
Posted by GB Pant University
Punjab
2018-12-29 14:47:15
Gramin Krishi Seva Bulletin(Nanital)

मौसम पूर्वानुमान
भारत सरकार के पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय द्वारा वित्त पोषित एवं भारत मौसम विज्ञान विभाग द्वारा संचालित ग्रामीण कृषि मौसम सेवा परियोजना के अंतर्गत राष्ट्रीय मौसम पूर्वानुमान केंदर, भारत मौसम विज्ञान विभाग मौसम भवन, नई दिल्ली द्वारा पुर्वनुमान तथा मौसम आंकड़ो के आधार पर कृषि मौसम विज्ञानं विभाग में स्तिथ कृषि मौसम विज्ञान प्रक्षेत्र इकाई प्राैद्यो0 गो0 ब0 पंत कृषि एवं विशवविद्यालय, पंतनगर द्वारा नैनीताल जिले में अगले पांच दिनों में निम्न मौसम रहने की सम्भावना व्यक्त की जाती है:
पूर्वानुमानित मौसम तत्व |
मौसम पूर्वानुमान-नैनीताल |
||||
29/12/2018 |
30/12/2018 |
31/12/2018 |
01/01/2019 |
02/02/2019 |
|
वर्षा(मिमी0) |
0 |
0 |
0 |
0 |
0 |
अधिकतम तापमान(डिग्री से.ग्रे.) |
9 |
9 |
10 |
10 |
11 |
न्यूनतम तापमान(डिग्री से.ग्रे.) |
-3 |
-2 |
-1 |
0 |
2 |
बादल आच्छादन |
साफ़ |
साफ़ |
आंशिकबादल |
आंशिकबादल |
बादल |
अधिकतम सापेक्षितआर्द्रता(प्रतिशत) |
85 |
85 |
85 |
85 |
90 |
न्यूनतम सापेक्षितआर्द्रता(प्रतिशत) |
40 |
40 |
40 |
40 |
45 |
वायु की औसत गति (कि0मी0 प्रतिघंटा) |
6 |
6 |
4 |
6 |
6 |
वायु की दिशा |
उत्तर-पश्चिम |
उत्तर-पश्चिम |
उत्तर-पश्चिम |
उत्तर-पश्चिम |
उत्तर-पश्चिम |
भारत मौसम विज्ञान विभाग के नैनीताल स्थित मौसम विज्ञान वेधशाला (समुद्रतल से ऊँचाई-2084 मीटर) के प्रेक्षणानुसार विगत सात दिनों ( 21 - 27 दिसम्बर, 2018 सुबह 8:30 तक) में आसमान में आंशिक बादल छाये रहे तथा अधिकतम तापमान 8.4 से 16.2 डि0से0 एवं न्यूनतम तापमान -3.0 से 3.6 डि0से0 के बीच रहा। ऐसे अनुमानित मौसम में गो0 ब0 पन्त कृषि एवं प्राैद्यो0 विश्वविद्यालय, पन्तनगर के वैज्ञानिकों द्वारा इस क्षेत्र के कृषक भाइयों को सलाह दी जाती है कि इस मौसम में विभिन्न फसलों के लिए खेतां में निम्नानुसार कायर्क्रम अपनायें।
कृषि मौसम परामर्श
फसल प्रबन्धः
- गन्ने की फसल में निराई गुड़ाई करे एवं शेष बची हुई नत्रजन की मात्रा का समय अनुसार प्रयोग करें।
- सरसों में पत्ती धब्बा रोग के नियत्रंण हेतु मैन्कोजेब का 2.5 ग्रा0 प्रति ली0 पानी की दर से घोल बनाकर छिड़काव करे।
- दलहनी फसलो में, क्यूजानफॉप पी-मिथाइल ( टरगा सुपर) 5 ई0 सी0 की 1 ली0 मात्रा का 700 ली0 पानी में घोल बनाकर बुवाई के 15-20 दिन बाद छिड़काव करें।
