पशुपालन प्रबंध के लिए जी बी पंत विश्विद्यालय द्वारा सलाह
10 December 2017
1.सरदी से बचाव के लिए पशुघर का प्रबंध ठीक से करें। गाय-भैंस को शीतला रोग (रि ंडर पेस्ट) का टीका लगवाए।
2.पशुओं को ठंड से बचाव हेत ु सूखी घास, पुवाल जो जानवरों के खान े के उपयोग में नहीं आती को बिछावन क े रूप में प्रयोग करें। खिड़की दरवाजो ं पर त्रिपाल लगा दें ताकि ठडं ी हवा प्रवेश न करें।
3.इस बदलते मौसम में नवजात पशुओं म ें निमोनिया की संभावना ज्यादा रहती है। इसलिए पशुओ ं की आवास व्यवस्था को सुदृढ़ करें व आहार में गर्म चीज ें द ें।
4.जानवरों में प्रसव दर को ध्यान में रखत े हुए पशुशाला को अच्छी तरह साफ-सुथरा, सूखा, रोशनीदार, हवादार होना चाहिए। इसके लिए नालियों में तथा आस-पास सूखे चनू े का छिड़काव करं े तथा जानवर के नीचे सूखा चारा बिछा द ें। प्रसव के उपरांत स्वच्छता का पूरा ध्यान रखें। ठ ंड का समय आ गया है अतः ठ ंड से बचाव हेत ु पशुपालक इसकी ओर ध्यान दें।
5.भैंस के 1-4 माह के नवजात बच्चों की आहार नलिका में टाक्सोकैराविटूलरू म (केचुआँ/पटेरा) नामक परजीवी पाए जाते है। इसे पट ेरा रोग भी कहत े है। समय से उपचार न होन े की दशा में लगभग 50 प्रतिशत से अधिक नवजात की मृत्यु इसी परजीवी के कारण होती है। इस रोग की पहचान - नवजात को बदबूदार दस्त होना और इसका रंग काली मिट ्टी के समान होता है, कब्ज होना, पुनः बदबूदार दस्त होना व इसके साथ केचुआँ या पट ेरा का होना, नवजात द्वारा मिट्टी खाना आदि लक्षणो ं के आधार पर इस रोग की पहचान कर सकते है। रोग की पहचान होत े ही पीपराजीन नामक औषधी का प्रयोग कर सकते हैं।
6.पट ेरा रोग से बचाव हेत ु प्रसव होन े के 10 दिन पश्चात ् 10-15सी0सी0 नीम का तेल नवजात को पिला द ें। तदुपरांत 10 दिन पश्चात ् पुनः 10-15 सी0सी0 नीम का तेल पिला द ें। बथुए का त ेल इसका रामबाण इलाज है।
7.मुर्गियों में फफूँदजनित आहार देने से अपलाटाॅक्सीकोशिस हो जाती है जिसकी वजह से काफी संख्या में उनकी मृत्य ु होन े की संभावना होती है। एैस े म ें मुर्गियों को पशुचिकितसक की सलाह से दवा दें।
8.पशुओं को हरा चारा मे ं सूखा चारा अवश्य मिलाकर दें। अन्यथा आफरा (टिम्पेती) हो सकती है व पनीले दस्त हो सकते है, जिसकी वजह से उनकी मृत्यु हो सकती है।