Expert Advisory Details

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Posted by GB Pant University
Punjab
2019-01-03 12:14:40

Gramin Krishi Seva Bulletin(Nanital)

मौसम पूर्वानुमान

भारत सरकार के पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय द्वारा वित्त पोषित एवं भारत मौसम विज्ञान विभाग द्वारा संचालित ग्रामीण कृषि मौसम सेवा परियोजना के अंतर्गत राष्ट्रीय मौसम पूर्वानुमान केन्द्र, भारत मौसम विज्ञान विभाग मौसम भवन) नई दिल्ली द्वारा पूर्वानुमानित तथा मौसम केन्द्र) देहरादून द्वारा संसोधित पूर्वानुमानित मध्यम अवधि मौसम आंकड़ों के आधार पर कृषि मौसम विज्ञान विभाग में स्थित कृषि मौसम विज्ञान प्रोद्यो इकाई (AMFU) गो. ब. पंत एवं प्रौद्यो0 विशवविद्यालय पन्नगार द्वारा नैनीताल जिले के पर्वतीय क्षेत्रों में अगले पाँच दिनों में निम्न मौसम रहने की संभावना व्यक्त की जाती हैं:- 

 

पूर्वानुमानित मौसम तत्व

                                                  मौसम पूर्वानुमान - नैनीताल

02/01/2019

03/01/2019

04/01/2019

05/01/2019

06/01/2019

वर्षा (मिमी0)

0

0

0

0

1

अधिक्तर तापमान (डिग्री से.ग्रे)

17

16

15

14

15

न्यूनतम तापमान (डिग्री से.ग्रे)

4

3

2

3

4

बादल आच्छादन

आंशिक बादल

मध्यम बादल

आंशिक बादल

घने बादल

घने बादल

अधिक्तर  (सापेक्ष्त आद्रता प्रतिशत)

85

90

85

90

90

न्यूनतम(सापेक्ष्त आद्रता प्रतिशत)

40

45

40

45

40

वायु की औसत गति(कि0मी0प्रतिघंटा)

004

004

004

006

004

वायु की दिशा

पच्छिम-उत्तर-पच्छिम

पूर्व-दक्षिण-पूर्व

उत्तर-पच्छिम

पच्छिम-उत्तर-पच्छिम

पूर्व-दक्षिण-पूर्व

 

भारत मौसम विज्ञान विभाग के नैनीताल स्थित मौसम विज्ञान वेधशाला (समुद्रतल से ऊँचाई-2084 मीटर) के प्रेक्षणानुसार विगत सात दिनों (25-31 दिसम्बर 2018) में आसमान साफ रहने के साथ कही-कही घने  बादल छाए रहे तथा अधिक्तम तापमान 8-4 से 17-2 डि0से0 एवं न्यूनतम  तापमान -3-0 से 3-9 डि0से0 के बीच रहा। ऐसे अनुमानित मौसम में गो. ब. पंत एवं प्रौद्यो0 विशवविद्यालय पन्नगार के वैज्ञानिकों द्वारा इस क्षेत्र के कृषक भाईओं को सलाह दी जाती है कि इस मौसम में विभिन्न फसलों के लिए खेतों में निम्नानुसार कार्यक्रम अपनाएं। 

 

कृषि मौसम परामर्ष

फसल प्रबन्ध:

