
Gramin Seva Bulletin(Udham Singh Nagar)

मौसम पूर्वानुमान
भारत मौसम विज्ञान विभाग के नैनीताल स्थित मौसम विज्ञान वेधशाला (समुद्रतल से ऊँचाई-243.8 मीटर) के प्रेक्षणानुसार विगत सात दिनों (01-07 जनवरी 2019) में आसमान आंशिक से मध्यम बादल छाए रहे तथा 0.0 मि.मी. वर्षा हुई,अधिक्तम तापमान 18.5 से 22.5 डि0से0 एवं न्यूनतम तापमान 2.9 से 10.7 डि0से0 के बीच रहा तथा वायु में सुबह 07112 बजे सापेक्षित आद्रता 77 से 97 प्रतिशत व् दोपहर 14.12 बजे सापेक्षित आद्रता 51 से 71 प्रतिशत एवं मुख्यत: पूर्व-दक्षिण-पूर्व दिशा से चली|
पूर्वानुमानित मौसम तत्व |
मौसम पूर्वानुमान - उधम सिंह नगर |
||||
09/01/2019 |
10/01/2019 |
11/01/2019 |
12/01/2019 |
13/01/2019 |
|
वर्षा (मिमी0) |
0 |
0 |
0 |
1 |
2 |
अधिक्तर तापमान (डिग्री से.ग्रे) |
20 |
20 |
19 |
19 |
18 |
न्यूनतम तापमान (डिग्री से.ग्रे) |
3 |
3 |
4 |
6 |
6 |
बादल आच्छादन |
आंशिक बादल |
साफ़ |
साफ़ |
आंशिक बादल |
बादल |
अधिक्तर (सापेक्ष्त आद्रता प्रतिशत) |
85 |
80 |
80 |
85 |
90 |
न्यूनतम(सापेक्ष्त आद्रता प्रतिशत) |
45 |
40 |
40 |
45 |
45 |
वायु की औसत गति(कि0मी0 |
006 |
008 |
008 |
004 |
006 |
वायु की दिशा |
उत्तर- पश्चिम |
उत्तर- पश्चिम |
उत्तर- पश्चिम |
पूर्व-उत्तर-पूर्व |
पूर्व |
ऐसे अनुमानित मौसम में गो. ब. पंत एवं प्रौद्यो0 विशवविद्यालय पन्नगार के वैज्ञानिकों द्वारा इस क्षेत्र के कृषक भाईओं को सलाह दी जाती है कि इस मौसम में विभिन्न फसलों के लिए खेतों में निम्नानुसार कार्यक्रम अपनाएं।
कृषि मौसम परामर्ष
फसल प्रबन्ध:
- चना एवं मसूर में बुवाई से 25-30 एवं 45-50 दिन पर खुरपी द्वारा खरपतवारो को निकालें।
- चना एवं मसूर में आवश्यकतानुसार एक हल्की सिंचाई फूल आने से पहले तथा दूसरी सिंचाई फल बनते समय करे।
- अगर केवन चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों का ही बहुलता हो तो नवम्बर में बोई गई गेहूं की फसल में 30-40 दिन बाद तथा दिसम्बर में बोई समय में बुवाई के 40-45 दिन बाद 2,4 डी0 के 500 ग्रा0 सक्रिय अवयव या मैटसल्फूरान मिथाइल के 4 ग्रा0 या कारफेप्ट्राजान के 20 ग्रा0 का 500-600 ली0 पानी में घोल कर फलैट - फेन नोजन द्वारा छिड़काव प्रति हेक्टेयर की दर से करे।
- कगर सकरी पत्ती वाले खरपतवारो की बहुलता हो तो गेहूं की फसल में बुवाई के 30-35 दिन बाद फिनोक्साडेन 40-45 ग्र0 या सल्फोसल्फूरॉन के 25 ग्रा0 या क्लाडिनाफाप के 60 ग्र0 या फिनोक्साप्राप इथाइल के 100-120/हैक्टेयर का छिड़काव करें।
- अगर चौड़ी पत्ती वाले एवं सकरी पत्ती वाले खरपतवारो का मिश्रित प्रकोप हो तो गेहूं की फसल में सल्फोसल्फयूरॉऩ मेटसल्फयूरॉन के 32 ग्रा0 का छिड़काव 500-600 ली0 पानी में घोलकर बुवाई से 25-30 दिन में करे।
