Expert Advisory Details

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Posted by GB Pant University, Uttarakhand
Punjab
2018-12-17 16:15:53

नैनीताल ज़िले के किसानों को आने वाले दिनों के मौसम के बारे में कृषि-सलाह

भारत सरकार के पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय द्वारा वित्त पोषित एवं भारत मौसम विज्ञान विभाग द्वारा संचालित ग्रामीण कृषि मौसम सेवा परियोजना के अन्तर्गत राष्ट्रीय मौसम पूर्वानुमान केन्द्र, भारत मौसम विज्ञान विभाग, मौसम भवन, नई दिल्ली द्वारा पूर्वानुमानित तथा मौसम केन्द्र, देहरादून द्वारा संसोधित पूर्वानुमानित मध्यम अवधि मौसम आँकड़ों के आधार पर कृषि मौसम विज्ञान विभाग में स्थित कृषि मौसम विज्ञान प्रक्षेत्र इकाई ( AMFU ), गो0 ब0 पन्त कृषि एवं प्रौद्यो0 विश्वविद्यालय, पन्तनगर द्वारा नैनीताल जिले में अगले पाँच दिनों में निम्न मौसम रहने की संभावना व्यक्त की जाती है :-

 

पूर्वानुमानित मौसम तत्व

मौसम पूर्वानुमान-नैनीताल

15/12/2018

16/12/2018

17/12/2018

18/12/2018

19/12/2018

वर्षा (मिमी0)

0

0

0

0

0

अधिकतम तापमान (डिग्री से.ग्रे.)

10

11

12

12

11

न्यूनतम तापमान डिग्री से.ग्रे.)

1

2

3

3

2

बादल आच्छादन

आंशिक बादल

आंशिक बादल

साफ

साफ

साफ

अधिकतम सापेक्षित आर्द्रता प्रतिशत

85

80

80

80

80

न्यूनतम सापेक्षित आर्द्रता (प्रतिशत)

 

45

40

40

40

40

वायु की औसत गति (कि0मी0 प्रतिघंटा)

006

006

004

004

004

वायु की दिशा

उत्तर-उत्तर-पश्चिम

उत्तर

उत्तर-उत्तर-पश्चिम

उत्तर

उत्तर-उत्तर-पश्चिम

 

भारत मौसम विज्ञान विभाग के नैनीताल स्थित मौसम विज्ञान वेधशाला (समुद्रतल से ऊँचाई-2084 मीटर) के प्रेक्षणानुसार विगत सात दिनों ( 7- 13 दिसम्बर, 2018 सुबह 8:30 तक) में आसमान में आंशिक बादल छाये रहे तथा अधिकतम तापमान 5.2 से 9.7 डि0से0 एवं न्यूनतम तापमान 1.0 से 3.2° सै. के बीच रहा। ऐसे अनुमानित मौसम में गो0 ब0 पन्त कृषि एवं प्रौद्यो विश्वविद्यालय, पन्तनगर के वैज्ञानिकों द्वारा इस क्षेत्र के कृषक भाइयों को सलाह दी जाती है कि इस मौसम में विभिन्न फसलें के लिए खेतों में निम्नानुसार कार्यक्रम अपनायें।

 
 

