जी. बी. पंत यूनिवर्सिटी की तरफ से इस हफ्ते नैनीताल के किसानों के लिए पशुपालन प्रबंध सलाह
4 December 2017
1.पशुओं को ठंड से बचाव हेत ु सूखी घास, पुवाल जो जानवरों के खान े के उपयोग में नहीं आती को बिछावन क े रूप में प्रयोग करें। खिड़की दरवाजो ं पर त्रिपाल लगा दें ताकि ठडं ी हवा प्रवेश न करें।
2.ठंड मं े पशुओं के आहार मं े तेल और गुड़ की मात्रा बढ़ा दं।े अधिक ठंड की स्थिति में पशुओं को अजवाइन और गुड़ द ें।
3.पशुओं के बैठन े का स्थान समतल होता चाहिए तथा इस समय नवजात पशुओं के रख-रखाव पर विशेष ध्यान दें।
4.पहाड़ी क्षेत्रों मं े पशुशाला में गर्मी हेतु हीटर का उपयोग करें। तथा अंगेठी का उपयोग धुंआँ निकलने के बाद कर सकते हैं।
5.मुर्गियों के आवास के तापमान का अनुरक्षण करें।
6.पशुओं को धान की कन्नी आहार क े रूप में दें। जिसस ें उन्हें उर्जा और गर्मी मिलती है।
7.इस बदलत े मौसम में नवजात पशुओं में निमोनिया की संभावना ज्यादा रहती है। इसलिए पशुओं की आवास व्यवस्था को सुदृढ़ करें व आहार में गर्म चीजें द ें।
8.वर्षा के बाद नाना प्रकार क े अन्तः परजीवी आहार नलिका मं े उत्पन्न हो जाते है। जो पशुओ का आहार स्वंय ग्रहण कर लते े है। अतः सर्वप्रथम निकटतम पशुओ का कृमिनाशक औषधि दें।
9.जिन पशुओं मे ं एफ0एम0डी0 (मुखपका खुरपका) रोग के टीके नही लगं े है उन पशुओं में तत्काल टीकाकरण करा लें। ताकि आपका पशुधन स्वस्थ रहे और उससे लगातार आपको सही उत्पादन प्राप्त होता रहें।
10.खुरपका मुखपका क े लक्षण-आँखें लाल होना, तेज बुखार होना (105-107◦)
.थ्), उत्पादन तथा आहार ग्रहण करने की क्षमता मं े कमी होना, मुहँ में छाले होना,लार गिरना समय से उपचार न मिलने की दशा मं े पशु के खुरों में घाँव बनना जिसकी वजह से पशुओं का लगं ड़ाकर चलना आदि लक्षणों के आधार पर मुखपका खुरपका रोग की पहचान की जा सकती है। रोग के लक्षण पता चलत े ही रोगी पशुआ ें को अन्य स्वस्थ पशुओं से तत्काल अलग कर द ें। निकटतम पशु चिकित्सक की सलाह अन ुसार उपचार कराय ें तथा स्वस्थ पशुओं को चारा देन े के उपरांत ही अंत म ें पीड़ित पशुओं को मुलायम हरा चारा दं।े तदुपरांत हाथों को लाल दवा से अच्छी तरह साफ करें।
11.इस माह मं े जानवरों मं े खासकर भैसों में प्रसव दर अधिक बढ़ जाती है इसको ध्यान में रखते हुए पशुशाला को अच्छी तरह साफ-सुथरा, सूखा, रोशनीदार, हवादार होना चाहिए। इसके लिए नालियों म ें तथा आस-पास सूखे चून े का छिड़काव करें तथा जानवर के नीचे सूखा चारा बिछा दें। प्रसव के उपरांत स्वच्छता का पूरा ध्यान रखें। ठंड का समय आ गया है अतः ठंड से बचाव हेत ु पशुपालक इसकी ओर ध्यान दें।
12.नवजात पशु की नाल को नए ब्लेड से काटकर उसमें गांठ लगा द ें तथा उस पर बीटाडीन या टि ंचर लगाना न भूलें।
13.भैंस के 1-4 माह के नवजात बच्चों की आहार नलिका में टाक्सोक ैराविटूलूरम (केचुआँ/पट ेरा) नामक परजीवी पाए जाते है। इसे पट ेरा रोग भी कहत े है। समय से उपचार न होन े की दशा म ें लगभग 50 प्रतिशत से अधिक नवजात की मृत्य ु इसी परजीवी के कारण होती है। इस रोग की पहचान - नवजात को बदबूदार दस्त होना और इसका रंग काली मिट ्टी के समान होता है, कब्ज होना, पुनः बदबूदार दस्त होना व इसके साथ क ेचुआँ या पटेरा का होना, नवजात द्वारा मिट ्टी खाना आदि लक्षणों के आधार पर इस रोग की पहचान कर सकते है। रोग की पहचान होत े ही पीपराजीन नामक औषधी का प्रयोग कर सकते हैं।