विश्व की जलवायु में लगातार हो रहे बदलावों के चलते कृषि विज्ञानी खाद्यान्ना उत्पादन पर इसके संभावित बुरे असर को लेकर चिंतित हैं। उनकी चिंता वाजिब भी है क्योंकि शोध में पता चला है कि पचास साल बाद भूजल स्तर और नीचे रहेगा, मिट्टी अधिक शुष्क होगी और फसलों पर बेमौसम बारिश की मार भी पड़ेगी। इन स्थितियों में आज की फसलों से तो उत्पादन मुश्किल होगा। नई परिस्थितियों के बावजूद बीज भरपूर फसल दें, इसके प्रयास ग्वालियर में कृषि विज्ञानियों ने शुरू कर दिए हैं।
राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय परिसर में एक विशेष अध्ययनशाला तैयार की गई है। इसमें तापमान, आर्द्रता की स्थितियां कृत्रिम रूप से निर्मित की जाती हैं। पचास साल बाद के संभावित मौसम की स्थितियां बनाकर प्रयोग शुरू किया गया है। इससे यह फायदा होगा कि पांच दशक बाद के मौसम के अनुसार कौन सी फसल उगाई जा सकेगी, उनके बीजों का चयन कर उन्हें अभी से विकसित किया जा सकेगा। विश्वविद्यालय के बायोटेक्नोलॉजी विभाग में बीजों का जींस बैंक भी बनाया गया है।
यही नहीं, लगातार बढ़ती जनसंख्या के कारण कृषि भूमि लगातार कम होती जा रही है इसलिए विज्ञानियों से अपेक्षा है कि कम से कम कृषि भूमि पर अधिक से अधिक फसल उत्पादन के तरीके खोजें। इन्हीं चुनौतियां का हल खोजने के लिए अध्ययनशाला बनाई गई है। इसमें ओपन टॉप चैंबर, रेनआउट शेल्टर और अन्य उपकरणों के माध्यम से गर्मी, सर्दी और बारिश की कृत्रिम परिस्थितियां बनाई जाती हैं। फसलों पर कार्बन डायऑक्साइड का प्रभाव जानने का इंतजाम भी किया गया है।
कुलपति डॉ. एसके राव बताते हैं कि अध्ययनशाला तकनीक और परिसर के मामले में काफी उन्नात है। इसका मकसद भविष्य की फसलों के बीजों का स्वरूप तय करना है। बीज तैयार करके फसल के लिए उपलब्ध करवाने में 10 से 15 वर्ष का समय लगता है इसलिए इसकी तैयारी अभी से की जा रही है। अभी शुरुआत है, जल्द ही इसके परिणाम भी सामने आएंगे।
विज्ञानियों का अनुमान पानी की होगी कमी
भूजल में गिरावट आ रही है। वर्षा चक्र में भी परिवर्तन देखने को मिल रहा है। अनायास बारिश से फसलों को नुकसान होता है। इन सब स्थितियों को देखते हुए अनुमान लगाया जा रहा है कि अगले पचास वर्ष में भूजल में और कमी होगी। बारिश भी अनियमित होगी इसलिए भविष्य के बीज कुछ इस तरह से तैयार किए जा रहे हैं कि जो कम पानी में उगेंगे और असमय बारिश का प्रभाव भी झेल सकेंगे। उनमें कीटों का प्रकोप न हो, इस पर भी अध्ययन किया जा रहा है। प्रमुख फसलों गेहूं, बाजरा, सरसों, सोयाबीन व दलहन पर यह शोध चल रहा है।
बीज के जींस (वंशाणु) सहेजे जाएंगे
परिसर में ही स्थित कृषि महाविद्यालय के बायोटेक्नोलॉजी केंद्र में बीजों का जींस (वंशाणु) बैंक बनाया गया है। जिसमें माइनस 85 डिग्री तापमान तक बीज के जींस रखने की व्यवस्था की गई है। कृत्रिम स्थितियों में जो बीज तैयार होंगे उनके जींस निकालकर आने वाले वक्त के लिए रखे जाएंगे ताकि जरूरत पड़ने पर उनका उपयोग किया जा सके। केंद्र के अध्यक्ष डॉ. मनोज त्रिपाठी कहते हैं कि मौसम के अनुसार पौधा अपने आप को अनुकूल बनाता है। हर पांच वर्ष में आवश्यकता के हिसाब से नई प्रजाति विकसित होती है। आने वाले समय के लिए प्रजातियां विकसित कर रहे हैं। पानी की संभावित कमी को देखते हुए ऐसी प्रजातियां तैयार की जा रही है, जो कम पानी में बेहतर उत्पादन दे सकें।
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स्रोत: Nai Dunia