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राजा राम जाखड़

(बागबानी, घृतकुमारी)

राजस्थान के भविष्यवादी किसान, जो घीकवार की खेती से पारंपरिक खेती में परिवर्तन ला रहे हैं

बेशक, राजस्थान आज भी पारंपरिक खेती वाले ढंगों के लिए जाना जाता है और यहां की मुख्यफसलें बाजरा, ग्वार और ज्वार हैं। बहुत सारे किसान तरक्की कर रहे हैं, पर आज भी बहुत किसान ऐसे हैं, जो अपनी पारंपरिक खेती की रूढ़ीवादी सोच से बाहर निकलकर कुछ करने की कोशिश कर रहे हैं और खेतीबाड़ी के क्षेत्र में बदलाव ला रहे हैं।

राजस्थान की धरती पर राजा राम सिंह जी जन्मे और पले बढ़े हैं। उन्होंने बी एस सी एग्रीकल्चर में ग्रेजुएशन की और उन्होंने सरकारी नौकरी छोड़ दी, ताकि वे खेती के प्रति अपने जुनून को पूरा कर सकें। उन्होंने मौके का फायदा लेना और उससे लाभ कमाना भी सीखा। आज वे राजस्थान में घीकवार के सफल किसान हैं, जो अपनी उपज के मंडीकरण के लिए किसी पर भी निर्भर नहीं हैं, क्योंकि उनकी उपज केवल खेत से ही खप्तकारों को बेची जाती है।

राजा राम जाखड़ जी का परिवार बचपन से ही खेतीबाड़ी से जुड़ा है और उन्होंने अपने बचपन से ही अपने परिवार के सभी सदस्यों को खेती करते देखा। पर 1980 में उन्होंने डी ए वी कॉलेज संघरिया (राजस्थान) से बी एस सी एग्रीकल्चर की डिग्री पूरी की और उन्हें एक अलग पेशे में नौकरी (सैंट्रल स्टेट फार्म, सूरतगढ़ में सुपरवाइज़र) का मौका मिला। पर वे 3-4 महीनों से ज्यादा, वहां काम नहीं कर सके क्योंकि उनकी इस काम में दिलचस्पी नहीं थी और उन्होंने घर वापिस आकर पिता प्रधान व्यवसाय -जो कि खेती था, इसे अपनाने का फैसला किया।

उन्होंने अपने बुज़ुर्गों वाले ढंग से ही खेती करनी शुरू की, पर इसमें कुछ विशेष लाभ नहीं मिल रहा था। धीरे-धीरे उनके परिवार की रोज़ी रोटी चलनी भी मुश्किल हो रही थी, क्योंकि उनका मुनाफा केवल गुज़ारे योग्य ही था। पर उस समय उन्होंने पतंजली ब्रांड और इसके एलोवेरा उत्पादों के बारे में सुना। उन्हें यह भी सुनने को मिला कि इन उत्पादों को बनाने के लिए पतंजली में एलोवेरा की बहुत मात्रा में उपज की जरूरत है। इसलिए इस मौके का फायदा उठाते हुए उन्होंने केवल 15000 रूपये के निवेश से 1 एकड़ एलोवेरा की खेती Babie Densis नाम की किस्म से शुरू की।

इन सब के चलते, एक बार तो उनका परिवार भी उनके विरूद्ध हो गया, क्योंकि वे जो भी काम कर रहे थे, उस पर परिवार को कोई यकीन नहीं था और उस समय अपने क्षेत्र (जिला गंगानगर) में एलोवेरा की खेती करने वाले वे पहले किसान थे। पर राजा राम जी ने अपना मन नहीं बदला, क्योंकि उन्हें खुद पर यकीन था। एक वर्ष बाद, आखिर जब एलोवेरा के पौधे पककर तैयार हो गए, कुछ खरीददारों ने उनकी उपज खरीदने के लिए संपर्क किया और तब से ही वे अपनी उपज फार्म से ही बेचते हैं, वो भी बिना कोई प्रयत्न किए। वे एक वर्ष में एक एकड़ से एक लाख रूपये तक का मुनाफा लेते हैं।

जैसे कि राजस्थान में एलोवेरा के उत्पाद तैयार करने वाली बहुत फैक्टरियां हैं, इसलिए हर 50 दिन बाद खरीददारों के द्वारा दो ट्रक उनके फार्म पर भेजे जाते हैं, और उनका काम केवल मजदूरों की मदद से ट्रकों को लोड करना होता है। अब उन्होंने अधिक मुनाफा लेने के लिए अंतर फसली विधि द्वारा एलोवेरा के खेतों में मोरिंगा पौधे भी लगाए हैं।

इस समय वे खुशी खुशी अपने परिवार (पत्नी, तीन बेटियां और एक पुत्र) के साथ रह रहे हैं और पूरे फार्म का काम काज खुद ही संभालते हैं। उनके पास खेती के लिए एक ट्यूबवैल और ट्रैक्टर है। वे अपने खेतों में एलोवेरा, मोरिंगा और कपास की खेती के लिए केवल जैविक खेती तकनीक ही अपनाते हैं। इन तीन फसलों के अलावा वे भिंडी, तोरी, खीरा, लौकी, ग्वार की फलियां और अन्य मौसमी सब्जियों की खेती घरेलू उपयोग के लिए करते हैं।

राजा राम जाखड़ जी ने अंतर फली के लिए मोरिंगा के पौधों को इस लिए चुना, क्योंकि इसमें बहुत सारे चिकित्सक गुण होते हैं और इसे बहुत कम देखभाल करके भी आसानी से उगाया जा सकता है। अब उन्होंने पौधे बेचने का काम भी शुरू किया है और जो किसान एलोवेरा की खेती के लिए ट्रेनिंग लेना चाहते हैं, उन्हें मुफ्त सिखलाई भी देते हैं। राजा राम जी अपने भविष्यवादी विचारों से खेतीबाड़ी के क्षेत्र में एक नई क्रांति लाना चाहते हैं। अभी तक कभी भी उन्होंने सरकार या किसी अन्य स्त्रोत से मदद नहीं ली और जो कुछ किया खुद से ही किया। वे भविष्य में अपने काम को और बढ़ाना चाहते हैं और अन्य किसानों को भी एलोवेरा की खेती के प्रति जागरूक करवाना चाहते हैं।


किसानों के लिए संदेश
“कुछ भी नया करने से पहले, किसानों को मंडीकरण के बारे में सोचना चाहिए ओर फिर खेती करनी चाहिए। किसानों को बहुत सारे मौके मिलते रहते हैं, बस उन्हें इन मौकों का फायदा उठाना चाहिए और इन्हें खोना नहीं चाहिए।”