कृषि मौसम परामर्श

फसल प्रबन्धः

  • गेहूँ की देर से बई जान बाईे वाली प्रजातियो की बुवाई करे। व बीज दर 25 प्रतिशत बीज की दर से बढ़ाकर बुवाई करे। 
  • भावर क्षेत्र में गेहूं  की विलम्ब से बुवाई 25 दिसम्बर तक करे। देर में बोई जाने वाली प्रजातियॉ यू0पी0 2425 यू0पी2328, पी बी0डब्लू 373, यू पी0 2526, यू0पी0 2565 की बुवाइ्र करे।
  • चौड़ी पत्ति एवं घास वर्ग  के खरपतवार के नियंत्रण हेतु वेस्टा की 400 ग्रा0 मात्रा का 700 ली0 पानी मे घोल  बनाकर 1 हेक्टेयर में बुवाई के 30-35 दिन बाद छिड़काव करे।
  • टोटल (या सल्फोसल्फोरोन एवं मेटसल्फयूरॉन मिथाईल) 40 ग्रा0 मात्रा को 700 ली0 पानी में घोलकर बनाकर 25-30 दिन बाद/हेक्टेयर में छिड़काव करे।
  • पाला/कोहरा पड़ने की स्थिति में समय-समय पर सिंचाई करें।
  • गेहूँ के बीज का टाइकोडर्मा 5 ग्राम + सूडोमाेनास 5 ग्राम/1 ग्राम बीज की दर से उपचारित करें।
  • किसान भाई अपने क्षेत्रों के लिए अनुमोदित प्रजातियों की ही बुवाई करें।
  • जैविक खेती करने वाले किसान भाई सभी फसलों हेतु ट्राइकोडर्मा हरजियानम + सोडोमोनास के 5-5ग्राम/कि0ग्रा0 बीज के हिसाब से बीज उपचार करें। तथा  पौषक तत्वों की पूर्ति वर्मीकम्पोस्ट या सड़ी हुई गोबर की खाद एवं जैव उर्वरक के द्वारा करें। भूमजनित बीमारियों की रोक-थाम के लिए 250 ग्राम ट्राइकोडर्मा + 250 ग्राम सोडोमोनास जैव अभिक्रता से प्रति क्विंटल की दर से वर्मीकम्पोस्ट एवं गोबर की खाद को उपचारित करएक सप्ताह के लिए छाया में रखें तथा बुवाई से पूर्व  खेत में अच्छी प्रकार से मिला दें।
  • दलहनी फसलों में खरपतवार नियंत्रण हेतु अगर मजदूर उपलब्ध हो तो पहली निराई, बुवाई के 20-25 दिन बादऔर दूसरी 35-40 दिन बाद करें।
  • चनें में सिंचित दशा में फ्लूक्लोरोलिन 1.7 लीटर अथवा टा्रईफलूरेलिन शाखनाशी की 1.5 लीटर मात्रा को 800लीटर पानी में घोल बनाकर बुवाई से पूर्व छिड़काव करने से खरपतवारा का नियंत्रण हो जाता है। 

उद्यानप्रबन्धः

  • बन्दगोभी, फूलगोभी, मूली, शलजम आदि बीजू फसलो में निराई गुड़ाई तथा कीट नियंत्रण हेतु रसायनो का छिड़काव करे।
  • आलू में पछेती झुलसा रोग हेतु मौसम अनुकूल है। अतः किसान भाईयो को सलाह दी जाती है कि मैनकोजेब 2.5ग्रा0/ली0 दर से छिड़काव करें।
  • टमाटर में पीलापन लिए हुए भूरे धब्बे दिखाई देने पर मैन्कोजेब 2.5 से 3.0 ग्राम प्रति लीटर की दर से घोल बनाकर छिड़काव करें।
  • मटर में पौधों की सूखने एवं निचली पत्तियां पीले पड़ने की अवस्था में कार्बन्डाजिम 1.0 ग्राम प्रति लीटर पानी कीदर से घोल  बनाकर जड़ों की सिंचाई करें ।
  • सिंचित घाटी क्षेत्रो में यदि सब्जी फ्रासबीन की बुवाई दो माह पूर्व की गई हो तो तैयार फलियो की तुड़ाई करें।
  • मध्यम पव र्तीय ओला रहित क्षेत्रों में अर्किल मटर की बुवाई करें।
  • गोभी वगीर्य सब्जियो में पत्ती धब्बा रोग के नियंत्रण हेतु मैन्कोजेब का 2.5 ग्रा0 प्रति ली0 पानी की दर से घोलबनाकर छिड़काव करे।
  • टमाटर के मुर्झाने की अवस्था मे ट्राइकोडर्मा हरजियानम या सूडोमोनास फलोरीसेंस का 8 से 10 ग्राम प्रति लीटरपानी की दर से घोल बनाकर संक्रमित पौधों व उसके आस पास क पौधो मे छिड़काव करे।
  • सेब की पत्तियों पर यूरिया 5 प्रतिशत का छिड़काव पत्ते झड़ने की अवस्था से एक सप्ताह पूर्व करें।
  • ऊँचाई वाले क्षेत्रों में जंगली खुमानी, आड़ू, मेहल, ज ंगली नाशपाती, सेब आदि का बीज इकट्ठा करके सुखायें।तद्पश्चात् उचित उपचार के पश्चात् बोने की प्रक्रिया शुरू करें।
  • खाद उर्वरक तथा फफूदीनाशक/कीटनाशक दवाईयाँ जो गढ्ढों में भरते समय मिट्टी में मिलाई जाती है का प्रबन्ध उचित मात्रा में कर लें।
  • पर्णपाती पौधों में लगाये जाने वाले पौधों की उत्तम किस्मों का आरक्षण अभी से कर ले अन्यथा बाद में अच्छे पौधें न मिलने पर परेशानी हो सकती है।
  • थाले बनाने का कार्य प्रारम्भ करें तथा पेड़ के तनों पर चूना $ नीला थोथा तथा अलसी के तेल क्रमशः 30 कि0ग्रा0, 500 ग्रा0 और 500 मि0ली0 को 100 लीटर पानी में घोलकर जमीन से 2.3 फिट तक पुताई का कार्य करें। 

