पशुपालक इसकी ओर ध्यान दें।
7.नवजात पशु की नाल को नए ब्लेड से काटकर उसमें गांठ लगा दें तथा उस पर बीटाडीन या टिचं र लगाना न भूलें।
8.भैंस के 1-4 माह के नवजात बच्चो ं की आहार नलिका में टाक्सोकैराविटूलरू म (केचुआँ/पटेरा) नामक परजीवी पाए जाते है। इसे पटरे ा रोग भी कहते है। समय से उपचार न होने की दशा मं े लगभग 50 प्रतिशत से अधिक नवजात की मृत्यु इसी परजीवी के कारण होती है। इस रोग की पहचान - नवजात को बदबूदार दस्त होना और इसका रंग काली मिट्टी के समान होता है, कब्ज होना, पुनः बदबूदार दस्त होना व इसके साथ केचुआँ या पट ेरा का होना, नवजात द्वारा मिट्टी खाना आदि लक्षणा ें के आधार पर इस रोग की पहचान कर सकत े है। रोग की पहचान होते ही पीपराजीन नामक औषधी का प्रयोग कर सकत े हैं।
9.पटेरा रोग से बचाव हेतु प्रसव होने के 10 दिन पश्चात् 10-15 सी0सी0 नीम का तले नवजात को पिला दें। तदुपरांत 10 दिन पष्चात् पुनः 10-15 सी0सी0 नीम का तेल पिला दें। बथुए का तेल इसका रामबाण इलाज है।
10.मुर्गि यों में फफ ूँदजनित आहार देने से अपलाटाॅक्सीकोशिश हो जाती है जिसकी वजह से काफी संख्या में उनकी मृत्य ु होन े की स ंभावना होती है। एैसे मं े मुर्गियों को पशुचिकितसक की सलाह से दवा दें।
11.पशुओ ं को हरा चारा मं े सूखा चारा अवश्य मिलाकर दं।े अन्यथा आफरा (टिम्पेती) हो सकती है व पनीले दस्त हो सकते है, जिसकी वजह से उनकी मृत्य ु हो सकती है।