पशुओं को गलघो टू रोग से बचाने के लिए जानवरों को साफ-सुथरे स्थान पर बांधे तथा आस-पास बरसात का पानी इकट्ठा ना होने दें। गलघोटू रोग के लक्षण दिखने पर पीड़ित पशु की नस मंे सफोनामाइडस जैसे सल्फामेथाजाइन या सल्फरडाईमिडेन 150 मिग्रा/किग्रा के हिसाब से तीन दिन तक पशुचिकित्सक की सलाह से दें।
पशुओं को हरा चारा कम मात्रा में दें तथा हरे चारे में सूखा चारा मिलाकर दंे|
पीने का पानी स्वच्छ होना चाहिए तथा गन्दे पानी में परजीवी जनित व फफॅूदी जनित विषाणु की सम्भावना होती है।
नमी की वजह से आहार में फफूॅदी लग जाती है जिससे आहार में पोषक तत्व की कमी हो जाने से अपलाटाॅक्सीकोशिश नामक बीमारी हो जाती है। इससे मुर्गियों के पेट में कीड़े पड़ने से अण्डा देने की क्षमता घट जाती है ऐसी मुर्गियों को पशु चिकित्सक की सलाह से कृमिनाशक दवा महीने में एक बार अवश्य दें।
वर्षा ऋतु में आद्रता की वजह से मक्खी-मच्छरों की प्रजनन क्षमता बढ़ जाती है इससे मुर्गीघर को बचाने के लिए मेलाथियान या फिनिट का स्प्रे करें।
पशुओं का आवास सूखा होना चाहिए इसके लिए समय-समय पर चूने का छिड़काव करें।
पशु को ब्याने के बाद अच्छी तरह से साफ-सफाई करके निकटतम पशु चिकित्सक की सलाह से
यूटरोटोन/हरीरा/गाइनोटोन नामक दवा में से किसी एक दवा की 200 मिली मात्रा सुबह शाम तीन दिनों तक गर्भाशय की सफाई हेतु देनी चाहिए।
प्रसव के तुरन्त बाद नवजात बच्चे की साफ-सफाई कर उसकी नाभी को धागे से बांधकर किसी साफ चाकू या ब्लेड से काटकर उस पर जैन्सन वायलेट पेन्ट अथवा टिंचर आयोडीन लगाना चाहिए।