भारत सरकार के पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय द्वारा वित्त पोषित एवं भारत मौसम विज्ञान विभाग द्वारा संचालित ग्रामीण कृषि मौसम सेवा परियोजना के अंतर्गत राष्ट्रीय मौसम पूर्वानुमान केन्द्र, भारत मौसम विज्ञान विभाग मौसम भवन) नई दिल्ली द्वारा पूर्वानुमानित तथा मौसम केन्द्र) देहरादून द्वारा संसोधित पूर्वानुमानित मध्यम अवधि मौसम आंकड़ों के आधार पर कृषि मौसम विज्ञान विभाग में स्थित कृषि मौसम विज्ञान प्रोद्यो इकाई (AMFU) गो. ब. पंत एवं प्रौद्यो0 विशवविद्यालय पन्नगार द्वारा उधम सिंह नगर एवं नैनीताल के पर्वतीय क्षेत्रों में अगले पाँच दिनों में निम्न मौसम रहने की संभावना व्यक्त की जाती हैं:-
पूर्वानुमानितमौसमतत्व
मौसमपूर्वानुमान - नैनीताल
02/01/2019
03/01/2019
04/01/2019
05/01/2019
06/01/2019
वर्षा (मिमी0)
0
0
0
0
2
अधिक्तर तापमान (डिग्रीसे.ग्रे)
22
23
22
21
22
न्यूनतम तापमान (डिग्रीसे.ग्रे)
4
3
3
2
4
बादलआच्छादन
आंशिकबादल
मध्यमबादल
आंशिकबादल
घनेबादल
घनेबादल
अधिक्तर (सापेक्ष्त आद्रता प्रतिशत)
85
90
85
90
90
न्यूनतम(सापेक्ष्त आद्रता प्रतिशत)
40
45
40
45
40
वायु की औसत गति(कि0मी0प्रतिघंटा)
004
004
004
006
004
वायु की दिशा
पश्चिम-उत्तर- पश्चिम
पूर्व-दक्षिण-पूर्व
उत्तर- पश्चिम
पश्चिम-उत्तर- पश्चिम
पूर्व-दक्षिण-पूर्व
भारत मौसम विज्ञान विभाग के नैनीताल स्थित मौसम विज्ञान वेधशाला (समुद्रतल से ऊँचाई-2084 मीटर) के प्रेक्षणानुसार विगत सात दिनों (25-31 दिसम्बर 2018) में आसमान आंशिक से माध्यम घने बादल छाए रहे तथा मि.मि. वर्षा हुई| अधिक्तम तापमान 18.5 से 22.0 डि0से0 एवं न्यूनतम तापमान 0.6 से 4.4 डि0से0 के बीच रहा तथा वायु में सुबह 0712 बजे सापेक्षित आर्द्रता 90 से 100 प्रतिशत व दोपहर 1412 बजे सापेक्षित आर्द्रता 43 से 62 प्रतिशत एवं मुख्यतः पूर्व-दक्षिण-पूर्व एवं पश्चिम-दक्षिण-पश्चिम दिशा से चली|
ऐसे अनुमानित मौसम में गो. ब. पंत एवं प्रौद्यो0 विशवविद्यालय पन्नगार के वैज्ञानिकों द्वारा इस क्षेत्र के कृषक भाईओं को सलाह दी जाती है कि इस मौसम में विभिन्न फसलों के लिए खेतों में निम्नानुसार कार्यक्रम अपनाएं।
कृषि मौसम परामर्ष
फसल प्रबन्ध:
अगर केवन चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों का ही बहुलता हो तो नवम्बर में बोई गई गेहूं की फसल में 30-40 दिन बाद तथा दिसम्बर में बोई समय में बुवाई के 40-45 दिन बाद 2,4 डी0 के 500 ग्रा0 सक्रिय अवयव या मैटसल्फूरान मिथाइल के 4 ग्रा0 या कारफेप्ट्राजान के 20 ग्रा0 का 500-600 ली0 पानी में घोल कर फलैट - फेन नोजन द्वारा छिड़काव प्रति हेक्टेयर की दर से करे।
कगर सकरी पत्ती वाले खरपतवारो की बहुलता हो तो गेहूं की फसल में बुवाई के 30-35 दिन बाद फिनोक्साडेन 40-45 ग्र0 या सल्फोसल्फूरॉन के 25 ग्रा0 या क्लाडिनाफाप के 60 ग्र0 या फिनोक्साप्राप इथाइल के 100-120/हैक्टेयर का छिड़काव करें।
अगर चौड़ी पत्ती वाले एवं सकरी पत्ती वाले खरपतवारों का मिश्रित प्रकोप हो तो गेहूं की फसल में सल्फोसल्फयूरॉऩ मेटसल्फयूरॉन के 32 ग्रा0 का छिड़काव 500-600 ली0 पानी में घोलकर बुवाई से 25-30 दिन में करे।
जनवरी माह में गेहूँ की बुवाई न करें क्योंकि जनवरी माह में गेहूँ की बुवाइ र् करने पर 60-65 कि0ग्रा0/है0/दिन की दर से कमी आती है तथा फसल पकने के समय गर्म हवा चलने से गेहूँ के दाने बहुत ही पतले हो जाते है।
