पेड़ में पके आम खाने के शौकीन हैं तो कृषि विवि के बगीचे में आएं

June 12 2019

अगर आप पेड़ में पके आम खाने के शौकीन हैं तो इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के बगीचे में आएं। हां, यह जरूर है कि फल बाजार में उपलब्ध विभिन्न तरह के आम की कीमतों की अपेक्षा यहां थोड़ा अधिक कीमत चुकानी पड़ेगी, लेकिन स्वाद काफी मिलेगा। यहां किसी केमिकल का उपयोग किए बगैर पेड़ में पके रसीले दशहरी, लंगड़ा, आम्रपाली आम बेचे जा रहे हैं। सुबह से शाम तक बगीचे की रखवाली व आम बेच रहे दुकानदार विनोद सोनकर का कहना है कि आज के समय में पेड़ में पके आम मिलना बड़ी बात है। अधिक मुनाफा कमाने के चक्कर में बाजार में समय से पहले पकाया हुआ आम बेचा जा रहा है। हालांकि दुकानदारों की मजबूरी भी है, पेड़ में आम पकने का इंतजार करेंगे तो उतना दाम नहीं मिल पाएगा।

मांग पूरी नहीं कर पाते हैं

दिन-रात आम के बगीचे में रह रहे संतोष सोनकर का कहना है कि इस बार आंधी की वजह से बहुत आम पेड़ से गिर गए हैं। इससे बेहतर पैदावार होने के बाद भी अधिक मुनाफा नहीं कमा पाए। पूरा परिवार इसी कार्य से जुड़ा है। अब कुदरत की मार को कौन रोक सकता है, इसलिए मजबूरी में आम के दाम थोड़े अधिक हैं। फिर भी पेड़ में पके आम खाने के शौकीन लोग पैसे का मुंह नहीं देखते। आम खाने के लिए वे बगीचे में आ रहे हैं।

ग्राहकों को हापुस का है इंतजार

राजधानी से सटे गांव के बगीचों के आम बाजार में पहुंच गए हैं, जिससे छत्तीसगढ़ी लोकल दशहरी, लंगड़ा, हापुस आम बाजार में मिलने शुरू हो गए हैं। हालांकि बाम्बे हापुस आम के पसंदीदा ग्राहकों को अभी इंतजार करना होगा, क्योंकि मई के अंत तक व बरसात के बाद ही सही तरह से फल बाजार में बाम्बे हापुस आम की आवक बढ़ेगी। बाकी स्थानीय आम की आवक बरकरार है, जिसे ग्राहकों के लिए 60 से 75 रुपये प्रति किलो दुकानदार बेच रहे हैं। इसी तरह से विवि के बगीचों में तैयार आम भी बेचे जा रहे हैं, जिसकी कीमत भी लगभग इसी तरह से है।

बेमौसम से प्रभावित हुआ आम

इस वर्ष आम की बौर बहुत अच्छी थी, लेकिन बेमौसम बरसात से पूरे बौर झर गए, जिससे बेहतर फसल की आशा में बैठे किसान और व्यापारियों के चेहरे में मायूसी रही। कृषि जानकारों का मानना था कि पांच साल बाद आम में इतने बौर आए थे, लेकिन 30 फीसद बौर झर गए। ज्ञात हो कि राज्य में सबसे ज्यादा छत्तीसगढ़ी देसी, दशहरी, लंगड़ा, बांबे ग्रीन और आम्रपाली आम की ज्यादा फसल ली जाती है। इसकी मांग स्थानीय के अलावा दूसरे राज्यों में भी है।

तोड़ना नहीं है, सिर्फ गिरे आम बेचेंगे

इस साल बसंत ऋतु के आगमन के साथ ही आम की देसी व अन्य प्रजातियों के पेड़ों पर अच्छे बौर आ गए थे। प्रदेश में जशपुर, महासमुंद, राजनांदगांव, कोरबा, रायगढ़ जिले में आम की फसल अधिक होती है। बेमौसम बारिश आम की फसल के लिए वरदान साबित नहीं हुई। इससे काफी पेड़ के बौर आम तैयार होने से पहले ही खराब हो गए। वहीं कृषि वैज्ञानिक डॉ. जीएल शर्मा का कहना है कि विवि के बगीचे में काफी बौर आए थे। इससे उम्मीद थी कि बेहतर आम की पैदावार होगी। बगीचे के आम बाजार की अपेक्षा बहुत बेहतर है, क्योंकि सख्त आदेश है कि आम को तोड़ना नहीं । पकने के बाद जो जमीन पर गिरे, उसी को बेचा सकता है।

 

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स्रोत: नई दुनिया