  • दलहनी फसलो में, क्यूजानफॉप पी-मिथाइल ( टर्गा सुपर) 5 ई0 सी0 की 1 ली0 मात्रा को 700 ली0 पानी में घोल बनाकर बुवाई के 15-20 दिन बाद छिड़काव करें।
  • दलहनी फसलों में खरपतवार नियंत्रण हेतु अगर मजदूर उपलब्ध हों तो पहली निराई, बुवाई के 20-25 दिन बाद और दूसरी 35-40 दिन बाद करें।
  • गेहूँ की फसल में चौड़ी पत्ति एवं घास वर्ग के खरपतवार के नियंत्रण हेतु वेस्टा की 400 ग्रा0 मात्रा का 700 ली0 पानी मे घोल बनाकर 1 हेक्टेयर में बुवाई के 30-35 दिन बाद छिड़काव करे। 
  • गेहूँ की फसल में खरपतवार के नियंत्रण हेतु, टोटल (या सल्फोसल्फोरॉन एवं मेटसल्फयूरॉन मिथाईल) की 40 ग्रा0 मात्रा को 700 ली0 पानी में घोलकर बनाकर 25-30 दिन बाद/हेक्टेयर में छिड़काव करे।
  • शरदकालीन गन्नें की फसल में यदि श्रमिक उपलब्ध हों तो फावड़े से एक गहरी गुड़ाई करने के उपरांत सिचांई करके अनुमोदित मात्रा की लगभग 40 कि0ग्रा0/है0 की दर से एक चौथाई नत्रजन (लगभग 82 कि0ग्रा0 यूरिया/है0) का प्रयोग करें।
  • पेड़ी वाले गन्नें की फसल में 60 कि0ग्रा0 नत्रजन, 60 कि0ग्रा0 फास्फोरस एवं 40 कि0ग्रा0 पोटाश प्रति हैक्टेयर की दर से नमी की उपस्थिति में प्रयोग कर अच्छी तरह से मिट्टी में मिला दें तथा खरपतवारों के नियंत्रण के लिए गन्ने की सूखी पत्तियों को गन्ने की दो कतारों के बीच में मोटी परत बिछाने से मृदा में नमी बनी रहती है तथा खरपतवारों का नियंत्रण भी होता है। जिन किसानों को पेड़ी गन्ने की फसल लेनी है उनकी कटाई मध्य फरवरी में ही करें।
  • आवश्यकतानुसार फसलों में निराई गुड़ाई, सिंचाई एवं पोषक तत्वों का प्रबन्धन करें।
  • सरसों में पत्ती धब्बा रोग के नियत्रंण हेतु मैन्कोजेब का 2.5 ग्रा0 प्रति ली0 पानी की दर से घोल बनाकर छिड़काव करे।
  • पाला/कोहरा पड़ने की स्थिति में समय-समय पर सिंचाई करें।

उद्यान प्रबन्धः 

  • पूर्व में आरक्षित किये शीतोष्ण फल वृक्षो जैसे सेब, नाशपाती, खुबानी, अखरोट आदि फल वृक्षो को लगाने का कार्य प्रारम्भ करे।
  • शीतोष्ण फल पौधों के थाले बनाये तथा गोबर, नत्रजन एवं फास्फोरस की उचित मात्रा का प्रयोग करे।
  • सेब में कैंकर रोग की रोकथाम के लिए कटाई छटाई के उपरान्त कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 0.3 प्रतिशत का प्रयोग करे। कटाई छटाई के दौरान रोगी एवं कीट ग्रसित अथवा अवांछनीय शाखाओ को काटकर कीटनाशक तथा फफॅूदी नाशक रसायनो का छिडकाव करे।
  • सेब तथा गुठलीदार फलों में तना विगलन रोग की रोकथाम के लिए प्रभावित सेब तथा गुठलीदार फलों के तनों के चारों तरफ मिट्टी हटाएँ जिससे धूप की किरणें ग्रसित भाग पर पड़े। प्रभावित छालों को हटाकर इसमें चौबटिया पेस्ट लगाकर मिट्टी से ढक दें। इसके अलावा 0.3 प्रतिशत कॉपरऑक्सीक्लोराइड की प्रति पौधा से ड्रैंचिंग करें।
  • ऊँचे पर्वतीय क्षेत्रों में सेब, नाशपाती, आड़ू, प्लम, खुमानी आदि शीतोष्ण फल वृक्षों में कटाई-छटाई शुरू करें।
  • सेब एवं अन्य गुठलीदार फल पौधों को आगामी शीतऋतु में रोपण हेतु लेआउट तथा गढ्ढों की खुदाई का काम प्रारंभ करें।
  • आलू एवं टमाटर की फसल में पछेती झुलसा रोग के प्रकोप से बचाव हेतु मैनकोजेब 2.5 ग्रा0/ली0 या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 3.0 ग्रा0 प्रति ली0 पानी की दर से घोल बनाकर छिडकाव करे।
  • सिंचित घाटी क्षेत्रों में टमाटर, शिमला मिर्च एवं बैगन की खेती के लिए पॉलीहाउस या पॉलीटनल में सब्जी पौध तैयार करने के लिए स्थान का चुनाव कर मिट्टी का उपचार करें साथ ही साथ किसी अच्छे संस्था से जलवायु के अनुरूप प्रजाति का चुनाव कर बीज क्रय करें।
  • बन्दगोभी, फूलगोभी, मूली, शलजम आदि बीजू फसलो में निराई गुड़ाई तथा कीट नियंत्रण  हेतु रसायनो का छिड़काव करे।
  • टमाटर में पीलापन लिए हुए भूरे धब्बे दिखाई देने पर मैन्कोजेब 2.5 से 3.0 ग्राम प्रति लीटर की दर से घोल बनाकर छिड़काव करें।
  • गोभी वर्गीय सब्जियो में पत्ती धब्बा रोग के नियत्रंण हेतु मैन्कोजेब का 2.5 ग्रा0 प्रति ली0 पानी की दर से घोल बनाकर छिड़काव करे।
  • टमाटर के मुर्झाने की अवस्था मे ट्राइकोडर्मा हरजियानम या सूडोमोनास फलोरीसेंस का 8 से 10 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर संक्रमित पौधों व उसके आस पास क पौधो मे छिड़काव करे।

