Expert Advisory Details

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Posted by गो.ब. पन्त कृषि एवं प्रौद्यो. विष्वविद्यालय, पन्तनगर
Punjab
2019-01-25 14:37:56

ग्रामीण कृषि मौसम सेवा बुलेटिन, नैनीताल

मौसम पूर्वानुमानः

 

भारत सरकार के पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय द्वारा वित्त पोषित एवं भारत मौसम विज्ञान विभाग द्वारा संचालित ग्रामीण कृषि मौसम सेवा परियोजना के अन्तगर्त राष्ट्रीय मौसम पूर्वानुमान केन्द्र, भारत मौसम विज्ञान विभाग, मौसम भवन, नई दिल्ली द्वारा पूर्वानुमानित तथा मौसम केन्द्र, देहरादून द्वारा संसोधित पूवा र्नुमानित मध्यम अवधि मौसम आंकड़ों के आधार पर कृषि मौसम विज्ञान विभाग में स्थित कृषि मौसम विज्ञान प्रक्षेत्र इकाई (AMFU) गो0 0 पन्त कृषि एवं प्रौद्यो0 विश्वविद्यालय, पन्तनगर द्वारा नैनीताल जिले के पर्वतीय क्षेत्रों में अगले पाँच दिनों में निम्न मौसम रहने की संभावना व्यक्त की जाती है:-

पूर्वानुमानित मौसम तत्व

मौसम पूर्वानुमान - नैनीताल

23.01.2019

24.01.2019

25.01.2019

26.01.2019

27.01.2019

वर्षा (मिमी0)

35

8

0

5

2

बादल

घने बादल

घने बादल

आंशिक बादल

घने बादल

घने बादल

अधिक्तर तापमान (डिग्री से.ग्रे)

 

12

 

13

 

 

15

 

14

 

14

न्यूनतम तापमान (डिग्री से.ग्रे)

 

3

 

4

 

3

 

5

 

6

अधिक्तम सापेक्षित आद्रता (प्रतिशत)

 

95

 

90

 

85

 

90

 

90

न्यूनतम सापेक्षित आद्रता (प्रतिशत)

 

55

 

50

 

45

 

50

 

50

हवा की औसत गति(कि0मी0 प्रतिघंटा)

 

010

 

006

 

006

 

006

 

006

हवा की दिशा

पूर्व-दक्षिण-पूर्व

पूर्व-दक्षिण-पूर्व

उत्तर पूर्व

उत्तर पूर्व

पूर्व-उत्तर-पूर्व

 

भारत मौसम विज्ञान विभाग के नैनीताल स्थित मौसम विज्ञान वेधशाला (समुद्रतल से ऊँचाई-2084 मीटर) के प्रेक्षणानुसार विगत सात दिनों (15-21 जनवरी 2019) में आसमान साफ रहने के साथ कही-कही आंशिक बादल छायेरहे तथा अधिकतम तापमान 10.4 से 18.0 डि0से0 एवं न्यूनतम तापमान 1.9 से 5.7 डि0से0 के बीच रहा।  ऐसे अनुमानित मौसम में गो00 पन्त कृषि एवं प्रौद्यो0 विश्वविद्यालय, पन्तनगर के वैज्ञानिकों द्वारा इस क्षेत्र के कृषक भाइयों को सलाह दी जाती है कि इस मौसम में विभिन्न फसलों के लिए खेतों में निम्नानुसार कार्यक्रम अपनायें।

कृषि मौसम परामर्ष

फसल प्रबन्ध:

