Expert Advisory Details

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Posted by GB Pant University
Punjab
2018-02-02 06:23:00

नैनीताल के किसानो के लिए इस हफ्ते के लिए कृषि सलाह

1 फरवरी  2018

अनाज वाली फसलों के लिए

1.अगर गेहूँ की फसल 40-50 दिन की हो गई है ता

2.यूरिया की 1/3 मात्रा का छिड़काव करे।

3.गेहूॅ के उन्नत कृषि यंत्रो की सहायता के खरपतवार का नियत्रण करे।

4.दलहनी फसलो के फली बनने के पहले सिंचाई करे व फली बनने के बाद न कर।े व खरपतवार नियंत्रण करे।

5.गन्ने की अच्छी पेड़ो लेने योग्य नौलख गन्ने की कटाई

6.गेहूँ में यदि माहू का प्रकोप हो तो थायोमेथाक्जाम 25 डब्लू0एस0जी0 50ग्राम/है0 या क्यनू ाॅलफास 25 ई0सी0 एक लीटर/है0 की दर से छिड़काव करें।

7.गेहूँ की फसल मे निचली पत्तियो पर पीला रतवा रोग का प्रकोप दिखाई पड़ने पर प्रोपीकोनाजोल 25 ई0 सी0 का 1 लीटर/हैक्टयेर की दर से छिड़काव करंे।

8.बसंत कालीन गन्ने की बुवाई हतुे तैयारी कर।े

9.तोरिया की पकी फसल की तुर्ड़ाइ  करे।

बागबानी के लिए 

1.मटर म ें पौधों की सूखने एवं निचली पत्तियां पीले पड़ने की अवस्था में कार्बन्डाजिम 1.0 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर जड़ों की सिंर्चाइ  कर ें ।

2.मटर की गुड़ाई के पश्चात् हल्की सिंचाई करे।

3.उॅचे क्षेत्रो में आल ू की फसल हेतु उन्नतशील किस्मो जैसे कुफरी ज्योति, शैलजा, कुफरी हिमालिनी, कुफरी गिरधारी के बीज की व्यवस्था करे साथ ही साथ आल ू वाले खेतो की जुताई कर साफ सुथरा रखें।

4.प्याज और लहसुन की पत्तियाॅ उपर से पीली पड़ने पर प्रोपीकोनाजोल या टेबूकोनाजोल का 1 मिली0 प्रति ली0 पानी की दर से घोल बनाकर छिड़काव करे।

5.आलू एवं टमाटर की फसल में पछेती झुलसा रोग के प्रकोप से बचाव हेतु मैनकोजेब 2.5 गा्र 0/ली0 या काॅपर आॅक्सीक्लोराइड 3.0 ग्रा0 प्रति ली0 पानी की दर से घोल बनाकर छिडकाव करे।

6.टमाटर में पीलापन लिए हुए भूरे धब्बे दिखाई देने पर मैन्कोजेब 2.5 से 3.0 ग्राम प्रति लीटर की दर से घोल बनाकर छिड़काव करें।

7.गोभी वर्गीय सब्जियो में पत्ती धब्बा रोग के नियत्रंण हेतु मैन्कोजेब का 2.5 ग्रा0 प्रति ली0 पानी की दर से घोल बनाकर छिड़काव कर।े

8.सही संस्थाओ से टमाटर, ब ैगन, शिमला मिर्च की उन्नत किस्मो का बीज क्रय नर्सरी में बुवाई करे।

9.पाले से बचाव हेतु पौधशाला को सफेद प्लास्टिक से इस तरह ढकें कि सूर्य की रोशनी के साथ-साथ हवा का संचार भी हो सके (जमीन से 1 मीटर उपर)।

10.गुठलीदार फलों जैसे आड़ू, प्लम आदि में पर्ण कुचलन रोग की रोकथाम के लिए कीटनाशी दवाओं का छिड़काव करें।

11.शीतोष्ण फल पौधों क े उत्तम गुणवत्ता के फल पौध बनाने हेतु नर्सरी में जिह्वा कलम प्रारभ्ं ा करें।

12.पूर्व मं े आरक्षित किये शीतोष्ण फल वृक्षो जैसे सेब, नाशपाती, खुबानी, अखरोट आदि फल वृक्षो को लगाने का कार्य प्रारम्भ करे।

