
उधम सिंह नगर के किसानों के लिए माहिरों की कृषि सलाह

भारत सरकार के पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय द्वारा वित्त पोषित एवं भारत मौसम विज्ञान विभाग द्वार संचालित ग्रामीण कृषि मौसम सेवा परियोजना के अन्तगर्त राष्ट्रीय मौसम पूर्वानुमान केन्द्र, भारत मौसम विज्ञानविभाग, मौसम भवन, नई दिल्ली द्वारा पूर्वानुमानित तथा मौसम केन्द्र, देहरादून द्वारा संसोधित पूवा र्नुमानित मध्यम अवधि मौसम आंकड़ों के आधार पर कृषि मौसम विज्ञान विभाग में स्थित कृषि मौसम विज्ञान प्रक्षेत्र इकाई (AMFU)गो0 ब0 पन्त कृषि एवं प्रैद्यो0 विश्वविद्यालय, पन्तनगर द्वारा उधम सिंह नगर में अगले पाँच दिनों में निम्न मौसम रहने की संभावना व्यक्त की जाती है :-
पूर्वानुमानित मौसम तत्व |
मौसम पूर्वानुमान-नैनीताल |
||||
15/12/2018 |
16/12/2018 |
17/12/2018 |
18/12/2018 |
19/12/2018 |
|
वर्षा (मिमी0) |
0 |
0 |
0 |
0 |
0 |
अधिकतम तापमान (डिग्री से.ग्रे.) |
22 |
23 |
23 |
22 |
22 |
न्यूनतम तापमान डिग्री से.ग्रे.) |
5 |
6 |
6 |
6 |
5 |
बादल आच्छादन |
आंशिक बादल |
आंशिक बादल |
साफ |
साफ |
साफ |
अधिकतम सापेक्षित आर्द्रता प्रतिशत |
85 |
85 |
90 |
90 |
90 |
न्यूनतम सापेक्षित आर्द्रता (प्रतिशत) |
45 |
40 |
45 |
45 |
45 |
वायु की औसत गति (कि0मी0 प्रतिघंटा) |
006 |
006 |
004 |
004 |
004 |
वायु की दिशा |
उत्तर-उत्तर-पश्चिम |
उत्तर |
उत्तर-उत्तर-पश्चिम |
उत्तर |
उत्तर-उत्तर-पश्चिम |
गोविन्द बल्लभ पन्त कृषि एवं प्रौद्योगिक विष्वविद्यालय, पन्तनगर स्थित कृषि मौसम विज्ञान वेधषाला (समुद्रतल से ऊँचाई-243.8 मीटर) के प्रेक्षणानुसार विगत सात दिनों ( 7 - 13 दिसम्बर, 2018 सुबह 8:30 तक) में आसमान साफ रहने के साथ कही-कही आंशिक बादल छाये रहे। अधिकतम तापमान 19.0 से 24.0 डि0से0 एवं न्यूनतम तापमान 6.4 से 8.4 डि0से0 के बीच रहा तथा वायु में सुबह 0712 बजे सापेक्षित आद्र्रता 91 से 97 प्रतिशत व दोपहर 1412 बजे सापेक्षित आद्र र्ता 58 से 66 प्रतिशत एवं हवा 1.5 से 2.7 कि0मी0 प्रति घंटा की गति से मुख्यतः पश्चिम-उत्तर-पश्चिम एवं उत्तर दिशा से चली।
ऐसे अनुमानित मौसम में गो0ब0 पन्त कृषि एवं प्रौद्यो0 विश्वविद्यालय, पन्तनगर के वैज्ञानिकों द्वारा इस क्षेत्र के कृषक भाइयों को सलाह दी जाती है कि इस मौसम में विभिन्न फसलों के लिए खेतों में निम्नानुसार कार्यक्रम अपनायें।
कृषि मौसम परामर्श
फसल प्रबन्धः
- जों की पछेती दशा में बुवाई हेतु संस्तुत किस्में- ज्योति, प्रीति, मंजुला, जागृति का चुनाव करें। प्रति हैक्टेयर 100-110 कि0ग्रा0 बीज का उपयोग करें। 18-20 से0मी0 के कतारों में बुवाई करें। बुवाई दिसम्बर के दूसरे पखवाड़े तक अवश्य पूरा कर लें।
