
इस बदलते मौसम में पशुपालन के लिए कुछ सुझाव

उधम सिंह नगर, उत्तराखंड
1.जिन पशुओं में एफ0एम0डी0 (मुखपका खुरपका) रोग के टीके नही लगें है उन पशुओं में तत्काल टीकाकरण करा लें। ताकि आपका पशुधन स्वस्थ रहे आैर उससे लगातार आपकाे सही उत्पादन प्राप्त होता रहें।
2.खुरपका मुखपका के लक्षण- आँखें लाल हाेना, तेज बुखार हाेना (105-107◦
3.थ्), उत्पादन तथा आहार ग्रहण करने की क्षमता में कमी हाेना, मुहँ में छाले होना,लार गिरना समय से उपचार न मिलने की दषा में पशु के खुराें में घाँव बनना जिसकी वजह से पशुओं का लंगड़ाकर चलना आदि लक्षणों के आधार पर मुखपका खुरपका रोग की पहचान की जा सकती है। रोग के लक्षण पता चलते ही रोगी पशुआें काे अन्य स्वस्थ पशुओं से तत्काल अलग कर दें। निकटतम पशु चिकित्सक की सलाह अनुसार उपचार करायें तथा स्वस्थ पशुओं को चारा देने के उपरांत ही अंत में पीड़ित पशुओं को मुलायम हरा चारा दें। तदुपरांत हाथाें को लाल दवा से अच्छी तरह साफ करें।
4.इस माह में जानवरों में खासकर भैसों में प्रसव दर अधिक बढ़ जाती है इसको ध्यान में रखते हुए पशुशाला काे अच्छी तरह साफ-सुथरा, सूखा, रोशनीदार, हवादार हाेना चाहिए। इसके लिए नालियों में तथा आस-पास सूखे चूने का छिड़काव करें तथा जानवर के नीचे सूखा चारा बिछा दें। प्रसव के उपरांत स्वच्छता का पूरा ध्यान रखें। ठंड का समय आ गया है अतः ठंड से बचाव हेतु पश ुपालक इसकी ओर ध्यान दें।
5.भैंस के 1-4 माह के नवजात बच्चों की आहार नलिका में टाक्सोकैराविटूलूरम (केचुआँ/पटेरा) नामक परजीवी पाए जाते है। इसे पटेरा राेग भी कहते है। समय से उपचार न हाेने की दशा में लगभग 50 प्रतिशत से अधिक नवजात की मृत्यु इसी परजीवी के कारण होती है। इस रोग की पहचान - नवजात को बदबूदार दस्त हाेना और इसका रंग काली मिट्टी के समान हाेता है, कब्ज होना, पुनः बदबूदार दस्त हाेना व इसके साथ केचुआँ या पटेरा का होना, नवजात द्वारा मिट्टी खाना आदि लक्षणों के आधार पर इस रोग की पहचान कर सकते है। राेग की पहचान हाेते ही पीपराजीन नामक औषधी का प्रयोग कर सकते हैं।
6.पटेरा रोग से बचाव हेतु प्रसव हा ेने क े 10 दिन पश्चात् 10-15 सी0सी0 नीम का तेल नवजात को पिला दें। तदुपरांत 10 दिन पष्चात् पुनः 10-15 सी0सी0 नीम का तेल पिला दें। बथुए का तेल इसका रामबाण इलाज है।
7.नवजात पशु की नाल काे नए ब्लेड से काटकर उसमें गांठ लगा दें तथा उस पर बीटाडीन या टिंचर लगाना न भूलें।
8.मुर्गियों में फफूँदजनित आहार देने से अपलाटाॅक्सीकोशिश हाे जाती है जिसकी वजह से काफी संख्या में उनकी मृत्यु होने की संभावना हाेती है। एैसे में मुर्गियों को पशुचिकितसक की सलाह से दवा दें।
9.पशुओं को हरा चारा में सूखा चारा अवश्य मिलाकर दें। अन्यथा आफरा (टिम्पेती) हाे सकती है व पनीले दस्त हाे सकते है, जिसकी वजह से उनकी मृत्यु हाे सकती है।
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