13.शीतोष्ण फल पौधो क े थाले बनाये तथा गोबर, नत्रजन एव ं फास्फोरस की उचित मात्रा का प्रयोग करे।

14.सेब में कैंकर रोग की रोकथाम के लिए कटाई छटाई के उपरान्त का ॅपर आ ॅक्सीक्लोराइड 0.3 प्रतिशत का प्रयोग करे। कटाई छर्टाइ  के

15. दौरान रोगी एवं कीट ग्रसित अथवा अवांछनीय शाखाओ को काटकर कीटनाशक तथा फफॅदू ी नाशक रसायनो का छिडकाव करे।

16.सेब तथा गुठलीदार फलों में तना विगलन रोग की रोकथाम के लिए प्रभावित सेब तथा गुठलीदार फलों के तनों के चारो ं तरफ मिट्टी हटाएँ जिससे धूप की किरणें ग्रसित भाग पर पड़े। प्रभावित छालों को हटाकर इसमें चैबटिया प ेस्ट लगाकर मिट्टी से ढक द ें। इसके अलावा 0.3 प्रतिशत काॅपरआॅक्सीक्लोराइड की प्रति पौधा से ड्रैंचिंग करें।

पशुपालन के लिए 

1.मुर्गि यों के आवास के तापमान का अनुरक्षण करें। सरद ऋतु मे बिछावन की मोटाई बढा दे जिससे क ुक्कुट को पर्याप्त गर्मी मिलती रहे।

2.सरदी से बचाव के लिए पशुघर का प्रबंध ठीक से करें। पशुओं को ठंड से बचाव हेतु सूखी घास, पुवाल जो जानवरों के खाने के उपयोग में नहीं आती को बिछावन के रूप में प्रयोग करें। खिड़की दरवाजों पर त्रिपाल लगा दें ताकि ठंडी हवा प्रवेश न करं।े

3.पशुओं के बैठने का स्थान समतल होता चाहिए जिससे उनकी उत्पादन क्षमता प्रभावित न हो तथा इस समय नवजात पशुओं के रख-रखाव पर विशेष ध्यान दें।

4.ठंड में पशुओ ं के आहार में तले और गुड़ की मात्रा बढ़ा दें। अधिक ठंड की स्थिति में पशुओं को अजवाइन और गुड़ दें।

5.जानवरों में प्रसव दर को ध्यान में रखत े हुए पशुशाला को अच्छी तरह साफ-सुथरा, सूखा, रोशनीदार, हवादार होना चाहिए। इसके लिए नालियों मं े तथा आस-पास सूखे चूने का छिड़काव करें तथा जानवर के नीचे सूखा चारा बिछा दें। प्रसव के उपरांत स्वच्छता का पूरा ध्यान रखे ं। ठंड का समय आ गया है अतः ठंड से बचाव हेतु पशुपालक इसकी ओर ध्यान दें।

6.भ ैंस के 1-4 माह के नवजात बच्चों की आहार नलिका में टाक्सोकैराविटूलरू म (केचुआँ/पटेरा) नामक परजीवी पाए जाते है। इसे पटरे ा रोग भी कहते है। समय से उपचार न होने की दशा मं े लगभग 50 प्रतिशत से अधिक नवजात की मृत्यु इसी परजीवी के कारण होती है। इस रोग की पहचान - नवजात को बदबूदार दस्त होना और इसका रगं काली मिट्टी के समान होता है, कब्ज होना, पुनः बदबूदार दस्त होना व इसके साथ केचुआँ या पट ेरा का होना, नवजात द्वारा मिट्टी खाना आदि लक्षणा ें के आधार पर इस रोग की पहचान कर सकत े है। रोग की पहचान होते ही पीपराजीन नामक औषधी का प्रयोग कर सकत े हैं।

7.पटेरा रोग से बचाव हेतु प्रसव होने के 10 दिन पष्चात् 10-15सी0सी0 नीम का तेल नवजात को पिला दें। तदुपरांत 10 दिन पश्चात् पुनः 10-15 सी0सी0 नीम का तेल पिला दें। बथुए का तेल इसका रामबाण इलाज है।