- जनवरी माह में गेहूं की बुवाई न करें क्योंकि जनवरी माह में गेहूँ की बुवाई करने पर 60-65 कि0ग्रा0/है0/दिन की दर से कमी आती है तथा फसल पकने के समय गर्म हवा चलने से गेहूँ के दाने बहुत ही पतले हो जाते है।
- खेत में खड़े गेहूँ की फसल में पहली सिंचाई बुवाई के 20-25 दिन बाद ताजा मूल जड़ अवस्था पर तथा दूसरी सिंचाई 40-45 दिन की अवस्था पर कल्ले निकलते समय करें।
- सरसों में तुलासिता रोग के नियत्रंण हेतु मैन्कोजेब का 2.5 ग्रा0 प्रति ली0 पानी की दर से घोल बनाकर छिड़काव करे।
उद्यान प्रबन्धः
- फलदार आम तथा लीची के पौधों में सिंचाई न करें। कयोंकि इससे बौर निकलने में बाधा उत्पन्न होती है। परन्तु नये पौधें जो अभी फलत में नहीं आये है उसमें सिंचाई की जा सकती है।
- करी कीट के नियंत्रण हेतु पालीथीन स्ट्रिप का प्रयोग करें ताकि इन कीटों को पौधों के ऊपर चढ़ने से रोका जा सके। इसके लिए 25 से 30 सेमी चौड़ी पालीथीन लेकर पौधों के मुख्य तना पर जमीन की सतह से लगभग 30-40 सेमी ऊपर पौधों के तनों के चारों ओर से लपेट दें। लपेटने के उपरान्त पालीथीन की निचली तथा ऊपरी सतह पर ग्रीस या खराब तेल का प्रयोग करते हुए पालीथीन के दोनों शिरों को रस्सी से बांध दें।
- पातगोभी एवं फूलगोभी में निराई गुड़ाई करे यूरिया की टॉप ड्रेसिंग व खेत में नमी बनाकर रखें।
- 10 जनवरी के आस-पास आलू की फसल की पत्तियो की कटाई करें।
- आलू एवं टमाटर की फसल में पछेती झुलसा रोग के प्रकोप से बचाव हेतु मैनकोजेब 2.5 ग्रा0/ली0 या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 3.0 ग्रा0 प्रति ली0 पानी की दर से घोल बनाकर छिडकाव करे।
- टमाटर में पीलापन लिए हुए भूरे धब्बे दिखाई देने पर मैन्कोजेब 2.5 से 3.0 ग्राम प्रति लीटर की दर से घोल बनाकर छिड़काव करें।
- बैगन के मुझा र्ने की अवस्था मे कार्बन्डाजिम 1.0 ग्राम प्रति लीटर की दर से छिड़काव करें। यदि पूरा पौधा सूख रहा हो तो इसी घोल से जड़ों की सिंचाई करें।
- मटर में पौधों की सूखने एवं निचली पत्तियां पीले पड़ने की अवस्था में कार्बन्डाजिम 1.0 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर जड़ों की सिंचाई करें ।
- गोभी वर्गीय सब्जियो में पत्ती धब्बा रोग के नियत्रंण हेतु मैन्कोजेब का 2.5 ग्रा0 प्रति ली0 पानी की दर से घोल बनाकर छिड़काव करे।
पशुपालन प्रबन्धः
- सरदी से बचाव के लिए पशुघर का प्रबंध ठीक से करें।
- पशुओं के बैठने का स्थान समतल होता चाहिए जिससे उनकी उत्पादन क्षमता प्रभावित न हो तथा इस समय नवजात पशुओं के रख-रखाव पर विशेष ध्यान दें।
- पशुओं को ठंड से बचाव हेतु सूखी घास, पुवाल जो जानवरों के खाने के उपयोग में नहीं आती को बिछावन के रूप में प्रयोग करें।
- खिड़की दरवाजों पर त्रिपाल लगा दें ताकि ठंडी हवा प्रवेश न करें।