  • गेहूँ की फसल मे निचली पत्तियों पर पीला रतवा रोग का प्रकोप दिखाई पड़ने पर प्रोपीकोनाजोल 25 0 सी0 का 1 लीटर/हैक्टेयर की दर से छिड़काव करें।
  • बसंत कालीन गन्ने की बुवाई हेतु तैयारी करे।
  • तोरिया की पकी फसल की तुड़ाई करे।
  • दिसम्बर मे बोई गई गेहूं की फसल में 20-25 दिन पर सिंचाई करें तथा नत्रजन की बची हुई 1/3 मात्रा का सिंचाई के बाद प्रयोग करें।
  • दलहनी फसलो में, क्यूजानफॉप पी-मिथाइल ( टर्गा सुपर) 5 0 सी0 की 1 ली0 मात्रा को 700 ली0 पानी में घोल बनाकर बुवाई के 15-20 दिन बाद छिड़काव करें।
  • दलहनी फसलों में खरपतवार नियंत्रण हेतु अगर मजदूर उपलब्ध हों तो पहली निराई, बुवाई के 20-25 दिन बाद और दूसरी 35-40 दिन बाद करें।
  • गेहूँ की फसल में चौड़ी पत्ति एवं घास वर्ग के खरपतवार के नियंत्रण हेतु वेस्टा की 400 ग्रा0 मात्रा का 700 ली0 पानी मे घोल बनाकर 1 हेक्टेयर में बुवाई के 30-35 दिन बाद छिड़काव करे।
  • गेहूँ की फसल में खरपतवार के नियंत्रण हेतु, टोटल (या सल्फ़ोसल्फोरॉन एवं मेटसल्फयूरॉन मिथाईल) की 40 ग्रा0 मात्रा को 700 ली0 पानी में घोलकर बनाकर 25-30 दिन बाद/हेक्टेयर में छिड़काव करे।
  • शरदकालीन गन्नें की फसल में यदि श्रमिक उपलब्ध हों तो फावड़े से एक गहरी गुड़ाई करने के उपरांत सिचांई करके अनुमोदित मात्रा की लगभग 40 कि0ग्रा0/है0 की दर से एक चौथाई नत्रजन (लगभग 82 कि0ग्रा0 यूरिया/है0) का प्रयोग करें।
  • पेड़ी वाले गन्नें की फसल में 60 कि0ग्रा0 नत्रजन, 60 कि0ग्रा0 फास्फोरस एवं 40 कि0ग्रा0 पोटाश प्रति हैक्टेयर की
  • दर से नमी की उपस्थिति में प्रयोग कर अच्छी तरह से मिट्टी में मिला दें तथा खपतवारों के नियंत्रण के लिए गन्ने की सूखी पत्तियों को गन्ने की दो कतारों के बीच में मोटी परत बिछाने से मृदा में नमी बनी रहती है तथा खरपतवारों का नियंत्रण भी होता है। जिन किसानों को पेड़ी गन्ने की फसल लेनी है उनकी कटाई मध्य फरवरी में ही करें।
  • आवश्यकतानुसार फसलों में निराई गुड़ाई, सिंचाई एवं पोषक तत्वों का प्रबन्धन करें।

उद्यान प्रबन्धः

  • शीतोष्ण फल पौधो के उत्तम गुणवत्ता के फल पौध बनाने हेतु नर्सरी में जिह्वा कलम प्रारंभ करें।
  • पूर्व में आरक्षित किये शीतोष्ण फल वृक्षो जैसे सेब, नाशपाती, खुबानी, अखरोट आदि फल वृक्षो को लगाने का कार्य प्रारम्भ करे।
  • शीतोष्ण फल पौधो  के थाले बनाये तथा गोबर, नत्रजन एवं फास्फोरस की उचित मात्रा का प्रयोग करे।
  • सेब में कैंकर रोग की रोकथाम के लिए कटाई छटाई के उपरान्त कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 0.3 प्रतिशत का प्रयोग करे। कटाई छटाई के दौरान रोगी एवं कीट ग्रसित अथवा अवांछनीय शाखाओ को काटकर कीटनाशक तथा फफॅूदी नाशक रसायनो का छिडकाव करे।
  • सेब तथा गुठलीदार फलों में तना विगलन रोग की रोकथाम के लिए प्रभावित सेब तथा गुठलीदार फलों के तनों के चारों तरफ मिट्टी हटाएँ जिससे धूप की किरणें ग्रसित भाग पर पड़े। प्रभावित छालों को हटाकर इसमें चौबटिया पेस्ट लगाकर मिट्टी से ढक दें। इसके अलावा 0.3 प्रतिशत कॉपरऑक्सीक्लोराइड की प्रति पौधा से ड्रैंचिंग करें।
  • पर्वतीय क्षेत्रों में जहाँ पॉलीहाउस के भीतर टमाटर, शिमला मिच र् एवं खीरा की खेती की जानी हैं, में सफाई कर मिट्टी की खुदाई करें तथा फार्मलीन जैसे रसायन से उपचार करें।
  • यदि पॉली हाउस साफ तथा उपचारित है तो नर्सरी बैड बनाकर उससे टमाटर, शिमला मिर्च एवं बैगन की पौध तैयार करें ध्यान रहे कि नर्सरी बैड उठी हो तथा बीज की बुवाई उचित दूरी पर करें।
  • मटर में पौधों की सूखने एवं निचली पत्तियां  पीले पड़ने की अवस्था में कार्बन्डाजिम 1.0 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर जड़ों की सिंचाई करें
  • मटर की गुड़ाई के पश्चात् हल्की सिंचाई करे।
  • उॅचे क्षेत्रो में आलू की फसल हेतु उन्नतशील किस्मो जैसे कुफरी ज्योति, शैलजा, कुफरी हिमालिनी, कुफरी गिरधारी
  • के बीज की व्यवस्था करे साथ ही साथ आलू वाले खेतो की जुताई कर साफ सुथरा रखें।
  • मटर के निचली पत्तियो के पीले धब्बे दिखाई देने पर, मैंकोजेब 2.5 ग्राम प्रति ली0 या साइमोकजेनिल 8 प्रतिशत़ मैंकोजेब 64 प्रतिशत के मिश्रण को 2.5 ग्राम प्रति ली0 पानी की दर से घोल बनाकर छिड़काव करें।
  • प्याज और लहसुन की पत्तियॉ उपर से पीली पड़ने पर प्रोपीकोनाजोल या टेबूकोनाजोल का 1 मिली0 प्रति ली0 पानी की दर से घोल बनाकर छिड़काव करे।
  • आलू एवं टमाटर की फसल में पछेती झुलसा रोग के प्रकोप से बचाव हेतु मैनकोजेब 2.5 ग्रा0/ली0 या कॉपर
  • ऑक्सीक्लोराइड 3.0 ग्रा0 प्रति ली0 पानी की दर से घोल बनाकर छिडकाव करे।
  • टमाटर में पीलापन लिए हुए भूरे धब्बे दिखाई देने पर मैन्कोजेब 2.5 से 3.0 ग्राम प्रति लीटर की दर से घोल बनाकर छिड़काव करें।
  • गोभी वर्गीय सब्जियो में पत्ती धब्बा रोग के नियत्रंण हेतु मैनकोजेब का 2.5 ग्रा0 प्रति ली0 पानी की दर से घोल बनाकर छिड़काव करे।
  • सही संस्थाओ से टमाटर, बैगन, शिमला मिर्च की उन्नत किस्मो का बीज क्रय नर्सरी में बुवाई करे।
  • पाले से बचाव हेतु पौधशाला को सफेद प्लास्टिक से इस तरह ढकें कि सूर्य की रोशनी के साथ-साथ हवा का संचार भी हो सके (जमीन से 1 मीटर उपर)

