संचित दशा में चने की सामान्य बुवाई नवम्बर के दूसरे पखवाड़े में पूरी कर लें।
•चना की उन्नतशील प्रजातियों -पूसा 256, क े0-850, अवरोधी, पंत जी-114, पंत जी-186, पंत काबुली चना-1 आदि की बुवाई सिंचित दशा में 45 से0मी0 की दूरी पर बने लाईनों मे 6-8 से0मी0 गहराई पर करें। बुवाई से पूर्व स्वयं उत्पादित बीजों काे बीज जनित रोगों से बचाव हेतु सर्व प्रथम 1 ग्राम कार्बेडाजिम तथा 2 ग्राम थायरम के मिश्रण से शोधित करें। इसके उपरान्त राइजोबियम कल्चर एवं फास्फोरस घोलक कल्चर से भी उपचारित करें।
•बुवाई हेतु बीज दर छाेटे एवं मध्यम आकार के बीज वाली प्रजातियाें के 60-80 कि0ग्रा0/है0 तथा मोटे दाने वाली प्रजातियाें के लिए बीज दर 80-100 कि0ग्रा0/है0 रखें। बुवाई से पूर्व खेत में 15-20 कि0ग्रा0 नत्रजन, 40-50 कि0ग्रा0 फास्फोरस तथा 20-30 कि0ग्रा0 पोटाश /है0 प्रयोग करें।
•विलम्ब दशा में राई/सरसों की बुवाई नवम्बर माह में भी कर सकते है। इस समय बुवाई हेतु वरदान एवं आर्शीवाद प्रजातियाें का चयन करें। तथा कतार से कतार की दूरी 30 सेमी0 रखना चाहिए। जमाव के 15 दिन बाद पौधो से पौधाे की दूरी विरलीकरण द्वारा 15 से0मी0 कर दें।
•राई एवं देर से बोई गई तोरिया एवं पीली सरसों में फूल आने से पूर्व हल्की सिंचाई करें। खेत में आेट आने पर बची हुई नत्रजन की टाॅप ड्रेसिंग करें।
•ताेरिया, पीली सरसों एवं राई की फसल में माहू का प्रकाेप होने पर 1 लीटर मिथाईल-ओ-डेमिटान 25ई0सी0 को 800 लीटर पानी में घोलकर /है0 की दर से छिड़काव करें। छिड़काव अपराहन 2 बजे के बाद करे ताकि मधुमक्खी को हानि कम से कम हों।