Expert Advisory Details

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Posted by GB Pant University
Punjab
2018-12-08 10:27:55

Gramin Krishi Mousam Seva Bulletin(Nanital)

मौसम पूर्वानुमानः

भारत सरकार के पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय द्वारा वित्त पोषित एवं भारत मौसम विज्ञान विभाग द्वारा संचालित ग्रामीण कृषि मौसम सेवा परियोजना के अन्तर्गत राष्ट्रीय मौसम पूर्वानुमान केन्द्र, भारत मौसम विज्ञान विभाग, मौसम भवन, नई दिल्ली द्वारा पूर्वानुमानित तथा मौसम केन्द्र, देहरादून द्वारा संसोधित पूर्वानुमानित मध्यम अवधि मौसम आँकडा़ं के आधार पर कृषि मासै विज्ञान विभाग में स्थित कृषि मौसम विज्ञान प्रक्षेत्र इकाई (AMFU) गो0 0 पन्त कृषि एवं प्रौद्यो0 विश्वविद्यालय, पन्तनगर द्वारा नैनीताल जिले में अगले पाँच दिनों मेंनिम्न मौसम रहने की संभावना व्यक्त की जाती है :-

पूर्वानुमानित मौसम तत्व

ekSle iwokZuqeku&uSuhrky

05/12/2018

06/12/2018

07/12/2018

08/12/2018

09/12/2018

वर्षा (मिमी0)

0

0

0

0

0

अधिकतम तापमान (डिग्री से.ग्रे.)

14

13

13

13

13

न्यूनतम तापमान (डिग्री से.ग्रे.)

05

05

04

04

03

बादल आच्छादन

आंशिक बादल

आंशिक बादल

मध्यम बादल

आंशिक बादल

आंशिक बादल

अधिकतम सापेक्षित आर्द्रता (प्रतिशत)

85

85

85

80

80

न्यूनतम सापेक्षित आर्द्रता (प्रतिशत)

45

40

45

40

40

वायु की औसत गति (कि0मी0 प्रतिघंटा)

004

006

004

006

006

वायु की दिशा

उत्तर-पश्चिम

उत्तर-पश्चिम

उत्तर-पश्चिम

उत्तर-पश्चिम

उत्तर-पश्चिम

 

भारत मौसम विज्ञान विभाग के नैनीताल स्थित मौसम विज्ञान वेधशाला (समुद्रतल से ऊँचाई-2084 मीटर) के प्रेक्षणानुसार विगत सात दिनों ( 27 नवम्बर - 3 दिसम्बर, 2018 सुबह 8:30 तक) में आसमान में आंशिक बादल छाये रहे तथा अधिकतम तापमान 14.3 से 17.6 डि0से0 एवं न्यूनतम तापमान 5.2 से 7.7 डि0से0 के बीच रहा। ऐसे अनुमानित मौसम में गो0 0 पन्त कृषि एवं प्रौद्यो0 विश्वविद्यालय, पन्तनगर के वैज्ञानिकों द्वारा इस क्षेत्र के कृषक भाइयों को सलाह दी जाती है कि इस मौसम में विभिन्न फसलों के लिए खेतों में निम्नानुसार कार्यक्रम अपनायें।

 

कृषि मौसम परामर्श

फसल प्रबन्धः

·         गेहूँ की देर से बोने वाली प्रजातियो की बुवाई करें। फसलों की बुवाई से पूर्व बीज उपचार अवश्य करें।

·         गेहूँ के बीज का टाइकोडर्मा 5 ग्राम $ सूडोमोनास 5 ग्राम/1 ग्राम बीज की दर से उपचारित करें।

·          दलहनी फसलों हेतु थीरम 2 ग्राम $ कार्बन्डाजीन 1 ग्राम/किग्रा बीज तथा तिलहनी फसलों में मैटालेक्जिल 6 ग्राम/किग्रा बीज की दर से उपचारित करें।

·          गेहूँ एवं जौ की बुवाई के तुरंत बाद या 3 दिन के अंदर उचित नमी की अवस्था में पेन्डीमेथिलीन 30 ईसी की 2.5 से 3.3 लीटर मात्रा को 750 लीटर पानी में घोल बनाकर अथवा बुवाई के 30-35 दिन बाद वैस्टा शाखनाशी की 400 ग्राम दवा को 500 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें। जिससे एक वर्षीय घासकुल एवं कुछ चौड़ी पत्ति वाले खरपतवारों का नियंत्रण किया जा सके।

