वर्तमान समय में धान की पराली जलाने से सबसे ज्यादा प्रदूषण होता है। किसान जाने अनजाने में धान की पराली जलाते रहते हैं। जिससे न केवल प्रदूषण बढ़ता है बल्कि जमीन की उर्वरा शक्ति भी कम होती है। कृषि विशेषज्ञ बार बार किसानों को पराली न जलाने के प्रति किसानों को आगाह करते रहते हैं। परंतु किसान अपने खेतों में पराली जला ही देते हैं।
किसान राकेश कुमार पिछले तीन साल से धान की पराली में ही गेहूं की बिजाई करके पानी का खर्च तो बचा ही रहा है, वहीं प्रदूषण भी नहीं फैलता व अन्य किसानों ने भी राकेश का अनुसरण कर धान की पराली में ही ड्रिल हैपी सिडर मशीन द्वारा बिजाई में जुट गए हैं।
गांव डिंग के किसान राकेश कुमार बुरड़क ने बताया कि धान की फसल का उत्पादन तो अच्छा हो जाता है। लेकिन सबसे बड़ी समस्या धान की बची पराली की होती है। किसानों के सामने हर वर्ष पराली को खत्म करना जरूरी हो जाता है। पराली को जलाने से प्रदूषण भी ज्यादा होता है और जमीन की उर्वरा शक्ति भी कम होती है।
इसके अलावा सरकार के फरमान का भी डर लगा रहता है। इसी को ध्यान में रखते हुए वह कोई ऐसी विधि की तलाश में रहता था कि पराली को दुरुपयोग होने की बजाय सदुपयोग हो। करीब तीन साल पहले कृषि विकास अधिकारी ने उन्हें धान की पराली को जलाने की बजाय पराली में ही हैपी सीडर मशीन से गेहूं की बिजाई करने की सलाह दी।
उसने कृषि अधिकारी की बात को मानते हुए अपनी 7 एकड़ जमीन में धान की फसल कंबाइन से निकलवाकर पराली में ही हैपी सीडर मशीन से गेहूं की बिजाई कर दी। एक बार तो अटपटा सा लगा, लेकिन बाद में गेहूं की उपज भी बहुत बढ़िया हुई।
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स्रोत: अमर उजाला