पशु पालन प्रबन्धः

  • सरदी से बचाव के लिए पशुघर का प्रबंध ठीक से करें। गाय-भैंस को शीतला रोग (रिंडर पेस्ट) का टीका लगवाए। 
  • पशुओं को ठंड से बचाव हेतु सूखी घास, पुवाल जो जानवरों के खाने के उपयोग में नहीं आती को बिछावन के रूपमें प्रयोग  करें। खिड़की दरवाजों पर त्रिपाल लगा दें ताकि ठंडी हवा प्रवेश न करें।
  • इस बदलते मौसम में नवजात पशुओं में निमोनिया की संभावना ज्यादा रहती है। इसलिए पशुओं की आवास व्यवस्थाको सुदृढ़ करें व आहार में गर्म चीजें दें।
  • जानवरों में प्रसव दर को ध्यान में रखते हुए पशुशाला को अच्छी तरह साफ-सुथरा, सूखा, रोशनीदार, हवादार होनाचाहिए। इसके लिए नालियों में तथा आस-पास सूखे चूने का छिड़काव करें तथा जानवर के नीचे सूखा चारा बिछादें। प्रसव के उपरांत स्वच्छता का पूरा ध्यान रखें। ठंड का समय आ गया है अतः ठंड से बचाव हेतु पशुपालकइसकी ओर ध्यान दें ।
  • भैंस के 1-4 माह के नवजात बच्चों की आहार नलिका में टाक्सोकैराविटूलूरम (केचुआँ/पटेरा) नामक परजीवी पाए जाते है। इसे पटेरा रोग भी कहते है। समय से उपचार न होने की दशा मे लगभग 50 प्रतिशत से अधिक नवजातकी मृत्यु इसी परजीवी के कारण होती है। इस रोग की पहचान - नवजात को बदबूदार दस्त होना और इसका रंगकाली मिट्टी के समान होता है, कब्ज होना, पुनः बदबूदार दस्त होना व इसके साथ केचुआँ या पटेरा का होना, नवजात द्वारा मिट्टी खाना आदि लक्षणों के आधार पर इस रोग की पहचान कर सकते है। रोग की पहचान होते ही पीपराजीन नामक औषधी का प्रयोग कर सकते हैं।
  • पटेरा रोग से बचाव हेतु प्रसव होने के 10 दिन पश्चात् 10-15सी0सी0 नीम का तेल नवजात को पिला दें। तदुपरांत 10 दिन पश्चात् पुनः 10-15 सी0सी0 नीम का तेल पिला दें। बथुए का तेल इसका रामबाण इलाज है।
  • मुर्गियों में फफूँदजनित आहार देने से अपलाटॉक्सीकोशिस हो जाती है जिसकी वजह से काफी संख्या में उनकीमृत्यु होने की संभावना होती है। एैसे में मुर्गियों को पशुचिकितसक की सलाह से दवा दें।
  • पशुओं को हरा चारा में सूखा चारा अवश्य मिलाकर दें। अन्यथा आफरा (टिम्पेती) हो सकती है व पनीले दस्त हो सकते है, जिसकी वजह से उनकी मृत्यु हो सकती है। 

डा0 आर0 के0 सिंह

 प्राध्यापक एवं प्रिंसिपल नोडल अधिकारी

 ग्रामीण कृषि मौसम सेवा,

गो. ब. पन्त कृषि एवं प्रौद्यो. विष्वविद्यालय, पन्तनगर