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Posted by GB Pant University
Punjab
2018-02-12 07:19:13

मटर में रोग प्रबंधन व् अन्य फसलों और पशुओं में कैसे करें रोग उपचार 

नैनीताल, उत्तराखंड 

1.गेहूँ की फसल मे निचली पत्तियो पर पीले र ंग के फफोले दिखाई द ेने पर या पत्तियो पर भूर े धब्बे या नोक से पत्तियो के पीले पड़ कर मरु झाने पर प्रोपीकोनाजोल 25 ई0 सी0 का 1 लीटर/हैक्ट ेयर की दर से छिड़काव करंे।

2.गेहूँ की फसल म ें निराई-ग ुड़ाई, सिंचाई एवं पोषक तत्वों का प्रयोग कर ें।

3.बसंत कालीन नौलख गन्न े की बुवाई हेत ु त ैयारी शुरू करें।

4.अगर गेहूँ की फसल 40-50 दिन की हो गई है तो द ूसरी की ंिसंचाई कर े।

5.य ूरिया की 1/3 मात्रा का छिड़काव करे।

6.गेहूॅ के उन्नत कृषि यंत्रो की सहायता के खरपतवार का नियत्रण करे।

7.दलहनी फसलो के फली बनने के पहले सिंचाई करे व फली बनने के बाद न करे। व खरपतवार नियंत्रण करे।

8.गन्न े की अच्छी पेड़ो ल ेने योग्य नौलख गन्न े की कटाई मध्य फरवरी में कर े।

9.गेहूँ में यदि माहू का प्रकोप हो तो थायोमेथाक्जाम 25 डब्लू0एस0जी0 50ग्राम/है0 या क्य ूनाॅलफास 25 ई0सी0 एक लीटर/है0 की दर से छिड़काव कर ें।

10.तोरिया की पकी फसल की त ुड़ाई करे।

11.मटर मं े यदि लीफ माईनर कीट का प्रकोप हो तो इमिडाक्लोप्रिड रसायन की 0.08 प्रतिशत घोल का छिड़काव करें।

12.आलू की बुवाई हेतु खेत की तैयारी कर अन्तिम सप्ताह में कुफरी ज्योति किस्म की बुवाई करं।े साथ ही 4-5 कुन्तल गोबर की खाद के साथ 2.5 कि0ग्रा0 डी0ए0पी0 तथा 2 कि0ग्रा0 पोटाश उर्वरक प्रयोग करें।

13.घाटी क्षेत्रो मे अन्य बोई गई सब्जियो में आवश्यकतान ुसार कटाई के पश्चात ् हल्की सिंचाई कर ें।

उद्यान प्रबंध

1.मटर में पौधों की सूखन े एवं निचली पत्तियां पीले पड़न े की अवस्था में कार्बन्डाजिम 1.0 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर जड़ों की सिंचाई कर ें ।

2.प्याज और लहसुन की पत्तियाॅ उपर से पीली पड़न े पर प्रोपीकोनाजोल या टेबूकोनाजोल का 1 मिली0 प्रति ली0 पानी की दर से घोल बनाकर छिड़काव कर े।

3.आलू एवं टमाटर की फसल में पछेती झुलसा रोग के प्रकोप से बचाव हेत ु म ैनकोजेब 2.5 ग ्रा0/ली0 या काॅपर आॅक्सीक्लोराइड 3.0 ग्रा0 प्रति ली0 पानी की दर से घोल बनाकर छिडकाव कर े।

4.टमाटर मं े पीलापन लिए हुए भूरे धब्बे दिखाई दने े पर मैन्कोजेब 2.5 से 3.0 ग्राम प्रति लीटर की दर से घोल बनाकर छिड़काव करें।

5.गोभी वर्गीय सब्जियो में पत्ती धब्बा रोग के नियत्रंण हेत ु मैन्कोजेब का 2.5 ग्रा0 प्रति ली0 पानी की दर से घोल बनाकर छिड़काव करे।

6.मध्यम एवं ऊ ँचे पर्वतीय क्षेत्रो में शीतोष्ण फल वृक्षो मे पोषक तत्वो की आपूर्ति  सुनिश्चित कर े।

7.गुठलीदार फलों ज ैसे आड़ ू, प्लम आदि म ें पर्ण कुचलन रोग की रोकथाम के लिए कीटनाशी दवाओं का छिड़काव करें।

8.शीतोष्ण फल पौधों के उत्तम गुणवत्ता के फल पौध बनाने हेत ु नर्सरी में जिह्वा कलम प्रार ंभ करें।

