कम बारिश और तापमान बढ़ने से फसल की वृद्धि रुकी

August 10 2017

By: Nai Duniya, 10 August, 2017

भोपाल। प्रदेश में कम बारिश और तापमान बढ़ने से खरीफ फसलों की वृद्धि रुक गई है। सोयाबीन का रकबा लगभग आठ लाख हेक्टेयर घट गया है तो उड़द के क्षेत्र में छह लाख हेक्टेयर की बढ़ोतरी हुई है। सोयाबीन में तो मौसम के उतार-चढ़ाव के कारण येलो मोजेक बीमारी लगने के आसार बढ़ गए हैं।

कम बारिश की वजह से धार, बड़वानी, खरगोन सहित अन्य जिलों में करीब 20 प्रतिशत फसलों को नुकसान पहुंचा है। यदि आने वाले दिनों में अच्छी बारिश नहीं होती है और मौसम में नमी नहीं आती है तो ये नुकसान बढ़ सकता है। कुल मिलाकर इस बार बोवनी का लक्ष्य 130 लाख हेक्टेयर खटाई में पड़ सकता है।

कृषि विशेषज्ञ और पूर्व कृषि संचालक डॉ. जीएस कौशल ने बताया कि मौसम के उतार-चढ़ाव की वजह से फसलें प्रभावित हो रही हैं। सबसे ज्यादा नुकसान सोयाबीन का हो रहा है। येलो मोजेक (एक प्रकार का कीड़ा) पौधों में लगना शुरू हो गया है। जैसे-जैसे उमस बढ़ेगी, ये तेजी से फैलता जाएगा।

मौसम के कारण फसलों की वृद्धि भी रुक गई है। इसका सीधा असर उत्पादन पर पड़ेगा। वहीं, भारतीय किसान संघ के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सुरेश गुर्जर ने बताया कि निमाड़ और चंबल क्षेत्र में 20 प्रतिशत फसलें कम बारिश की वजह खराब हो चुकी हैं। पठारी इलाकों में फसलें सबसे ज्यादा प्रभावित हुई हैं। तापमान में नमी का न होना, खरीफ फसलों के लिए घातक है।

उधर, कृषि विभाग के अधिकारियों का कहना है कि पिछले साल इस समय तक 96.28 लाख हेक्टेयर जमीन पर बोवनी हो गई थी, लेकिन इस बार ये आंकड़ा 93 लाख 86 हजार तक पहुंचा है। सोयाबीन की बोवनी 40.12 लाख हेक्टेयर में हुई है, जो पिछले साल 49.70 लाख हेक्टेयर थी।

इस बार आठ लाख हेक्टेयर रकबा सोयाबीन का कम हो गया है। इसके उलट उड़द की बोवनी 13.67 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है, जबकि पिछले साल इस समय तक 7.95 लाख हेक्टेयर में बोवनी हुई थी। धान 9 लाख 58 हजार हेक्टेयर में लगाई जा चुकी है, ये पिछले साल की तुलना में 47 हजार हेक्टेयर ज्यादा है। कपास की बोवनी 5 लाख 57 हजार हेक्टेयर में हो चुकी है।

सोयाबीन की खेती से छिटका किसान

गुर्जर ने बताया कि सोयाबीन की खेती से किसानों का मोह भंग होने लगा है। फसल में लागत बढ़ गई है। पहले इसमें कीटनाशकों की जरूरत नहीं पड़ती थी, लेकिन अब इसके बिना काम नहीं चलता है। खाद का प्रयोग बढ़ने से खरपतवार भी बहुत होने लगी है। इसे निकलवाने में काफी लागत लगती है।

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