1.मुर्गियों के अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए उनके आवास के तापमान का विशेष ध्यान रखें, उन्हें खाने के लिए सन्तुलित आहार दें तथा साफ-सुथरा एवं ताजा जल उपलब्ध करायें।
2.पशुओं के बैठने का स्थान समतल होता चाहिए ताकि उनकी उत्पादन क्षमता प्रभावित न हो तथा इस समय नवजात पशुओं के रख-रखाव पर विशेष ध्यान दें। बैठने का स्थान समतल ना होने पर पशु खड़ा रहेगा जिससे वह तनाव में आ सकता है और उत्पादन क्षमता प्रभावित होगी।
3.भैंस के 1-4 माह के नवजात बच्चों की आहार नलिका में टाक्सोकैराविटूलरू म (केचुआँ/पटेरा) नामक परजीवी पाए जाते है। इसे पटेरा रोग भी कहते है। समय से उपचार न होने की दशा में लगभग 50 प्रतिशत से अधिक नवजात की मृत्यु इसी परजीवी के कारण होती है। इस रोग की पहचान - नवजात को बदबूदार दस्त होना और इसका रंग काली मिट्टी के समान होना, कब्ज होना, पुनः बदबूदार दस्त होना व इसके साथ केचुआँ या पटेरो का गोबर के साथ आना, नवजात द्वारा मिट्टी खाना आदि लक्षणों के आधार पर इस रोग की पहचान की जा सकती है। रोग की पहचान होते ही पीपराजीन नामक औषधी का प्रयोग कर सकते हैं तथा निकटतम पशु चिकित्सक की सलाह के अनुसार तत्काल उपचार करायें।