पराली जलाने के अलावा हमारे पास दूसरा कोई विकल्प नहीं है साहब..!

October 11 2017

11 October 2017

चंडीगढ़: पंजाब और हरियाणा में खेतों से फसल काटे जाने के बाद बची खूंटियों को जलाने को लेकर केंद्र और राज्य सरकार के बाद एनजीटी (नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल) ने भी रोक लगाने का आदेश दिया है, लेकिन किसानों का कहना है कि फसल अवशेष को जलाने के अलावा उनके पास बेहद कम विकल्प हैं.

किसान खूंटियों को इसलिए जलाता है, ताकि उस जमीन पर अगली फसल उगा सके. इस खरीफ अवधि में दोनों ही राज्यों में धान की बंपर फसल होने का अनुमान है और 2.25 करोड़ टन से अधिक पैदावार की उम्मीद है. पंजाब इस सीजन में 1.8 करोड़ टन धान की सरकारी खरीद की उम्मीद कर रहा है.

हाल के सालों में केंद्र और राज्य सरकारों ने फसल अवशेष को जलाने से रोकने के लिए कई कदम उठाए हैं, जिसमें किसानों के खिलाफ मामला दर्ज करने की धमकी से लेकर अवशेष जलाने से होनेवाले प्रदूषण के प्रति जागरूकता फैलाने की कवायद शामिल है. लेकिन इनका नतीजा सिफर रहा. फसलों के अवशेष जलाने से उत्तर भारत में ठंड के मौसम में प्रदूषण और धुआं बढ़ता जा रहा है, जो लोगों के स्वास्थ्य के लिए खतरनाक है.

फतेहगढ़ साहिब जिले के किसान गुरमेल सिंह ने आईएएनएस को बताया, "ज्यादातर किसान संपन्न नहीं हैं. वे वैज्ञानिक और तकनीकी तरीके नहीं अपना सकते, क्योंकि इसमें धन खर्च होता है. इसलिए दूसरी फसल लगाने के लिए खेत साफ करने के मकसद से अवशेषों को जलाने के अलावा दूसरा कोई विकल्प नहीं होता."

पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने कहा कि वे इस मुद्दे पर जोर-जबरदस्ती नहीं कर सकते. उन्होंने कहा कि उनकी सरकार संकटग्रस्त किसानों के वित्तीय बोझ में और बढ़ोतरी नहीं करेगी, क्योंकि उनमें से कई आर्थिक संकट के कारण आत्महत्या कर रहे हैं.

पंजाब सरकार ने केंद्रीय वित्त और कृषि मंत्रालय से किसानों को फसलों के अवशेष के निपटारे के लिए 100 रुपये प्रति क्विटंल मुआवजा देने को कहा है, ताकि वे फसल अवशेष का निपटारा वैज्ञानिक तरीके से कर पाएं. पंजाब सरकार का अनुमान है कि राज्य में 2.28 करोड़ की आबादी में करीब 17.5 लाख किसान हैं.

पंजाब के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग ने फसल विविधीकरण, पुआल प्रबंधन उपकरण और औद्योगिक उपयोग के माध्यम से प्रतिवर्ष धान का 1.54 करोड़ टन अवशेष प्रबंधन करने का सुझाव दिया है. लेकिन इन सभी चरणों में महत्वपूर्ण निवेश की आवश्यकता होती है.

वहीं, पड़ोसी राज्य हरियाणा के मुख्य सचिव डी.एस. धेसी ने अधिकारियों को फसल अवशेष को जलाने के खिलाफ लोगों के बीच जागरूकता पैदा करने के लिए एक विशेष अभियान चलाने का निर्देश दिया है और फसल अवशेष जलाने वालों पर कड़ी कार्रवाई करने का निर्देश दिया है. धेसी ने कहा कि पहली बार लोगों को फसलों के अवशेष के जलाने से होने वाले नुकसान के बारे में जागरूक बनाने के लिए ग्राम पंचायतों के सरपंचों की सहायता ली जाएगी और उन्हें जवाबदेह बनाया जाएगा.

11 October 2017

नई दिल्लीः केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने कहा कि देश में सस्ते खाद्य तेलों के भारी आयात पर अंकुश लगाने और तिलहन उत्पादक किसानों को उनकी उपज का ज्यादा मोल दिलाने के लिए सरकार अध्ययन करेगी। गडकरी ने सोयाबीन प्रोसेसर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सोपा) के एक कार्यक्रम में प्रसंस्करण उद्योग के प्रतिनिधियों से चर्चा के बाद संवाददाताओं से कहा, फिलहाल हमें देश की खपत का करीब 70 टन खाद्य तेल आयात करना पड़ता है। सस्ते खाद्य तेलों के आयात में लगातार बढ़ौतरी हो रही है। इससे एक ओर देश के किसानों को तिलहनों की सही कीमत नहीं मिल रही है, दूसरी ओर घरेलू प्रसंस्करण उद्योग को भी नुकसान हो रहा है।’’

MSP से भी नीचे बेचनी पड़ी फसल

उन्होंने कहा, हमारी सरकार की नीति है कि उपभोक्ताओं को सही कीमत पर खाद्य तेल मिलें। इसके साथ ही, तिलहन उत्पादक किसानों के हितों की भी रक्षा हो। इसलिए सरकार जरुर अध्ययन करेगी कि खाद्य तेलों पर कितना आयात शुल्क बढ़ाया जाना चाहिए, जिससे देश के किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (एम.एस.पी.) से ज्यादा भाव मिले। गौरतलब है कि बीते खरीफ सत्र के दौरान भाव गिरने से किसानों को सोयाबीन की फसल सरकार के तय न्यूनतम समर्थन मूल्य (एम.एस.पी.) से भी नीचे बेचनी पड़ी थी। इसके बाद परंपरागत रूप से सोयाबीन उगाने वाले ज्यादातर किसानों ने उपज के बेहतर भावों की आशा में मौजूदा खरीफ सत्र में तुअर (अरहर), मूंग और उड़द जैसी दलहनी फसलों की बुवाई की है।

नए बीज विकसित होने चाहिए

केंद्रीय मंत्री ने यह भी कहा कि देश में सोयाबीन की प्रति हेक्टेयर उत्पादकता बढ़ाने के लिए नए बीज विकसित होने चाहिए और इस दिशा में विशेष अनुसंधान किया जाना चाहिए। गडकरी ने सोयाबीन प्रसंस्करण उद्योग से अनुरोध किया कि उच्च मात्रा में प्रोटीनयुक्त सोया खली (सोयाबीन का तेल निकाल लिए जाने के बाद बचने वाला उत्पाद) के इस्तेमाल से खासकर आदिवासी इलाकों के लिए पोषाहार बनाया जाए। उन्होंने कहा, विशेषकर आदिवासी इलाकों में कुपोषण के कारण हजारों बच्चे मर जाते हैं। इसलिए सोया खली से इन इलाकों के लिए उच्च प्रोटीनयुक्त पोषाहार बनाया जाने चाहिए।

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By: Krishi Jagran