खेत में खड़े गेहूँ की फसल में पहली सिंचाई बुवाई के 20-25 दिन बाद ताजा मूल जड़ अवस्था पर तथा दूसरी सिंचाई 40-45 दिन की अवस्था पर कल्ले निकलते समय करें।
सरसों में पत्ती धब्बा रोग के नियत्रंण हेतु मैन्कोजेब का 2.5 ग्रा0 प्रति ली0 पानी की दर से घोल बनाकर छिड़काव करे।
उद्यान प्रबन्धः
पातगोभी एवं फूलगोभी में निराई गुड़ाई करे यूरिया की टॉप ड्रेसिंग व खेत में नमी बनाकर रखें।
10 जनवरी के आस-पास आलू की फसल की पत्तियो की कटाई करें।
आलू एवं टमाटर की फसल में पछेती झुलसा रोग के प्रकोप से बचाव हेतु मैनकोजेब 2.5 ग्रा0/ली0 या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 3.0 ग्रा0 प्रति ली0 पानी की दर से घोल बनाकर छिडकाव करे।
टमाटर में पीलापन लिए हुए भूरे धब्बे दिखाई देने पर मैन्कोजेब 2.5 से 3.0 ग्राम प्रति लीटर की दर से घोल बनाकर छिड़काव करें।
बैगन के मुझार्ने की अवस्था मे कार्बन्डाजिम 1.0 ग्राम प्रति लीटर की दर से छिड़काव करें। यदि पूरा पौधा सूख रहा हो तो इसी घोल से जड़ों की सिंचाई करें।
मटर में पौधों की सूखने एवं निचली पत्तियां पीले पड़ने की अवस्था में कार्बन्डाजिम 1.0 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर जड़ों की सिंचाई करें ।
गोभी वर्गीय सब्जियो में पत्ती धब्बा रोग के नियत्रंण हेतु मैन्कोजेब का 2.5 ग्रा0 प्रति ली0 पानी की दर से घोल बनाकर छिड़काव करे।
नए बागों को पाले से बचाव के लिए सिंचाई करें।
करी कीट के नियंत्रण हेतु पालीथीन स्ट्रिप का प्रयोग करें ताकि इन कीटों को पौधों के ऊपर चढ़ने से रोका जा सके। इसके लिए 25 से 30 सेमी चौड़ी पालीथीन लेकर पौधों के मुख्य तना पर जमीन की सतह से लगभग 30-40 सेमी ऊपर पौधों के तनों के चारों ओर से लपेट दें। लपेटने के उपरान्त पालीथीन की निचली तथा ऊपरी सतह पर ग्रीस या खराब तेल का प्रयोग करते हुए पालीथीन के दोनों शिरों को रस्सी से बांध दें।
पशुपालन प्रबन्धः
सरदी से बचाव के लिए पशुघर का प्रबंध ठीक से करें।
पशुओं के बैठने का स्थान समतल होता चाहिए जिससे उनकी उत्पादन क्षमता प्रभावित न हो तथा इस समय नवजात पशुओं के रख-रखाव पर विशेष ध्यान दें।
पशुओं को ठंड से बचाव हेतु सूखी घास, पुवाल जो जानवरों के खाने के उपयोग में नहीं आती को बिछावन के रूप में प्रयोग करें।
खिड़की दरवाजों पर त्रिपाल लगा दें ताकि ठंडी हवा प्रवेश न करें।
ठंड में पशुओं के आहार में तेल और गुड़ की मात्रा बढ़ा दें। अधिक ठंड की स्थिति में पशुओं को अजवाइन और गुड़ दें।
पहाड़ी क्षेत्रों में पशुशाला में गर्मी हेतु हीटर का उपयोग करें। तथा अंगेठी का उपयोग धुंआँ निकलने के बाद कर सकते हैं।
मुर्गियों के आवास के तापमान का अनुरक्षण करें।
पशुओं को धान की कन्नी आहार के रूप में दें। जिससें उन्हें उर्जा और गर्मी मिलती है।
इस बदलते मौसम में नवजात पशुओं में निमोनिया की संभावना ज्यादा रहती है। इसलिए पशुओं की आवास व्यवस्था को सुदृढ़ करें व आहार में गर्म चीजें दें।
जानवरों में प्रसव दर को ध्यान में रखते हुए पशुशाला को अच्छी तरह साफ-सुथरा, सूखा, रोशनीदार, हवादार होना चाहिए। इसके लिए नालियों में तथा आस-पास सूखे चूने का छिड़काव करें तथा जानवर के नीचे सूखा चारा बिछा दें। प्रसव के उपरांत स्वच्छता का पूरा ध्यान रखें। ठंड का समय आ गया है अतः ठंड से बचाव हेतु पशुपालक इसकी ओर ध्यान दें।
डा0 आर0 के0 सिंह
प्राध्यापक एवं प्रिंसिपल नोडल अधिकारी
ग्रामीण कृषि मौसम सेवा,
गो.ब. पन्त कृषि एवं प्रौद्यो. विष्वविद्यालय, पन्तनगर