·         किसान भाई अपने क्षेत्रों के लिए अनुमोदित प्रजातियों की ही बुवाई करें।

·         जैविक खेती करने वाले किसान भाई सभी फसलों हेतु ट्राइकोडर्मा हरजियानम $ सोडोमोनास के 5-5

·         ग्राम/कि0ग्रा0 बीज के हिसाब से बीज उपचार करें। तथा पोषक तत्वों की पूर्ति वर्मीकम्पोस्ट या सड़ी हुई गोबर की खाद एवं जैव उर्वरक के द्वारा करें। भूमजनित बीमारियों की रोक-थाम के लिए 250ग्राम ट्राइकोडर्मा $ 250 ग्राम सेडोमोनास जैव अभिक्रता से प्रति क्विंटल की दर से वर्मीकम्पोस्ट एवं गोबर की खाद को उपचारित कर एक सप्ताह के लिए छाया में रखें तथा बुवाई से पूर्व खेत में अच्छी प्रकार से मिला दें।

·          दलहनी फसलों में खरपतवार नियंत्रण हेतु अगर मजदूर उपलब्ध हों तो पहली निराई, बुवाई के 20-25 दिन बाद और दूसरी 35-40 दिन बाद करें।

·         चनें में सिंचित दशा में फ्लूक्लोरोलिन 1.7 लीटर अथवा टा्रईफलूरोलिन शाखनाशी की 1.5 लीटर मात्रा को 800 लीटर पानी में घोल बनाकर बुवाई से पूर्व छिड़काव करने से खरपतवारों का नियंत्रण हो जाता है।

उद्यानप्रबन्धः

·         सिंचित घाटी क्षेत्रों में मेथी, पालक तथा हरे पत्ते एवं मसाले के लिए धनियां की फसल में सिंचाई कर समय-समय पर गुड़ाई करे।

·         पर्वतीय क्षेत्रो में यदि पूर्व में पॉलीहाउस के भीतर सब्जी राई-पौध का प्रतिरोपण हुआ हो तो उपयुक्त नमी की अवस्था में यूरिया की टॅापड्रेसिंग कर गुड़ाई करें। यदि पत्ते कटाई हेतु तैयार हों तो बाजार में बिक्रि करें।

·         मध्यम पर्वतीय असिंचित क्षेत्रों में जहां ओला गिरने की संभावना कम रहती हो, में अर्किल मटर की बुवाई करे।

·         घाटी क्षेत्रो में पूर्व में बोये गये आलू की फसल में पाले के बचाव हेतु समय-समय पर सिंचाई करते रहे।

·         सिंचित घाटियों में यदि प्याज की पहाडी किस्मो की पौध तैयार हो गयी हो तो प्रतिरोपण करें।

·         आलू के अगेती फसल में भूरे गोल धब्बे दिखाई देने पर मैन्कोजेब 2.5 ग्राम प्रति लिटर पानी की दर से घोल बनाकर छिड़काव करें।

·         मटर की बुवाई से पूर्व बीज को थीरम 2 ग्राम $ कार्बन्डाजिम 1 ग्राम प्रति किग्रा बीज या ट्राईकोडर्मा 6 से 10 ग्राम प्रति किग्रा बीज की दर से उपचारित करने के बाद बुवाई करें।

·         सेब तथा गुठलीदार फलों में तना विगलन रोग की रोकथाम के लिए प्रभावित सेब तथा गुठलीदार फलों के तनों के चारों तरफ मिट्टी हटाएँ जिससे धूप की किरणें ग्रसित भाग पर पड़े। प्रभावित छाओं को हटाकर इसमें चौबटिया पेस्ट लगाकर मिट्टी से ढक दें। इसके अलावा 0.3 प्रतिशत कॉपरऑक्सीक्लोराइड की प्रति पौधा में ड्रैंचिंग करें।

·         सेब की पत्तियों पर यूरिया 5 प्रतिशत का छिड़काव पत्ते झड़ने की अवस्था से एक सप्ताह पूर्व करें।