पशुपालन प्रबन्धः

  • सरदी से बचाव के लिए पशुघर का प्रबंध ठीक से करें।
  • पशुओं के बैठने का स्थान समतल होता चाहिए जिससे उनकी उत्पादन क्षमता प्रभावित न हो तथा इस समय नवजात पशुओं के रख-रखाव पर विशेष ध्यान दें।
  • पशुओं को ठंड से बचाव हेतु सूखी घास, पुवाल जो जानवरों के खाने के उपयोग में नहीं आती को बिछावन के रूप में प्रयोग करें। खिड़की दरवाजों पर त्रिपाल लगा दें ताकि ठंडी हवा प्रवेश न करें। 
  • ठंड में पशुओं के आहार में तेल और गुड़ की मात्रा बढ़ा दें। अधिक ठंड की स्थिति में पशुओं को अजवाइन और गुड़ दें।
  • पहाड़ी क्षेत्रों में पशुशाला में गर्मी हेतु हीटर का उपयोग करें। तथा अंगेठी का उपयोग धुंआँ निकलने के बाद कर सकते हैं।
  • मुर्गियों के आवास के तापमान का अनुरक्षण करें।
  • पशुओं को धान की कन्नी आहार के रूप में दें। जिससें उन्हें उर्जा और गर्मी मिलती है।
  • इस बदलते मौसम में नवजात पशुओं में निमोनिया की संभावना ज्यादा रहती है। इसलिए पशुओं की आवास व्यवस्था को सुदृढ़ करें व आहार में गर्म चीजें दें।
  • जानवरों में प्रसव दर को ध्यान में रखते हुए पशुशाला को अच्छी तरह साफ-सुथरा, सूखा, रोशनीदार, हवादार होना चाहिए। इसके लिए नालियों में तथा आस-पास सूखे चूने का छिड़काव करें तथा जानवर के नीचे सूखा चारा बिछा दें। प्रसव के उपरांत स्वच्छता का पूरा ध्यान रखें। ठंड का समय आ गया है अतः ठंड से बचाव हेतु पशुपालक इसकी ओर ध्यान दें।
  • भैंस के 1-4 माह के नवजात बच्चों की आहार नलिका में टाक्सोकैराविटूलूरम (केचुआँ/पटेरा) नामक परजीवी पाए जाते है। इसे पटेरा रोग भी कहते है। समय से उपचार न होने की दशा में लगभग 50 प्रतिशत से अधिक नवजात की मृत्यु इसी परजीवी के कारण होती है। इस रोग की पहचान - नवजात को बदबूदार दस्त होना और इसका रंग काली मिट्टी के समान होता है, कब्ज होना, पुनः बदबूदार दस्त होना व इसके साथ केचुआँ या पटेरा का होना, नवजात द्वारा मिट्टी खाना आदि लक्षणों के आधार पर इस रोग की पहचान कर सकते है। रोग की पहचान होते ही पीपराजीन नामक औषधि का प्रयोग कर सकते हैं।
  • पटेरा रोग से बचाव हेतु प्रसव होने के 10 दिन पश्चात् 10-15सी0सी0 नीम का तेल नवजात को पिला दें। तदुपरांत 10 दिन पश्चात ् पुनः 10-15 सी0सी0 नीम का तेल पिला दें। बथुए का तेल इसका रामबाण इलाज है।
  • पशुओं को हरा चारा में सूखा चारा अवश्य मिलाकर दें। अन्यथा आफरा (टिम्पेती) हो सकती है व पनीले दस्त हो सकते है, जिसकी वजह से उनकी मृत्यु हो सकती है।

 

डा0 आर0 के0 सिंह

प्राध्यापक एवं  प्रिंसिपल नोडल अधिकारी

ग्रामीण कृषि मौसम सेवा,

गो.ब. पन्त कृषि एवं प्रौद्यो. विष्वविद्यालय, पन्तनगर