बादलों की वजह से दिल्ली में नही हो सकी कृत्रिम बारिश
नई दिल्ली। दिल्ली में कृत्रिम बारिश कराने की सारी तैयारियों पर बादलों ने आखिरकार पानी फेर दिया। अनुमान था कि 21 नवंबर को दिल्ली के ऊपर बादलों का भारी जमावड़ा रहेगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। मौसम विभाग के अनुमान गलत निकले। इसके चलते कृत्रिम बारिश की सारी योजना भी धरी की धरी रह गई।
हालांकि, पर्यावरण मंत्रालय की इस मुहिम में डीजीसीए (डायरेक्टर जनरल ऑफ सिविल एविएशन) ने अंतिम समय में कुछ पेंच फंसाया, लेकिन इसरो की ओर से तुरंत इसका समाधान करने का दावा किया गया। बुधवार को इस पूरी मुहिम के सफल नहीं होने से सबसे ज्यादा निराशा पर्यावरण मंत्रालय को हुई, जिसे उम्मीद थी कि कृत्रिम बारिश होने से उसे प्रदूषण के बड़े स्तर से कुछ दिनों के लिए निजात मिल जाएगी।
कृत्रिम बारिश कराने के इस पूरे अभियान को लीड कर रहे आइआइटी कानपुर के प्रोफेसर सच्चिदानंद त्रिपाठी ने 'दैनिक जागरण' से बातचीत में बताया कि योजना अभी टली नहीं है। अगले एक-दो दिनों में जब भी दिल्ली के ऊपर बादलों का जमावड़ा होगा, बारिश कराई जाएगी।
उनके पास इससे जुड़ी सारी मंजूरियां हैं। उन्होंने बताया कि दिल्ली के ऊपर बुधवार को भी कुछ बादल थे, लेकिन यह काफी हल्के और पांच किमी से ज्यादा ऊपर थे। जिससे अच्छे परिणाम की उम्मीद कम थी। हालांकि, अगली बारिश कब होगी, इस सवाल का उन्होंने कोई सीधा जवाब नहीं दिया। उनका कहना है कि अब यह मौसम विभाग के अनुमान पर टिका है। जैसे ही वे बादलों के होने की जानकारी देंगे, वह कुछ घंटों के भीतर योजना को अंजाम दे देंगे। फिलहाल वह लगातार मौसम विभाग के संपर्क में हैं।
डीजीसीए का पेंच कृत्रिम बारिश कराने में बादलों के साथ डीजीसीए ने भी पेंच फंसाने की कोशिश की। हालांकि यह पेंच विमान के रखरखाव और गुणवत्ता से जुड़ा था। इसका जवाब इसरो को देना था जो उनकी ओर से तुरंत ही देने का दावा किया गया। दरअसल, डीजीसीए ने 10 शर्तों के साथ अपनी अनुमति दी थी।
सूत्रों की मानें तो इनमें से आठ को इसरो ने पूरा कर दिया था, लेकिन दो बिंदु, जो विमान की गुणवत्ता और रखरखाव से जुड़े थे, वे देने रह गए थे। इसे लेकर कुछ समय तक असमंजस की स्थिति रही।
कैसे होती है कृत्रिम बारिश आमतौर पर कृत्रिम बारिश प्रक्रिया में सिल्वर आयोडाइड और सूखी बर्फ (ड्राई आइस) जैसे तत्व इस्तेमाल किए जाते थे। इस पूरी प्रक्रिया में बादलों की मौजूदगी सबसे जरूरी है, क्योंकि इसे विमानों की मदद से बादलों के बीच ही छिड़का जाता है। जिससे बादल बूंदों में तब्दील होकर बरस पड़ते हैं।