कम सिंचाई में मक्का दे रहा किसानों को अच्छा फायदा

April 24 2019

कांकेर जिले के दुर्गूकोंदल ब्लॉक में खरीफ सीजन फसल धान के बाद सबसे अधिक मक्का की होने लगी है। अंचल के किसानों का रुझाान धान के साथ ही अब मक्के की ओर बढ़ रहा है। मक्के के लिए धान की अपेक्षा कम पानी लगता है। अंचल में पानी की कमी और देखरेख का झंझट नहीं होने से इसका रकबा लगातार क्षेत्र में बढ़ते जा रहा है। कम लालत, कम सिंचाई और आमदानी अधिक होने से किसान मक्के की खेती करने लगे हैं।

इसके अलावा अंचल के किसान साग-सब्जी, फूलों की खेती के प्रति भी रुझान लेने लगे हैं। ग्राम पुडोमिचगांव के किसान कलिता आचला, रामचंद जैन ने बताया कि कई किसानों की बाड़ी व खेतों में मक्का की फसल देखी, इससे उन्होंने मक्का लगाने की ठानी। किसानों से खेती की जानकारी लेकर चार एकड़ में फसल लगाई थी जो कि अब लहलहाने लगी है। कलिता आचला ने बताया कि मक्के की फसल में मेहनत व देखरेख की अधिक आवश्यकता नहीं होती है। इससे आमदानी भी अधिक होती है। जबकि धान की फसल में बोआई से लेकर कटाई तक काफी पानी व देखरेख की जरूरत अधिक होती है। ग्राम मेड़ो, सुखई, कोदापाखा, बांगाचार, गुलालबोडी, आमागढ़, ईरागांव, दमकसा, पचांगी सहित अन्य ग्रामों में हाईब्रिड मक्का बीज का उपयोग करने लगे हैं। वहीं राज्य शासन द्वारा मक्का का समर्थन मूल्य भी बढ़ाया गया, जिससे क्षेत्र में मक्का का उत्पादन बढ़ा है।

मक्के की खेती के लिए जलवायु और भूमि

मक्का उष्ण एवं आर्द्र जलवायु की फसल है। इसके लिए ऐसी भूमि जहां पानी का निकास अच्छा हो, उपयुक्त होती है।

मक्का बोआई का समय

खरीफ- जून से जुलाई तक

रबी- अक्टूबर से नवंबर तक

मक्का बोआई का तरीका

वर्षा प्रारंभ होने पर मक्का बोना चाहिए। सिंचाई साधन हो तो 10 से 15 दिन पूर्व ही बोनी करनी चाहिए, इससे पैदावार में वृद्धि होती है। बीज की बोआई मेड़ के किनारे व ऊपर से 3-5 सेमी की गहराई पर करनी चाहिए। बोआई के एक माह बाद मिट्टी चढ़ाने का कार्य करना चाहिए। बोआई किसी भी विधी से की जाए परंतु खेत में पौधों की संख्या 55-8- हजार प्रति हेक्टेयर रखना चाहिए।

 

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स्रोत: नई दुनिया