Expert Advisory Details

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Posted by GB Pant University
Punjab
2018-12-29 16:00:13

Gramin Krishi Seva Bulletin(Udham Singh Nagar)

 मौसम पूर्वानुमान

भारत सरकार के पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय द्वारा वित्त पोषित एवं भारत मौसम विज्ञान विभाग द्वारा संचालित ग्रामीण कृषि मौसम सेवा परियोजना के अंतर्गत राष्ट्रीय मौसम पूर्वानुमान केंदर, भारत मौसम विज्ञान विभाग मौसम भवन, नई दिल्ली द्वारा पुर्वनुमान तथा मौसम आंकड़ो के आधार पर कृषि मौसम विज्ञानं विभाग में स्तिथ कृषि मौसम विज्ञान प्रक्षेत्र इकाई प्राैद्यो0 गो0 ब0 पंत कृषि एवं   विशवविद्यालय, पंतनगर द्वारा उधम सिंह नगर में अगले पांच दिनों में  निम्न मौसम रहने की सम्भावना व्यक्त की जाती है:

पूर्वानुमानित मौसम तत्व

मौसम पूर्वानुमान- उधम सिंह नगर

29/12/2018

30/12/2018

31/12/2018

01/01/2019

02/02/2019

वर्षा(मिमी0)

 

0

 

0

 

0

 

0

 

0

अधिकतम तापमान (डिग्री से.ग्रे.)

 

19

 

19

 

20

 

21

 

21

न्यूनतम तापमान (डिग्री से.ग्रे.)

 

1

 

1

 

2

 

2

 

3

बादल आच्छादन

साफ़

साफ़

आंशिक बादल

आंशिक बादल

बादल

अधिकतम सापेक्षित आर्द्रता (प्रतिशत)

 

85

 

85

 

85

 

85

 

90

न्यूनतम सापेक्षित आर्द्रता (प्रतिशत)

 

40

 

40

 

40

 

40

 

45

वायु की औसत गति (कि0मी0 प्रतिघंटा)

 

006

 

006

 

004

 

006

 

006

वायु की दिशा

उत्तर-पश्चिम

उत्तर-पश्चिम

उत्तर-पश्चिम

उत्तर-पश्चिम

उत्तर-पश्चिम

 

 

 
भारत मौसम विज्ञान विभाग के नैनीताल स्थित मौसम विज्ञान वेधशाला (समुद्रतल से ऊँचाई-243.8 मीटर) के प्रेक्षणानुसार विगत सात दिनों ( 21 - 27 दिसम्बर, 2018 सुबह 8:30 तक) में आसमान में आंशिक बादल छाये रहे तथा अधिकतम तापमान  से 19.0 से 22.5 डि0से0 एवं न्यूनतम तापमान 2.4 से 5.8 डि0से0 के बीच रहा तथा वायु में सुबह 0712 बजे सपेक्षित आर्दता 64  से 100  प्रतिशत व दोपहर 1412  बजे सापेक्षित आर्दता 42  से 62  प्रतिशत एवं हवा 1.5 से 2.9  कि. मी. प्रति घंटा की गति से मुख्यत: पश्चिम- दक्षिण- पश्चिम दिशा से चली|

ऐसे अनुमानित मौसम में गो0 ब0 पन्त कृषि एवं प्राैद्यो0 विश्वविद्यालय, पन्तनगर के वैज्ञानिकों द्वारा इस क्षेत्र के कृषक भाइयों को सलाह दी जाती है कि इस मौसम में विभिन्न फसलों के लिए खेतां में निम्नानुसार कायर्क्रम अपनायें।

कृषि मौसम परामर्श

फसल प्रबन्धः

  • जनवरी माह में गेहूँ की बुवाई न करें क्योंकि जनवरी माह में गेहूँ की बुवाई करने पर 60-65 कि0ग्रा0/है0/दिन की दर से कमी आती है तथा फसल पकने के समय गर्म हवा चलने से गेहूँ के दाने बहुत ही पतले हो जाते है।
  • गन्ने की फसल में निराई गुड़ाई करे एवं शेष बची हुई नत्रजन की मात्रा का समय अनुसार प्रयोग करें।
  • सरसों में पत्ती धब्बा रोग के नियत्रंण हेतु मैन्कोजेब का 2.5 ग्रा0 प्रति ली0 पानी की दर से घोल बनाकर छिड़काव करे।
  • जौं की पछेती दशा में बुवाई हेतु संस्तुत किस्में- ज्योति, प्रीति, मंज ुला, जागृति का चुनाव करें। प्रति हैक्टेयर 100-110 कि0ग्रा0 बीज का उपयोग करें। 18-20 से0मी0 के कतारों में बुवाई करें। बुवाई दिसम्बर के दूसरे पखवाड़े तक अवश्य पूरा कर लें।
  • गेहूँ में खरपतवार नियंत्रण हेतु दो निराई-गुड़ाई पया र्प्त होता है। पहली निराई-गुड़ाई बुवाई के 25-30 दिन बाद तथा दूसरी बुवाई के 45-50 दिन बाद करें। इससे खरपतवार तो नियंत्रण होता ही हैं साथ ही भूमि में समुचित हवा के संचार होने से कल्ले अधिक निकलते है।
  • चौड़ी पत्ति एवं घास वर्ग के खरपतवार के नियंत्रण हेतु वेस्टा की 400 ग्रा0 मात्रा का 700 ली0 पानी मे घोल बनाकर 1 हेक्टेयर में बुवाई के 30-35 दिन बाद छिड़काव करे।
  • समय से बोए गई चनें की फसल में दो बार निराई-गुड़ाई करें। पहली बुवाई के 25-30 दिन बाद तथा दूसरा पहली सिंचाई के बाद बुवाई के 45-50 दिन बाद करें।

