कहीं सूखा कहीं बाढ़

August 22 2017

By: Krishak Jagat, 22 August, 2017

वर्तमान समय में बाकी दुनिया के साथ भारत भी जलवायु परिवर्तन से परेशान है। इसके कारण देश को हर साल लगभग 9-10 अरब डॉलर की चपत लग रही है। अब जैसे 2014 में कश्मीर में आई बाढ़ से निपटने में 15 अरब डॉलर खर्च हो गए। उसी साल आए हुदहुद चक्रवात से हुए नुकसान की भरपाई में भी 11 अरब डॉलर निकल गए। जलवायु परिवर्तन के कारण 2020 से इस सदी के अंत तक तक खेती की उत्पादकता गंभीर रूप से प्रभावित होगी। हाल ही एक संसदीय समिति में प्रस्तुत अपनी रिपोर्ट में कृषि मंत्रालय ने यह जानकारी दी है। रिपोर्ट में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन से कई फसलों की पैदावार में कमी आ सकती है, लेकिन सोयाबीन, चना, मूंगफली, नारियल (पश्चिमी तट में) और आलू (पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में) की पैदावार सुधर भी सकती है। हालांकि मंत्रालय का यह भी मानना है कि अगर जलवायु परिवर्तन के ध्यान में रखते हुए खेती का पैटर्न बदल दिया जाए तो 2021 के बाद तमाम फसलों की पैदावार में 10 से 40 फीसदी तक की बढ़ोतरी संभव है। 

बहरहाल, आज की तारीख में जहां पूर्वोत्तर और पूर्वी भारत के कुछ राज्य बाढ़ में डूबे हुए हैं, वहीं पश्चिमी हिस्से में दमघोंटू गर्मी पड़ रही है। मौसम विभाग मान रहा है कि मॉनसून के दूसरे चरण में बारिश का बंटवारा ठीक होगा, जिससे कम वर्षा वाले राज्यों की भरपाई हो जाएगी। जलवायु परिवर्तन के कारण मॉनसून के पैटर्न में भारी बदलाव आ गया है। अभी कुछ दिन पहले राजस्थान के जोधपुर और गुजरात के बनासकांठा में आई जबर्दस्त बाढ़, फिर बेंगलुरु में बारिश का 127 साल पुराना रिकॉर्ड टूटना और इसके समानांतर महाराष्ट्र, कर्नाटक और तमिलनाडु के कुछ हिस्सों में पिछले 3-4 वर्षों से पड़ रहा सूखा मॉनसून के इस बदलते पैटर्न की ही देन है। विशेषज्ञों के मुताबिक जलवायु परिवर्तन की वजह से कई नदियों ने अपना रास्ता बदल दिया है। मॉनसून की अनिश्चितता के कारण 55 प्रतिशत असिंचित भूमि वाले किसान पहले से ही मुश्किल में थे, लेकिन अब शेष 45 प्रतिशत इलाके के किसानों के सामने भी संकट मंडराने लगा है।

जाहिर है, बड़े फैसले लेने का वक्त आ गया है। हमें अपनी खेती में व्यापक परिवर्तन करने होंगे। मौसम के उतार-चढ़ाव की सबसे ज्यादा मार वर्षा सिंचित कृषि पर पड़ती है, इसलिए कम पानी में पैदा हो सकने वाली फसलें विकसित की जानी चाहिए। कहीं भी एक फसल पर आश्रित रहने से काम नहीं चलेगा। बहु-फसली खेती की व्यवस्था हर जगह करनी होगी। ड्रिप और स्प्रिंकलर जैसी इस्राइली तकनीक का इस्तेमाल बढ़ाया जाए, ताकि पानी का बेहतर इस्तेमाल हो सके। लेकिन यह सब तभी हो पाएगा, जब खेती को सरकार के अजेंडे में ऊपर लाया जाए।

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