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Posted by GB Pant University
Punjab
2018-11-16 12:19:45

पशुपालन के लिए जी बी पंत यूनिवर्सिटी द्वारा कुछ सुझाव

  1.  इस माह में जानवरों में खासकर भैसों में प्रसव दर अधिक बढ़ जाती है इसको ध्यान में रखते हुए पशुशाला काे अच्छी तरह साफ-सुथरा, सूखा, रोशनीदार, हवादार होना चाहिए। इसके लिए नालियों में तथा आस-पास सूखे चूने का छिड़काव करें तथा जानवर के नीचे सूखा चारा बिछा दें। प्रसव के उपरांत स्वच्छता का पूरा ध्यान रखें। ठंड का समय आ गया है अतः ठंड से बचाव हेतु पशुपालक इसकी ओर ध्यान दें। 
  2. जिन पशुओं में एफ0एम0डी0 (मुखपका खुरपका) रोग के टीके नही लगें है उन पशुओं में तत्काल टीकाकरण करा लें। ताकि आपका पशुधन स्वस्थ रहे आैर उससे लगातार आपकाे सही उत्पादन प्राप्त होता रहें।
  3.  भैंस के 1-4 माह के नवजात बच्चों की आहार नलिका में टाक्सोकैराविटूलूरम (केचुआँ/पटेरा) नामक परजीवी पाए जाते है। इसे पटेरा रोग भी कहते है। समय से उपचार न होने की दशा में लगभग 50 प्रतिशत से अधिक नवजात की मृत्यु इसी परजीवी के कारण होती है। इस रोग की पहचान - नवजात को बदबूदार दस्त हाेना और इसका रंग काली मिट्टी के समान हाेता है, कब्ज होना, पुनः बदबूदार दस्त हाेना व इसके साथ केचुआँ या पटेरा का होना, नवजात द्वारा मिट्टी खाना आदि लक्षणों के आधार पर इस रोग की पहचान कर सकते है। राेग की पहचान हाेते ही पीपराजीन नामक औषधी का प्रयोग कर सकते हैं।
  4.  पटेरा रोग से बचाव हेतु प्रसव हाेने के 10 दिन पश्चात् 10-15 सी0सी0 नीम का तेल नवजात को पिला दें। तदुपरांत 10 दिन पश्चात् पुनः 10-15 सी0सी0 नीम का तेल पिला दें। बथुए का तेल इसका रामबाण इलाज है।
  5.  पशुओं को हरा चारा में सूखा चारा अवश्य मिलाकर दें। अन्यथा आफरा (टिम्प ेती) हो सकती है व पनीले दस्त हाे सकते है, जिसकी वजह से उनकी मृत्यु हाे सकती है।
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