- भावर क्षेत्र में विलम्ब से बुवाई 25 दिसम्बर तक करे। देर में बोई जाने वाली प्रजातियॉ यू0पी0 2425 यू0पी 2328, पी0बी0डब्लू 373, यू0पी0 2526, यू0पी0 2565 की बुवाइ्र करे।
- चौड़ी पत्ति एवं घास वर्ग के खरपतवार के नियंत्रण हेतु वेस्टा की 400 ग्रा0 मात्रा का 700 ली0 पानी मे घोल बनाकर 1 हेक्टेयर में बुवाई के 30-35 दिन बाद छिड़काव करे।
- टोटल (या सल्फ़ोसल्फोरॉन एवं मेटसल्फयूरॉन मिथाईल) 40 ग्रा0 मात्रा को 700 ली0 पानी में घोलकर बनाकर 25-30 दिन बाद/हेक्टेयर में छिड़काव करे।
- पाला/कोहरा पड़ने की स्थिति में समय-समय पर सिंचाई करें।
- दलहनी फसलों में खरपतवार नियंत्रण हेतु अगर मजदूर उपलब्ध हों तो पहली निराई, बुवाई के 20-25 दिन बाद और दूसरी 35-40 दिन बाद करें।
उद्यानप्रबन्धः
- ऊँचे पवर्तीय क्षेत्रो मे जहां पॉलीहाउस के भीतर टमाटर, शिमलामिचर् एवं खीरा की खेती की जानी है, मे सफाई कर मिट्टी की खुदाई करें तथा फार्मलीन जैसे रसायन से उपचार करे।
- आलू एवं टमाटर की फसल में पछेती झुलसा रोग के प्रकोप से बचाव हेतु मैनकोजेब 2.5 ग्रा0/ली0 या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 3.0 ग्रा0 प्रति ली0 पानी की दर से घोल बनाकर छिडकाव करे।
- सिंचित घाटी क्षेत्रों में टमाटर, शिमला मिचर् एवं बैगन की खेती के लिए पॉलीहाउस या पॉलीटनल में सब्जी पौध तैयार करने के लिए स्थान का चुनाव कर मिट्टी का उपचार करें साथ ही साथ किसी अच्छे संस्था से जलवायु के अनुरूप प्रजाति का चुनाव कर बीज क्रय करें।
- बन्दगोभी, फूलगोभी, मूली, शलजम आदि बीजू फसलो में निराई गुड़ाई तथा कीट नियत्रंण हेतु रसायनो का छिड़काव करे।
- टमाटर में पीलापन लिए हुए भूरे धब्बे दिखाई देने पर मैन्कोजेब 2.5 से 3.0 ग्राम प्रति लीटर की दर से घोल बनाकर छिड़काव करें।
- गोभी वगी र्य सब्जियो में पत्ती धब्बा रोग के नियत्रंण हेतु मैन्कोजेब का 2.5 ग्रा0 प्रति ली0 पानी की दर से घोल बनाकर छिड़काव करे।
- टमाटर के मुर्झाने की अवस्था मे ट्राइकोडर्मो हरजियानम या सूडोमोनास फलोरीसेंस का 8 से 10 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर संक्रमित पौधो व उसके आस पास क पौधो मे छिड़काव करे।
- सेब में कैंकर रोग की रोकथाम के लिए कटाई छटाई के उपरान्त कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 0.3 प्रतिशत का प्रयोग करे। कटाई छटाई के दौरान रोगी एवं कीट ग्रसित अथवा अवांछनीय शाखाओ को काटकर कीटनाशक तथा फफॅूदी नाशक रसायनो का छिडकाव करे।
- ऊँचाई वाले क्षेत्रों में जंगली खुमानी, आड़ू, मेहल, जंगली नाशपाती, सेब आदि का बीज इकट्ठा करके सुखायें। तद्पश्चात् उचित उपचार के पश्चात् बोने की प्रक्रिया शुरू करें।
