कम पानी में अधिक फसल देने वाला बीज बैंक बनाने वाली राहीबाई स्कूल नहीं गईं लेकिन वैज्ञानिकों ने इनके ज्ञान का लोहा माना

January 28 2020

राही बाई के उपलब्धियों के सफर की कहानी 20 साल पहले शुरु हुई थी। जब उनका पोता जहरीली सब्जी खाने के बाद बीमार पड़ा था। उस पल राही बाई ने जैविक खेती की शुरुआत करने का मन बनाया। बात सिर्फ खेती तक ही सीमित नहीं रही बीजों का ऐसा बैंक तैयार किया जो किसानों के लिए बेहद मुफीद साबित हुआ। 56 साल ही राही बाई सोम पोपरे आज पारिवारिक ज्ञान और प्राचीन परंपराओं की तकनीकों के साथ जैविक खेती को एक नया आयाम दे रही हैं। 

सीड मदर के नाम से हैं फेमस

राही बाई कभी स्कूल नहीं गईं लेकिन खेती के क्षेत्र में इनके ज्ञान का लोहा वैज्ञानिक भी मानते हैं। इन्हें सीड मदर के नाम से जाना जाता है। राही बाई ने अपनी मेहनत से बीजों का बैंक तैयार किया है। यहां के बीज कम सिंचाई में भी किसानों को अच्छी फसल देते हैं। राही महाराष्ट्र के अहमद नगर के छोटे सो गांव की रहने वाली हैं। जो एक आदिवासी परिवार से ताल्लुक रखती हैं। बीजों को सहेजने का काम पुस्तैनी था और राही ने उसे आगे बढ़ाया और इतिहास रच दिया।

महाराष्ट्र और गुजरात में बीजों की मांग

वह कहती हैं, 12 साल की उम्र में शादी हुई। कभी स्कूल नहीं जा पाई लेकिन खेती के विज्ञान ने मुझे हमेशा आकर्षित किया। 20 साल पहले मैंने बीजों को इकट्ठा करना शुरु किया था। इन्हें सहेजा और बेटे को हायब्रिड की जगह इन्हीं बीजों से खेती की सलाह दी। सफर शुरु हुआ, धीरे-धीरे महिलाएं इसमें जुड़ती गईं। बीजों का बैंक बनने पर पड़ोस के गांव ने सम्मानित किया। आज परंपरागत बीजों की मांग महाराष्ट्र और गुजरात में अधिक है। मैं और दूसरी महिलाएं मिलकर परंपरागत तौर पर मिट्टी की मदद से बीजों को सहेजने का काम कर रही हैं। 

3500 किसानों संग मिलकर कर रहीं खेती

राहीबाई ने 50 एकड़ से भी ज्यादा भूमि को संरक्षित किया है जिसमें 17 से अधिक फसले उगाई जा रही हैं। वह 3500 किसानों के साथ मिलकर काम भी कर रही हैं और उन्हें तकनीक से फसलों की पैदावार बढ़ाने के गुर भी सिखा रही हैं। इसके लिए राष्ट्रपति के हाथों इन्हें नारी शक्ति सम्मान भी मिल चुका है और बीबीसी भी 100 शक्तिशाली महिलाओं में शामिल कर चुका है।

परंपरागत बीजों को फर्टिलाइजर या पेस्टिसाइट की जरूरत नहीं

राही कहती हैं कि जहरीले खानपान के कारण हम लोग आसानी से बीमारियों का शिकार हो रहे हैं। हम अपनी जरूरत के मुताबिक, फसले उगा सकते हैं। इसलिए जो मेरे पास आता है उसे मैं परंपरागत खेती के गुर सिखाती हूं। लोग कहते हैं परंपरागत बीज से फसल की अधिक उपज नहीं ली जा सकती लेकिन मैं कहती हूं यह कम से कम जहरीली फसल की अधिक पैदावार से बेहतर है। हमारे बीजों को किसी तरह के कोई फर्टिलाइजर या पेस्टिसाइट की जरूरत नहीं है।


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स्रोत: दैनिक भास्कर