By: Naiduniya Jagran, 19 September 2017
भोपाल। नीति आयोग ने मप्र सरकार को आईना दिखाते हुए कहा है कि प्रदेश ने कृषि क्षेत्र में भले ही विकास किया हो, लेकिन अन्य क्षेत्रों में प्रदेश राष्ट्रीय औसत से भी पीछे है। नीति आयोग के सदस्य रमेश चंद्र ने सोमवार को मप्र के विभिन्न विभागों के अधिकारियों के साथ बैठक की।
इस दौरान उन्होंने कहा कि मप्र को पंजाब मत बनाइए। यह अच्छी बात है कि कृषि क्षेत्र में सबसे ज्यादा विकास किया है, लेकिन एक समय के बाद यह विकास स्र्क जाएगा। गैर कृषि क्षेत्र में मप्र की विकास दर 6.7 प्रतिशत है, जबकि राष्ट्रीय औसत 8 से ऊपर है।
रमेश चंद्र ने कहा कि मप्र उद्योग, स्वास्थ्य, शिक्षा और सड़कों के क्षेत्र में अन्य राज्यों से काफी पिछड़ा है। उन्होंने अधिकारियों से कहा कि यदि दीर्घ कालीन विकास करना है तो इन क्षेत्रों में प्रदेश बेहतर काम करे। रमेश चंद्र ने अपने प्रजेंटेशन में विकास के विभिन्न् मापदंडों पर मप्र की स्थिति बताते हुए कहा कि कुपोषण, शिशु मृत्यु दर में भी मप्र बेहतर काम नहीं कर पा रहा है। बच्चों को पौष्टिक भोजन की अनुपलब्धता, खराब अस्पताल की वजह से कुपोषण कम नहीं हो रहा।
ज्यादा मूल्यों वाली फसलें पैदा नहीं हो रहीं
बैठक के बाद पत्रकारों से चर्चा में नीति आयोग के सदस्य रमेश चंद्र ने कहा कि मप्र के 21 प्रतिशत क्षेत्र में ही उच्च मूल्यों वाली फसलों का उत्पादन हो रहा है। इसे बढ़ाने के साथ-साथ पशुपालन और डेयरी रिवोल्यूशन पर काम करने की जरूरत प्रदेश को है।
अक्षर नहीं पढ़ पाते बच्चे,पीने का पानी नहीं
नीति आयोग ने अधिकारियों को अपने प्रजेंटेशन में बताया कि मप्र में शिक्षा का स्तर ऐसा है कि पांचवी कक्षा के बच्चों को अक्षरों की पहचान नहीं है। स्कूल ड्रॉप आउट भी अन्य राज्यों से ज्यादा है। पीने के पानी की सप्लाई के मामले में मप्र छत्तीसगढ़ और गुजरात जैसे राज्यों से पीछे है। मप्र के सिर्फ 39 प्रतिशत घरों में ही पानी सप्लाई होता है। जबकि गुजरात में 95 प्रतिशत और छत्तीसगढ़ में 53 फीसदी घर में पीने के पानी की सप्लाई हो रही है।
भावांतर योजना की तारीफ
बैठक में मप्र की भावांतर योजना की तारीफ हुई। नीति आयोग ने कहा कि प्रदेश ने यह योजना फुल प्रुफ बनाई है। योजना लांच होने के बाद गुजरात, उप्र, राजस्थान, तेलंगाना, कर्नाटक, उड़ीसा, छत्तीसगढ़ और बिहार ने इससे जुड़ी जानकारी मांगी है। धीरे-धीरे यह पूरे देश में लागू होगी। गौरतलब है कि भावांतर योजना की अवधारणा 2003 में दी गई थी,लेकिन अब जाकर यह लागू हो पाई। मप्र में भी 2015 में दमोह और छतरपुर में इसे पायलट प्रोजेक्ट के रूप में लागू करने की योजना थी, लेकिन उस वक्त दाल की कीमत अच्छी होने की वजह से यह लागू नहीं हो सकी।
गेहूं-धान को भी भावांतर योजना में करेंगे शामिल
बैठक में बताया गया कि सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत सबसिडी पर खाद्यान्न् देने की जगह अब सबसिडी लोगों के खाते में जमा कर दी जाएगी। अनाज नहीं दिया जाएगा। भारतीय खाद्य निगम सिर्फ विपरीत परिस्थतियों के लिए स्टॉक रखने का काम करेगा। इसके बाद गेहूं-धान को भी भावांतर योजना में शामिल कर लिया जाएगा।
इस (स्टोरी) कहानी को अपनी खेती के स्टाफ द्वारा सम्पादित नहीं किया गया है एवं यह कहानी अलग-अलग फीड में से प्रकाशित की गयी है|