1.पेड़ी गन्ना के रस में ब्रिक्स की मात्रा जाचते रहें। जब ब्रिक्स की मात्रा 18 प्रतिशत हो जाय तब नवम्बर माह में मिल से पर्ची आते ही सर्वप्रथम गन्ने की कटाई कर गन्ना मिल में भेजे तथा खाली हुए खेत की तैयारी कर रबी फसलों की समय से बुवाई करें।
2.नाैलख फसल में आवश्यकतानुसार सिंचाई करें।
3.शरदकालीन गन्ने में बुवाई के 25-30 दिन पर निराई-गुड़ाई करें। आवश्यकतानुसार बुवाई के 30-40 दिन बाद सिंचाई करें। तथा बोए गए सह फसलों में सस्य कि्रयाए करें।
4.सिंचित दशा में चने की सामान्य बुवाई नवम्बर के दूसरे पखवाड़े में पूरी कर लें।
5.चना की उन्नतशील प्रजातियों -पूसा 256, के0-850, अवरोधी, पंत जी-114, पंत जी-186, पंत काबुली चना-1 आदि की बुवाई सिंचित दशा में 45 से0मी0 की दूरी पर बने लाईनों मे 6-8 से0मी0 गहराई पर करें। बुवाई से पूर्व स्वयं उत्पादित बीजों काे बीज जनित रोगों से बचाव हेतु सर्व प्रथम 1 ग्राम कार्बेडाजिम तथा 2 ग्राम थायरम के मिश्रण से शोधित करें। इसके उपरान्त राइजोबियम कल्चर एवं फास्फोरस घोलक कल्चर से भी उपचारित करें। बुवाई हेतु बीज दर छाेटे एवं मध्यम आकार के बीज वाली प्रजातियाें के 60-80 कि0ग्रा0/है0 तथा मोटे दाने वाली प्रजातियाें के लिए बीज दर 80-100 कि0ग्रा0/है0 रखें। बुवाई से पूर्व खेत में 15-20 कि0ग्रा0 नत्रजन, 40-50 कि0ग्रा0 फास्फोरस तथा 20-30 कि0ग्रा0 पोटाश /है0 प्रयोग करें।
6.गेहूँ की बुवाई के समय औसत तापमान 22◦ ब् से 23◦ ब् होना चाहिए। इस क्षेत्र में यह तापमान 15 नवम्बर के आस-पास आता है। समय से पूर्व बुवाई करन पर बालियाँ छोटी हा ती है।
7.फसलों की बुवाई से पूर्व बीज उपचार अवश्य करें।
8.गेहॅू के बीज का उपचार कार्बोक्सिन 2 ग्राम/किग्रा से या टेबूकुनाजोल 1.5 ग्राम/किग्रा बीज की दर से करें।
9.दलहनी फसलों हेतु थीरम 2 ग्राम $ कार्बन्डाजीन 1 ग्राम/किग्रा बीज तथा तिलहनी फसलों में मैटालेक्जिल 6 ग्राम/किग्रा बीज की दर से उपचारित करें।