- ठंड में पशुओं के आहार में तेल और गुड़ की मात्रा बढ़ा दें। अधिक ठंड की स्थिति में पशुओं को अजवाइन और गुड़ दें।
- पहाड़ी क्षेत्रों में पशुशाला में गर्मी हेतु हीटर का उपयोग करें। तथा अंगेठी का उपयोग धुंआँ निकलने के बाद कर सकते हैं।
- मुर्गियों के आवास के तापमान का अनुरक्षण करें।
- पशुओं को धान की कन्नी आहार के रूप में दें। जिससें उन्हें उर्जा और गर्मी मिलती है।
- इस बदलते मौसम में नवजात पशुओं में निमोनिया की संभावना ज्यादा रहती है। इसलिए पशुओं की आवास व्यवस्था को सुदृढ़ करें व आहार में गर्म चीजें दें।
- जानवरों में प्रसव दर को ध्यान में रखते हुए पशुशाला को अच्छी तरह साफ-सुथरा, सूखा, रोशनीदार, हवादार होना चाहिए। इसके लिए नालियों में तथा आस-पास सूखे चूने का छिड़काव करें तथा जानवर के नीचे सूखा चारा बिछा दें। प्रसव के उपरांत स्वच्छता का पूरा ध्यान रखें। ठंड का समय आ गया है अतः ठंड से बचाव हेतु पशुपालक इसकी ओर ध्यान दें।
- जानवरों में प्रसव दर को ध्यान में रखते हुए पशुशाला को अच्छी तरह साफ-सुथरा, सूखा, रोशनीदार, हवादार होना चाहिए। इसके लिए नालियों में तथा आस-पास सूखे चूने का छिड़काव करें तथा जानवर के नीचे सूखा चारा बिछा दें। प्रसव के उपरांत स्वच्छता का पूरा ध्यान रखें। ठंड का समय आ गया है अतः ठंड से बचाव हेतु पशुपालक इसकी ओर ध्यान दें।
- भैंस के 1-4 माह के नवजात बच्चों की आहार नलिका में टाक्सोकैराविटूलूरम (केचुआँ/पटेरा) नामक परजीवी पाए जाते है। इसे पटेरा रोग भी कहते है। समय से उपचार न होने की दशा में लगभग 50 प्रतिशत से अधिक नवजात की मृत्यु इसी परजीवी के कारण होती है। इस रोग की पहचान - नवजात को बदबूदार दस्त होना और इसका रंग काली मिट्टी के समान होता है, कब्ज होना, पुनः बदबूदार दस्त होना व इसके साथ केचुआँ या पटेरा का होना, नवजात द्वारा मिट्टी खाना आदि लक्षणों के आधार पर इस रोग की पहचान कर सकते है। रोग की पहचान होते ही पीपराजीन नामक औषधी का प्रयोग कर सकते हैं।
- पटेरा रोग से बचाव हेतु प्रसव होने के 10 दिन पश्चात् 10-15 सी0सी0 नीम का तेल नवजात को पिला दें। तदुपरांत 10 दिन पश्चात् पुनः 10-15 सी0सी0 नीम का तेल पिला दें। बथुए का तेल इसका रामबाण इलाज है।
- पशुओं को हरा चारा में सूखा चारा अवश्य मिलाकर दें। अन्यथा आफरा (टिम्पेती) हो सकती है व पनीले दस्त हो सकते है, जिसकी वजह से उनकी मृत्यु हो सकती है।
डा0 आर0 के0 सिंह
प्राध्यापक एवं प्रिंसिपल नोडल अधिकारी
ग्रामीण कृषि मौसम सेवा,
गो.ब. पन्त कृषि एवं प्रौद्यो. विष्वविद्यालय, पन्तनगर
Expert Communities
We do not share your personal details with anyone
Sign In
Registering to this website, you accept our Terms of Use and our Privacy Policy.
Sign Up
Registering to this website, you accept our Terms of Use and our Privacy Policy.