उद्यान प्रबन्धः

  • गुजिया कीट को पेड़ पर चढ़ने से रोकने के लिए इस माह के अंतिम सप्ताह में पेड़ के तने पर चारों ओर भूमि से लगभग 40से0मी0 ऊपर मिट्टी की पतली परत चढ़ाकर 400 गेज की मोटी पॉलीथीन की 25 से0मी0 चौड़ी पट्टी लपेट कर उसके दोनों तरफ सुतली से बाँधना चाहिए। साथ ही नीचे के भाग में ग्रास का लेप लगा लेना चाहिए।
  • गुजिया कीट नियंत्रण माह के अंतिम दिनों में 250 ग ्राम क्लोरपाइरीफॉस (1.5 प्रतिशत चूर्ण) प्रत्येक पेड़ की दर से तने के चारों ओर गुड़ाई कर मिट्टी में मिलाएं।
  • छाल खाने वाले कीड़े एवं तना वेदक कीड़ों के नियंत्रण के लिए पहले जालो एवं छेदों को साफ कर देते हैं, फिर छिद्रों में 0.05 प्रतिशत डाइक्लोरोवास का घोल डाल कर इसे बंद कर दें। इनका प्रकोप साल में एक ही बार होता है। यदि प्रकोप होने पर तुरन्त रेकथाम कर ली जाय तो ये हाति नहीं पहुँचा सकते।
  • आम मे फोमा ब्लाइट के नियंत्रण के लिए आवश्यकता पड़ने पर 0.3 प्रतिशत कॉपर आक्सीक्लोराइड (3.0ग्राम/लीटर) का छिड़काव करना चाहिए।
  • बागों की गहरी जुताई करे, जिससे मिज कीट, फल मक्खी, गुजिया कीट एवं जाले वाले कीट की वे अवस्थाएँ जो जमीन में दूसरे वर्ष आने तक पड़ी रहती हैं, नष्ट हो जाये।
  • आलू एवं टमाटर की फसल में पछेती झुलसा रोग के प्रकोप से बचाव हेतु मैनकोजेब 2.5 ग्रा0/ली0 या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 3.0 ग्रा0 प्रति ली0 पानी की दर से घोल बनाकर छिडकाव करे।
  • टमाटर में पीलापन लिए हुए भूरे धब्बे दिखाई देने पर मैन्कोजेब 2.5 से 3.0 ग्राम प्रति लीटर की दर से घोल बनाकर छिड़काव करें।
  • बैगन के मुर्झाने की अवस्था मे कार्बन्डाजिम 1.0 ग्राम प्रति लीटर की दर से छिड़काव करें। यदि पूरा पौधा सूख रहा हो तो इसी घोल से जड़ों की सिंचाई करें।
  • मटर में पौधों की सूखने एवं निचली पत्तियां पीले पड़ने की अवस्था में कार्बन्डाजिम 1.0 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर जड़ों की सिंचाई करें ।
  • गोभी वर्गीय सब्जियो में पत्ती धब्बा रोग के नियत्रंण हेतु मैन्कोजेब का 2.5 ग्रा0 प्रति ली0 पानी की दर से घोल बनाकर छिड़काव करे। 