·         ऊँचाई वाले क्षेत्रों में जंगली खुमानी, आड़ू, मेहल, जंगली नाशपाती, सेब आदि का बीज इकट्ठा करके सुखायें। तद्पश्चात् उचित उपचार के पश्चात् बोने की प्रक्रिया शुरू करें।

·         खाद उर्वरक तथा फफूदीनाशक/कीटनाशक दवाईयाँ जो गढ्ढों में भरते समय मिट्टी में मिलाई जाती है का प्रबन्ध उचित मात्रा में कर लें।

·         पर्णपाती पौधों में लगाये जाने वाले पौधों की उत्तम किस्मों का आरक्षण अभी से कर ले अन्यथा बाद में अच्छे पौधें न मिलने पर परेशानी हो सकती है।

·         थाले बनाने का कार्य प्रारम्भ करें तथा पेड़ के तनों पर चूना $ नीला थोथा तथा अलसी के तेल क्रमशः 30 कि0ग्रा0, 500ग्रा0 और 500 मि0ली0 को 100 लीटर पानी में घोलकर जमीन से 2.3 फिट तक पुताई का कार्य करें।

पशुपालनप्रबन्धः

·         पशुओं को ठंड से बचाव हेतु सूखी घास, पुवाल जो जानवरों के खाने के उपयोग में नहीं आती को बिछावन के रूप

·         में प्रयोग करें। खिड़की दरवाजों पर त्रिपाल लगा दें ताकि ठंडी हवा प्रवेश करें।

·         ठंड में पशुओं के आहार में तेल और गुड़ की मात्रा बढ़ा दें। अधिक ठंड की स्थिति में पशुओं को अजवाइन और गुड़ दें।

·         पशुओं के बैठने का स्थान समतल होता चाहिए तथा इस समय नवजात पशुओं के रख-रखाव पर विशेष ध्यान दें।

·         पहाड़ी क्षेत्रों में पशुशाला में गर्मी हेतु हीटर का उपयोग करें। तथा अंगेठी का उपयोग धुंआँ निकलने के बाद कर सकते हैं।

·         मुर्गियों के आवास के तापमान का अनुरक्षण करें।

·         पशुओं को धान की कन्नी आहार के रूप में दें। जिससें उन्हें उर्जा और गर्मी मिलती है।

·         इस बदलते मौसम में नवजात पशुओं में निमोनिया की संभावना ज्यादा रहती है। इसलिए पशुओं की आवास व्यवस्था को सुदृढ़ करें आहार में गर्म चीजें दें।

·         वर्षा के बाद नाना प्रकार के अन्तः परजीवी आहार नलिका में उत्पन्न हो जाते है। जो पशुओ का आहार स्वंय ग्रहण कर लेते है। अतः सर्वप्रथम निकटतम पशुओ का कृमिनाशक औषधि दें।

·         जिन पशुओं में एफ0एम0डी0 (मुखपका खुरपका) रोग के टीके नही लगें है उन पशुओं में तत्काल टीकाकरण करा लें। ताकि आपका पशुधन स्वस्थ रहे और उससे लगातार आपको सही उत्पादन प्राप्त होता रहें।

·         खुरपका मुखपका के लक्षण-आँखें लाल होना, तेज बुखार होना (105-107◦थ्), उत्पादन तथा आहार ग्रहण करने की क्षमता में कमी होना, मुहँ में छाले होना,लार गिरना समय से उपचार मिलने की दशा में पशु के खुरों में घाँव बनना जिसकी वजह से पशुओं का लंगड़ाकर चलना आदि लक्षणों के आधार पर मुखपका खुरपका रोग की पहचान की जा सकती है। रोग के लक्षण पता चलते ही रोगी पशुओं को अन्य स्वस्थ पशुओं से तत्काल अलग कर दें। निकटतम पशु चिकित्सक की सलाह अनुसार उपचार करायें तथा स्वस्थ पशुओं को चारा देने के उपरांत ही अंत में पीड़ित पशुओं को मुलायम हरा चारा दें। तदुपरांत हाथों को लाल दवा से अच्छी तरह साफ करें।

डा0 आर0 के0 सिंह

प्राध्यापक एवं प्रिंसिपल नोडल अधिकारी

ग्रामीण कृषि मौसम सेवा,