9.पूर्व मं े आरक्षित किये शीतोष्ण फल वृक्षो जैसे सेब, नाशपाती, खुबानी, अखरोट आदि फल वृक्षो को लगाने का कार्य प्रारम्भ कर े।

10.शीतोष्ण फल पौधो के थाले बनाये तथा गोबर, नत्रजन एवं फास्फोरस की उचित मात्रा का प्रयोग कर।े

11.सेब में क ैंकर रोग की रोकथाम के लिए कटाई छटाई के उपरान्त काॅपर आॅक्सीक्लोराइड 0.3 प्रतिशत का प्रयोग करे। कटाई छटाई के दौरान रोगी एवं कीट ग ्रसित अथवा अवांछनीय शाखाओ को काटकर कीटनाशक तथा फफॅूदी नाशक रसायनो का छिडकाव करे।

12.सेब तथा गुठलीदार फलों मं े तना विगलन रोग की रोकथाम के लिए प्रभावित सेब तथा गुठलीदार फलों के तनों के चारों तरफ मिट्टी हटाएँ जिससे धूप की किरणें ग्रसित भाग पर पड़े। प्रभावित छाओं को हटाकर इसमं े चैबटिया पेस्ट लगाकर मिट्टी से ढक दं।े इसके अलावा 0.3 प्रतिशत काॅपरआॅक्सीक्लोराइड की प्रति पौधा में ड्रैंचिंग करें।

13.ऊ ँचे पर्वतीय क्षेत्रों में सेब, नाशपाती, आड़ू, प्लम, खुमानी आदि शीतोष्ण फल वृक्षों में कटाई-छटाई का कार्य पूरा करें।

पशुओं की देखभाल

1.मुर्गियों के आवास के तापमान का अनुरक्षण करं।े सरद ऋतु मे बिछावन की मोटाई बढा दे जिससे कुक्कुट को पर्याप्त गर्मी मिलती रहे।

2.सरदी से बचाव के लिए पशुघर का प्रबंध ठीक से करें। पशुओं को ठ ंड से बचाव हेत ु सूखी घास, पुवाल जो जानवरों के खाने के उपयोग मं े नहीं आती को बिछावन के रूप में प्रयोग करें। खिड़की दरवाजों पर त्रिपाल लगा दें ताकि ठंडी हवा प्रवेश न कर ें। 

3.पशुओं के बैठन े का स्थान समतल होता चाहिए जिससे उनकी उत्पादन क्षमता प्रभावित न हो तथा इस समय नवजात पशुओं के रख-रखाव पर विशेष ध्यान द ें।

4.ठंड मं े पशुओं के आहार मं े तेल और गुड़ की मात्रा बढ़ा दं।े अधिक ठंड की स्थिति में पशुओं को अजवाइन और गुड़ द ें।

5.जानवरों में प्रसव दर को ध्यान में रखत े हुए पशुशाला को अच्छी तरह साफ-सुथरा, सूखा, रोशनीदार, हवादार होना चाहिए। इसके लिए नालियों में तथा आस-पास सूखे चनू े का छिड़काव करं े तथा जानवर के नीचे सूखा चारा बिछा द ें। प्रसव के उपरांत स्वच्छता का पूरा ध्यान रखें। ठ ंड का समय आ गया है अतः ठ ंड से बचाव हेत ु पशुपालक इसकी ओर ध्यान दें।

6.भैंस के 1-4 माह के नवजात बच्चों की आहार नलिका में टाक्सोकैराविटूलरू म (केचुआँ/पटेरा) नामक परजीवी पाए जाते है। इसे पट ेरा रोग भी कहत े है। समय से उपचार न होन े की दशा में लगभग 50 प्रतिशत से अधिक नवजात की मृत्यु इसी परजीवी के कारण होती है। इस रोग की पहचान - नवजात को बदबूदार दस्त होना और इसका रंग काली मिट ्टी के समान होता है, कब्ज होना, पुनः बदबूदार दस्त होना व इसके साथ केचुआँ या पट ेरा का होना, नवजात द्वारा मिट्टी खाना आदि लक्षणो ं के आधार पर इस रोग की पहचान कर सकते है। रोग की पहचान होत े ही पीपराजीन नामक औषधी का प्रयोग कर सकते हैं।

7.पट ेरा रोग से बचाव हेतु प्रसव होन े क े 10 दिन पष्चात् 10-15सी0सी0 नीम का तेल नवजात को पिला द ें। तद ुपरांत 10 दिन पश्चात ् पुनः 10-15 सी0सी0 नीम का तेल पिला द ें। बथुए का त ेल इसका रामबाण इलाज है।