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पिंदरपाल सिंह

(घुड़सवारी)

शौंक को पूरा करने के लिए छोड़ी वकालत और हुए कामयाब

शुरू से ही किसी न किसी का कोई शौंक होता है, जिसमें पंजाब का नाम पहले नंबर पर आता है। पंजाब में यदि कोई व्यक्ति किसी नाम के कारण जाना जाता है तो वह उसके शौंक के कारण जाना जाता है। जिसे घोड़े पालना और उसकी सवारी।

आजकल घोड़े पालने का शौंक कम हो गया है लेकिन यदि 50 साल पहले की बात करे तो हर एक परिवार ने घोड़े रखे होते थे, क्योंकि उस समय आने जाने का एक मात्रा साधन यदि होते थे। पर आजकल इनकी जगह कम हो गई है पर फिर भी कई जगह इस शौंक को लोग पाल रहे हैं।

आज जिनकी बात करने जा रहे है वह पेशे से तो वकील है और ऑस्ट्रेलिया में स्थायी रूप से रहने वाले निवासी है। पर शौंक को पूरा करने के लिए पिंदरपाल सिंह जी बाहर से आ गए और पंजाब में आकर अपने परिवार के साथ घोड़े का काम करना शुरू किया और इसे बड़े स्तर पर ले गए।

साल 1994 में वह वकालत की पढ़ाई कर रहे थे पर पढ़ाई के दौरान उनके मन में कभी भी घोड़े का व्यापार करने के बारे में नहीं आया, पर वह कुछ न कुछ करना चाहते थे, इसलिए वह घर आकर फार्म में चले जाते हैं और पूरा समय वहां ही व्यतीत करते थे। एक दिन जब वह कॉलेज से घर जा रहे थे तो उनके एक मित्र ने कहा कि तुम घोड़े का व्यापार करने के बारे में क्यों नहीं सोचता, घोड़े भी हैं।

उसके बाद उन्होंने घोड़े का व्यापार करना शुरू कर दिया पर उन्हें कुछ नहीं मुनाफा नहीं हो रहा था फिर उन्होंने सोचा कि मेले में जाना चाहिए ताकि घोड़े का व्यापार सही से चल पड़े और इसके साथ वकालत की पढ़ाई भी पूरी करते रहे।

पढ़ाई करते समय उनका अधिक समय पढ़ाई में निकल जाता था, और मुनाफा भी नहीं हो रहा था क्योंकि मेले में जाने के लिए बहुत समय पहले तैयार करनी पड़ती थी पर पढ़ाई के कारण वह तैयार सही से नहीं हो रही थी। 3 साल के बाद पढ़ाई पूरी होने के बाद उन्होंने अपना पूरा समय फार्म में बिताना शुरू किया और हर काम खुद करने लगे और जब भी कोई मेला आता तो उसमें पूरी तैयार के साथ जाते। घोड़े बेचते और उन्हें कभी भी घोड़े बेचने में मुश्किल नहीं आई क्योंकि शुरू से ही घर में घोड़े होने के कारण उन्हें घोड़े के बारे में पूरी जानकारी थी जिससे ग्राहक खुश होकर घोड़े खरीद लेते थे।

इस दौरान पिंदरपाल जी ने ऑस्ट्रेलिया के पक्के निवासी होने के फॉर्म भी भर दिए थे और साल 2000 तक घोड़े कोई खरीदने बेचने की तरफ ओर अधिक ध्यान देने लगे। हर मेले में जाने लगे। थोड़े समय बाद वह ऑस्ट्रेलिया के पक्के निवासी भी बन गए पर वह बाहर नहीं जाना चाहते थे क्योंकि उन्हें फार्म में रहना अच्छा लगता था, और परिवार के अकेले बेटे होने के कारण परिवार को छोड़ कर नहीं जाना चाहते थे। पर 2002 में उन्हें जाना पड़ा और वहां जाकर काम करने लगे , 2 साल निकल गए पर उनका मन पंजाब में ही रहता था, पर 2004 में ऑस्ट्रेलिया छोड़ कर अपने गांव चक्क शेरेवाला, जिला मुक्तसर, पंजाब में आ गए।

पंजाब आकर उन्हें सुकून मिला और खुश हुए और फिर से घोड़े के व्यापार करने के बारे में सोचा और काम शुरू कर दिया, पर इस बार उन्होंने सोचा क्यों न घोड़े की ब्रीडिंग करनी शुरू की जाए और बच्चे बेचना शुरू किया जिससे कम समय में बहुत मुनाफा हुआ।

काम करते करते पता ही नहीं चला 2004 से 2007 कब आ गया और उन्होंने अपने शौंक को पूरा भी किया और कामयाब भी हो गए। उन्हें यह शौंक अपने दादी पड़दादे से रहा था, क्योंकि वह घोड़सवारी किया करते थे जिन्हे देखकर उनके मन भी घोड़े पलने का काम करने के बारे में बिचार आया और बड़े होकर उन्होंने यह काम करना शुरू किया और कामयाब भी हुए।

इसके साथ-साथ वह खेती भी करते है और खुद ही खेती करते हैं।

भविष्य की योजना

पिंदरपाल जी घोड़े की ब्रीडिंग तो कर ही रहे हैं उसके साथ साथ अब घोड़े को खेल मुकाबले के लिए तैयार करके उसमें भाग भी लेना चाहते हैं।

संदेश

शौंक को कभी न मरने दें बल्कि उसे पूरा करने के बारे में सोचे ताकि आप अपने शौंक के साथ ही कामयाब हो।