- समय से बोए गए गेहूँ में बुवाई के 20-25 दिन बाद आवश्यकतानुसार प्रथम सिंचाई करें। प्रथम सिंचाई के 3-4 दिन बाद जब खेत चलने लायक हो जाए तब बचे हुए नाइट्रोजन की आधी मात्रा का टॉपड्रेसिंग अपराहन में करना अधिक प्रभावी होता है।
- गेहूँ में खरपतवार नियंत्रण हेतु दो निराई-गुड़ाई पर्याप्त होता है। पहली निराई-गुड़ाई बुवाई के 25-30 दिन बाद तथा दूसरी बुवाई के 45-50 दिन बाद करें। इससे खरपतवार तो नियंत्रण होता ही हैं साथ ही भूमि में समुचित हवा के संचार होने से कल्ले अधिक निकलते है।
- समय से बोए गई चनें की फसल में दो बार निराई-गुड़ाई करें। पहली बुवाई के 25-30 दिन बाद तथा दूसरा पहली सिंचाई के बाद बुवाई के 45-50 दिन बाद करें।
- सरसों में माहू का प्रकोप हो तो 1.0 ली0 मिथाईल-ओ-डेमिटान 25 ई0सी0 को 800-1000 ली0 पानी में घोलकर छिड़काव करे। छिड़काव 2.00 बजे के बाद करे ताकि मधुमक्खी पर इसका प्रभाव कम से कम हो।
उद्यान प्रबन्धः
- छाल खाने वाले कीड़े एवं तना वेदक कीड़ों के नियंत्रण के लिए पहले जालो एवं छेदों को साफ कर देते हैं, फिर छिद्रों में 0.05 प्रतिशत डाइक्लोरोवास का घोल डाल कर इसे बंद कर दें। इनका प्रकोप साल में एक ही बार होता है। यदि प्रकोप होने पर तुरन्त रेकथाम कर ली जाय तो ये हाति नहीं पहुँचा सकते।
- आम मे फोमा ब्लाइट के नियंत्रण के लिए आवश्यकता पड़ने पर 0.3 प्रतिशत कॉपर आक्सीक्लोराइड(3.0ग्राम/लीटर) का छिड़काव करना चाहिए।
- बागों की गहरी जुताई करे, जिससे मिज कीट, फल मक्खी, गुजिया कीट एवं जाले वाले कीट की वे अवस्थाएँ जो जमीन में दूसरे वर्ष आने तक पड़ी रहती हैं, नष्ट हो जाये।
- आलू में पछेती झुलसा रोग हेतु मौसम अनुकूल है। अतः किसान भाईयो को सलाह दी जाती है कि मैनकोजेब 2.5 ग्रा0/ली0 दर से छिड़काव करें।
- टमाटर में पीलापन लिए हुए भूरे धब्बे दिखाई देने पर मैन्कोजेब 2.5 से 3.0 ग्राम प्रति लीटर की दर से घोल बनाकर छिड़काव करें।
- बैगन के मुर्झाने की अवस्था मे कार्बन्डाजिम 1.0 ग्राम प्रति लीटर की दर से छिड़काव करें। यदि पूरा पौधा सूख रहा हो तो इसी घोल से जड़ों की सिंचाई करें।
- टमाटर के मुर्झाने की अवस्था मे ट्राइकोडर्मा हरजियानम या सूडोमोनास फलोरीसेंस का 8 से 10 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर संक्रमित पौधों व उसके आस पास क पौधो मे छिड़काव करे।
- मटर में पौधों की सूखने एवं निचली पत्तियां पीले पड़ने की अवस्था में कार्बन्डाजिम 1.0 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर जड़ों की सिंचाई करें ।