- थाले बनाने का कार्य प्रारम्भ करें तथा पेड़ के तनों पर चूना $ नीला थोथा तथा अलसी के तेल क्रमशः 30 कि0ग्रा0, 500ग्रा0 और 500 मि0ली0 को 100 लीटर पानी में घोलकर जमीन से 2.3 फिट तक पुताई का कार्य करें।
पशुपालनप्रबन्धः
- सरदी से बचाव के लिए पशुघर का प्रबंध ठीक से करें। गाय-भैंस को शीतला रोग (रिंडर पेस्ट) का टीका लगवाए।
- पशुओं को ठंड से बचाव हेतु सूखी घास, पुवाल जो जनवरों के खाने के उपयोग में नहीं आती को बिछावन के रूप में प्रयोग करें। खिड़की दरवाजों पर त्रिपाल लगा दें ताकि ठंडी हवा प्रवेश न करें।
- इस बदलते मौसम में नवजात पशुओं में निमोनिया की संभावना ज्यादा रहती है। इसलिए पशुओं की आवास व्यवस्था को सुदृढ़ करें व आहार में गर्म चीजें दें।
- जानवरों में प्रसव दर को ध्यान में रखते हुए पशुशाला को अच्छी तरह साफ-सुथरा, सूखा, रोशनीदार, हवादार होना चाहिए। इसके लिए नालियों में तथा आस-पास सूखे चूने का छिड़काव करें तथा जानवर के नीचे सूखा चारा बिछा दें। प्रसव के उपरांत स्वच्छता का पूरा ध्यान रखें। ठंड का समय आ गया है अतः ठंड से बचाव हेतु पशुपालक इसकी ओर ध्यान दें।
- भैंस के 1-4 माह के नवजात बच्चों की आहार नलिका में टाक्सोकैराविटूलूरम (केचुआँ/पटेरा) नामक परजीवी पाए जाते है। इसे पटेरा रोग भी कहते है। समय से उपचार न होने की दशा में लगभग 50 प्रतिशत से अधिक नवजात की मृत्यु इसी परजीवी के कारण होती है। इस रोग की पहचान - नवजात को बदब ूदार दस्त हा ेना और इसका रंग
- काली मिट्टी के समान होता है, कब्ज होना, पुनः बदबूदार दस्त होना व इसके साथ केचुआँ या पटेरा का होना, नवजात द्वारा मिट्टी खाना आदि लक्षणों के आधार पर इस रोग की पहचान कर सकते है। रोग की पहचान होते ही पीपराजीन नामक औषधि का प्रयोग कर सकते हैं।
- पटेरा रोग से बचाव हेतु प्रसव होने के 10 दिन पश्चात् 10-15सी0सी0 नीम का तेल नवजात को पिला दें। तदुपरांत 10 दिन पश्चात ् पुनः 10-15 सी0सी0 नीम का तेल पिला दें। बथुए का तेल इसका रामबाण इलाज है।
- मुर्गियों में फफूँदजनित आहार देने से अपलाटॉक्सीकोशिस हो जाती है जिसकी वजह से काफी संख्या में उनकी मृत्यु होने की संभावना होती है। एैसे में मुगि र्यों को पशुचिकितसक की सलाह से दवा दें।
- पशुओं को हरा चारा में सूखा चारा अवश्य मिलाकर दें। अन्यथा आफरा (टिम्पेती) हो सकती है व पनीले दस्त हो सकते है, जिसकी वजह से उनकी मृत्यु हो सकती है।
डा0 आर0 के0 सिंह
प्राध्यापक एवं प्रिंसिपल नोडल अधिकारी
ग्रामीण कृषि मौसम सेवा,
गो. ब. पन्त कृषि एवं प्रौद्यो. विष्वविद्यालय, पन्तनगर
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