उद्यान प्रबन्धः

  • गुजिया कीट को पेड़ पर चढ़ने से रोकने के लिए इस माह के अंतिम सप्ताह में पेड़ के तने पर चारों ओर भूमि से लगभग 40से0मी0 ऊपर मिट्टी की पतली परत चढ़ाकर 400 गेज की मोटी पॉलीथीन की 25 से0मी0 चौड़ी पट्टी लपेट कर उसके दोनों तरफ सुतली से बाँधना चाहिए। साथ ही नीचे के भाग में ग्रास का लेप लगा लेना चाहिए।
  • गुजिया कीट नियंत्रण माह के अंतिम दिनों में 250 ग्राम क्लोरपाइरीफॉस (1.5 प्रतिशत चूर्ण ) प्रत्येक पेड़ की दर से तने के चारों ओर गुड़ाई कर मिट्टी में मिलाएं।
  • छाल खाने वाले कीड़े एवं तना वेदक कीड़ों के नियंत्रण के लिए पहले जालो एवं छेदों को साफ कर देते हैं, फिर छिद्रों में 0.05 प्रतिशत डाइक्लोरोवास का घोल डाल कर इसे बंद कर दें। इनका प्रकोप साल में एक ही बार होता है। यदि प्रकोप होने  पर तुरन्त रेकथाम कर ली जाय तो ये हाति नहीं पहुँचा सकते।
  • आम मे फोमा ब्लाइट के नियंत्रण के लिए आवश्यकता पड़ने पर 0.3 प्रतिशत कॉपर आक्सीक्लोराइड (3.0ग्राम/लीटर) का छिड़काव करना चाहिए।
  • बागों की गहरी जुताई करे, जिससे मिज कीट, फल मक्खी, गुजिया कीट एवं जाले वाले कीट की वे अवस्थाएँ जो जमीन में दूसरे वर्ष आने तक पड़ी रहती हैं, नष्ट हो जाये।
  • आलू एवं टमाटर की फसल में पछेती झुलसा रोग के प्रकोप से बचाव हेतु मैनकोजेब 2.5 ग्रा0/ली0 या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 3.0 ग्रा0 प्रति ली0 पानी की दर से घोल बनाकर छिडकाव करे।
  • टमाटर में पीलापन लिए हुए भूरे धब्बे दिखाई देने पर मैन्कोजेब 2.5 से 3.0 ग्राम प्रति लीटर की दर से घोल बनाकर छिड़काव करें।
  • बैगन के मुर्झाने की अवस्था मे कार्बन्डाजिम 1.0 ग्राम प्रति लीटर की दर से छिड़काव करें। यदि पूरा पौधा सूख रहा हो तो इसी घोल से जड़ों की सिंचाई करें।
  • मटर में पौधों की सूखने एवं निचली पत्तियां पीले पड़ने की अवस्था में कार्बन्डाजिम 1.0 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर जड़ों की सिंचाई करें ।
  • गोभी वर्गीय सब्जियो में पत्ती धब्बा रोग के नियत्रंण हेतु मैन्कोजेब का 2.5 ग्रा0 प्रति ली0 पानी की दर से घोल बनाकर छिड़काव करे। 
  • पशुपालन प्रबन्धः 
  • सरदी से बचाव के लिए पशुघर का प्रबंध ठीक से करें। गाय-भैंस को शीतला रोग (रिंडर पेस्ट) का टीका लगवाए।
  • पशुओं को ठंड से बचाव हेतु सूखी घास, पुवाल जो जानवरों के खाने के उपयोग में नहीं आती को बिछावन के रूप में प्रयोग करें। खिड़की दरवाजों पर त्रिपाल लगा दें ताकि ठंडी हवा प्रवेश न करें।
  • इस बदलते मौसम में नवजात पशुओं में निमोनिया की संभावना ज्यादा रहती है। इसलिए पशुओं की आवास व्यवस्था को सुदृढ़ करें व आहार में गर्म चीजें दें।
  • जानवरों में प्रसव दर को ध्यान में रखते हुए पशुशाला को अच्छी तरह साफ-सुथरा, सूखा, रोशनीदार, हवादार होना चाहिए। इसके लिए नालियों में तथा आस-पास सूखे चूने का छिड़काव करें तथा जानवर के नीचे सूखा चारा बिछा दें। प्रसव के उपरांत स्वच्छता का पूरा ध्यान रखें। ठंड का समय आ गया है अतः ठंड से बचाव हेतु पशुपालक इसकी ओर ध्यान दें।
  • भैंस के 1-4 माह के नवजात बच्चों की आहार नलिका में टाक्सोकैराविटूलूरम (केचुआँ/पटेरा) नामक परजीवी पाए जाते है। इसे पटेरा रोग भी कहते है। समय से उपचार न होने की दशा में लगभग 50 प्रतिशत से अधिक नवजात की मृत्यु इसी परजीवी के कारण होती है। इस रोग की पहचान - नवजात को बदबूदार दस्त होना और इसका रंग
  • काली मिट्टी के समान होता है, कब्ज होना, पुनः बदबूदार दस्त होना व इसके साथ केचुआँ या पटेरा का होना,
  • नवजात द्वारा मिट्टी खाना आदि लक्षणों के आधार पर इस रोग की पहचान कर सकते है। रोग की पहचान होते ही पीपराजीन नामक औषधि का प्रयोग कर सकते हैं।
  • पटेरा रोग से बचाव हेतु प्रसव होने के 10 दिन पश्चात् 10-15सी0सी0 नीम का तेल नवजात को पिला दें। तदुपरांत 10 दिन पश्चात् पुनः 10-15 सी0सी0 नीम का तेल पिला दें। बथुए का तेल इसका रामबाण इलाज है।

डा0 आर0 के0 सिंह

 प्राध्यापक एवं प्रिंसिपल नोडल अधिकारी

 ग्रामीण कृषि मौसम सेवा,

गो. ब. पन्त कृषि एवं प्रौद्यो. विष्वविद्यालय, पन्तनगर