- मिर्च एवं टमाटर में उपरी पत्तियॉ सिकुड़ने या चित्तकबरी होने की स्थिति में संक्रमित पौधो कों निकालकर नष्ट कर दे तथा रोगवाहक कीटो के नियंत्रण हेतु किसी सर्वांगी कीटनाशी का छिड़काव करे।
- गोभी वर्गीय सब्जियो में पत्ती धब्बा रोग के नियत्रंण हेतु मेंन्कोजेब का 2.5 ग्रा0 प्रति ली0 पानी की दर से घोल बनाकर छिड़काव करे।
पशुपालन प्रबन्धः
- सरदी से बचाव के लिए पशुघर का प्रबंध ठीक से करें। गाय-भैंस को शीतला रोग (रिंडर पेस्ट) का टीका लगवाए।
- पशुओं को ठंड से बचाव हेतु सूखी घास, पुवाल जो जानवरों के खाने के उपयोग में नहीं आती को बिछावन के रूप में प्रयोग करें। खिड़की दरवाजों पर त्रिपाल लगा दें ताकि ठंडी हवा प्रवेश न करें।
- इस बदलते मौसम में नवजात पशुओं में निमोनिया की संभावना ज्यादा रहती है। इसलिए पशुओं की आवास व्यवस्था को सुदृढ़ करें व आहार में गर्म चीजें दें।
- जानवरों में प्रसव दर को ध्यान में रखते हुए पशुशाला को अच्छी तरह साफ-सुथरा, सूखा, रोशनीदार, हवादार होना चाहिए। इसके लिए नालियों में तथा आस-पास सूखे चूने का छिड़काव करें तथा जानवर के नीचे सूखा चारा बिछा दें। प्रसव के उपरांत स्वच्छता का पूरा ध्यान रखें। ठंड का समय आ गया है अतः ठंड से बचाव हेतु पशुपालक इसकी ओर ध्यान दें।
- भैंस के 1-4 माह के नवजात बच्चों की आहार नलिका में टाक्सोकैराविटूलूरम (केचुआँ/पटेरा) नामक परजीवी पाए जाते है। इसे पटेरा रोग भी कहते है। समय से उपचार न होने की दशा में लगभग 50 प्रतिशत से अधिक नवजात की मृत्यु इसी परजीवी के कारण होती है। इस होने की पहचान - नवजात को बदबूदार दस्त होने और इसका रंग काली मिट्टी के समान होता है, कब्ज होना, पुनः बदबूदार दस्त होना व इसके साथ केचुआँ या पटेरा का होना, नवजात द्वारा मिट्टी खाना आदि लक्षणों के आधार पर इस रोग की पहचान कर सकते है। रोग की पहचान होते ही पीपराजीन नामक औषधी का प्रयोग कर सकते हैं।
- पटेरा रोग से बचाव हेतु प्रसव होने के 10 दिन पश्चात् 10-15सी0सी0 नीम का तेल नवजात को पिला दें। तदुपरांत 10 दिन पश्चात् पुनः 10-15 सी0सी0 नीम का तेल पिला दें। बथुए का तेल इसका रामबाण इलाज है।
- मुर्गियों में फफूँदजनित आहार देने से अपलाटॉक्सीकोशिस हो जाती है जिसकी वजह से काफी संख्या में उनकी मृत्यु होने की संभावना होती है। एैसे में मुगि र्यों को पशुचिकितसक की सलाह से दवा दें।
- पशुओं को हरा चारा में सूखा चारा अवश्य मिलाकर दें। अन्यथा आफरा (टिम्पेती) हो सकती है व पनीले दस्त हो सकते है, जिसकी वजह से उनकी मृत्यु हो सकती है।
डा0 आर0 के0 सिंह
प्राध्यापक एवं प्रिंसिपल नोडल अधिकारी
ग्रामीण कृषि मौसम सेवा,
गो.ब. पन्त कृषि एवं प्रौद्यो. विष्वविद्यालय, पन्तनगर
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