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हरप्रीत सिंह बाजवा

(घुड़सवारी)

घुड़सवारी सीखने के शौकीन लोगों के सपने को पूरे करने वाला पशु-प्रेमी – हरप्रीत सिंह बाजवा

घोड़ों को पहले से ही मनुष्य का पसंदीदा पशु माना जाता है पुराने समय में घोड़े ही एक स्थान से दूसरे स्थान पर आने जाने का साधन होते थे। आज भी कई ऐसे पशु-प्रेमी हैं, जो पशुओं को अपनी ज़िंदगी का अहम हिस्सा समझते हैं।

यह कहानी है एक ऐसे ही पशु-प्रेमी हरप्रीत सिंह बाजवा जी की, जिन्होंने अपनी इसी पसंद को सार्थक रूप देते हुए, अपना एक घोड़ों का स्टड फार्म बनाया है।

फौजी परिवार से संबंध रखने वाले पंजाब, मोहाली के नज़दीक इलाके खरड़ के रहने वाले हरप्रीत जी 10-11 वर्षों की उम्र से घुड़सवारी करते थे। हरप्रीत जी के दादा जी और पिता जी फौज में देश की सेवा कर चुके हैं। फौज में होते हुए वे घुड़सवारी करते थे। हरप्रीत जी को भी बचपन से ही घुड़सवारी का शौंक था।

अपनी बी.कॉम की पढ़ाई करने के बाद और फौजी परिवार में होते हुए हरप्रीत भी देश की सेवा करने के इरादे से फौज में भर्ती होने के लिए तैयारी कर रहे थे। इसी दौरान उन्होंने घुड़सवारी भी सीखी। पर किसी कारण फौज में भर्ती ना होने के कारण उन्होंने दिल्ली और मोहाली में 10-12 वर्ष नौकरी की।

नौकरी के दौरान हमें कई काम ऐसे करने पड़ते हैं, जिसकी इजाज़त हमारा दिल नहीं देता। इसलिए मैं हमेशा अपनी इच्छा के मुताबिक कुछ अलग और अपनी पसंद का करना चाहता था।– हरप्रीत सिंह बाजवा

छोटी उम्र में ही घोड़ों के साथ लगाव और घुड़सवारी में लगभग 20 साल का तज़ुर्बा होने के कारण हरप्रीत जी अपने शौंक को हकीकत में बदलना चाहते हैं।

जैसे कि कहा ही जाता है कि घोड़ों का शौंक बहुत महंगा होता है। इसी कारण कई घोड़ों के शौकीन खर्चा अधिक होने के कारण, इस व्यवसाय से दूरी बनाए रखते हैं। इसी तरह एक साधारण परिवार से होने के कारण हरप्रीत जी अधिक तो नहीं कर सकते थे, पर अपनी नौकरी के समय के दौरान उन्होंने जो बचत की थी, उन्हीं से उन्होंने घोड़ों का फार्म खोलने का फैसला किया।

मैं हमेशा से ही एक ऐसा काम करना चाहता था, जिससे मेरे मन को संतुष्टी मिले। घोड़े और घुड़सवारी से अपने प्यार के कारण ही मैंने घोड़ों के लिए फार्म खोलने का मन बनाया। – हरप्रीत सिंह बाजवा

ऐसे कई क्षेत्र हैं जिनमें शामिल होने के लिए घुड़सवारी आनी लाज़मी होती है। इस उद्देश्य से उन्होंने ठेके पर ज़मीन ली। फार्म शुरू करने के लिए उनका लगभग 7 से 8 लाख रूपये का खर्चा आया। अपने इस फार्म का नाम उन्होंने DKPS रखा। हरप्रीज सिंह बाजवा जी ने अपने इस स्कूल का नाम अपने माता पिता दविंदर कौर और प्रकाश सिंह के नाम पर रखा। इस फार्म में उन्होंने थोरो ब्रैड नस्ल के घोड़े रखे हैं। थोरो ब्रैड घोड़ों की ऐसी नस्ल है जो रेसिंग के लिए सबसे बढ़िया मानी जाती है।

इस समय उनके पास फार्म में 5 घोड़ियां और 1 घोड़ा है। शुरूआती दौर में उनके पास घुड़सवारी में दिलचस्पी रखने वाले चाहवान आए, जिनमें बच्चे और बुज़ुर्ग शामिल थे। उनके इस फार्म में घुड़सवारी सीखने की फीस भी काफी कम है, जिस कारण आज भी उनके पास काफी लोग घुड़सवारी सीखने आते हैं।

हमारे फार्म पर 7 साल से लेकर 50 साल की उम्र तक के घुड़सवारी के शौकीन आते हैं। पंजाब के मशहूर पंजाबी गायक बब्बू मान जी भी हमारे फार्म पर घुड़सवारी करने आते रहते हैं। –  हरप्रीत सिंह बाजवा

हरप्रीज जी अपने स्कूल के बच्चों को घुड़सवारी की अलग अलग प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेने के लिए भी तैयार करते हैं। उनके स्कूल के बच्चे कई क्षेत्रीय और राज्य स्तर की प्रतियोगिताओं में हिस्सा ले चुके हैं और कई अवार्ड भी हासिल कर चुके हैं।

घोड़ा एक ऐसा जानवर है जिसका अपना दिल और दिमाग होता है। घुड़सवार अपने इशारों से घोड़े को समझाता है। हम अपने स्कूल में ही ये सभी हुनर घुड़सवारों को सिखाते हैं। – हरप्रीत सिंह बाजवा

हरप्रीत जी का घुड़सवारी स्कूल खोलने का फैसला एक बहुत ही प्रशंसनीय फैसला है, क्योंकि जो लोग अधिक पैसे खर्च करके घुड़सवारी नहीं सीख सकते, वे DKPS के ज़रिये अपनी इस इच्छा को पूरा कर सकते हैं।

भविष्य की योजना

हरप्रीत जी घुड़सवारी सीखने वाले लोगों को ट्रेनिंग देकर एक बढ़िया और सेहतमंद पीढ़ी का निर्माण करना चाहते हैं।

संदेश
“हमें अपने जुनून को कभी भी मरने नहीं देना चाहिए। मेहनत हर काम में करनी ही पड़ती है नौजवानों को नशों के चक्कर में ना पड़कर अपनी मेहनत के साथ अपने और अपने माता— पिता के सपनों को सच करना चाहिए।”