पशुपालन प्रबन्धः

  • इस बदलते मौसम में नवजात पशुओं में निमोनिया की संभावना ज्यादा रहती है। इसलिए पशुओं की आवास व्यवस्था को सुदृढ़ करें व आहार में गर्म चीजें दें।
  • पटेरा रोग से बचाव हेतु प्रसव होने के 10 दिन पश्चात् 10-15 सी0सी0 नीम का तेल नवजात को पिला दें। तदुपरांत 10 दिन पश्चात् पुनः 10-15 सी0सी0 नीम का तेल पिला दें। बथुए का तेल इसका रामबाण इलाज है।
  • पशुओं को हरा चारा में सूखा चारा अवश्य मिलाकर दें। अन्यथा आफरा (टिम्पेती) हो सकती है व पनीले दस्त हो सकते है, जिसकी वजह से उनकी मृत्यु हो सकती है।
  • सरदी से बचाव के लिए पशुघर का प्रबंध ठीक से करें।
  • पशुओं के बैठने का स्थान समतल होता चाहिए जिससे उनकी उत्पादन क्षमता प्रभावित न हो तथा इस समय नवजात पशुओं के रख-रखाव पर विशेष ध्यान दें।
  • पशुओं को ठंड से बचाव हेतु सूखी घास, पुवाल जो जानवरों के खाने के उपयोग में नहीं आती को बिछावन के रूप में प्रयोग करें। खिड़की दरवाजों पर त्रिपाल लगा दें ताकि ठंडी हवा प्रवेश न करें।
  • ठंड में पशुओं के आहार में तेल और गुड़ की मात्रा बढ़ा दें। अधिक ठंड की स्थिति में पशुओं को अजवाइन और गुड़ दें।
  • पहाड़ी क्षेत्रों में पशुशाला में गर्मी हेतु हीटर का उपयोग करें। तथा अंगेठी का उपयोग धुंआँ निकलने के बाद कर सकते हैं।
  • मुर्गियों के आवास के तापमान का अनुरक्षण करें।
  • पशुओं को धान की कन्नी आहार के रूप में दें। जिससें उन्हें उर्जा और गर्मी मिलती है।

डा0 आर0 के0 सिंह

प्राध्यापक एवं  प्रिंसिपल नोडल अधिकारी

ग्रामीण कृषि मौसम सेवा,

गो.. पन्त कृषि एवं प्रौद्यो. विष्वविद्यालय, पन्तनगर