एक बरसात में भी बेहतर पैदावार देगी वर्षा अलसी , रायपुर में कृषि वैज्ञानिकों ने की तैयार

June 17 2019

कम बरसात वाले क्षेत्र के किसानों के लिए इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर के कृषि वैज्ञानिकों ने वर्षा अलसी को इजाद किया है। यह प्रजाति छह राज्यों में उत्पादन के लिहाज से बेहतर है।

विवि के आनुवंशिकी एवं पादप प्रजनन विभाग रायपुर में संचालित अखिल भारतीय समन्वित अलसी परियोजना ने वर्षा अलसी की किस्म विकसित की है, जो कम वर्षा आधारित पद्धति में अधिक उत्पादन देने में सक्षम है।

यह किस्म सीको10, किरण के संकरण से तैयार की गई है, जिसे केंद्रीय बीज उप समिति, भारत सरकार के माध्यम से प्रदेश के अलावा छह राज्यों के अनुमोदित किया गया है। इसी तरह से वर्षा आधारित एवं उतेरा बोनी में बेहतर उत्पादन देने वाली ये नवीन किस्में विकसित की गईं। नवीन विकसित दोनों किस्में व्यावसायिक खेती के लिए उपयुक्त हैं।

अलसी का रकबा वर्षा आधारित

जैसा कि विदित है कि छत्तीसगढ़ में अलसी का रकबा वर्षा आधारित पद्धति में भी है। इस पद्धति में कम से कम उत्पादन लागत आती है। इसी उद्देश्य को देखते हुए कुलपति डॉ.एसके पाटिल के निर्देशन एवं संचालक अनुसंधान सेवाएं एवं डॉ. एके सरावगी, विभागाध्यक्ष, आनुवंशिकी एवं पादप प्रजनन विभाग के सफल निर्देशन में इस प्रजाति को विकसित किया गया है। यह किस्म क्षेत्र के अलसी उत्पादक किसानों के लिए आय बढ़ाने में लाभदायक होगी।

केंद्रीय बीज समिति ने किया अनुमोदन

केंद्रीय बीज उप समिति, भारत सरकार के माध्यम से वर्षा अलसी (आरएलसी-148) को देश के छह राज्यों में राजस्थान, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, उत्तरप्रदेश एवं कर्नाटक के वर्षा आधारित खेती के लिए सिफारिश की गई हैं। इस किस्म का औसत उत्पादन 1033 किलोग्राम प्रति हेक्टयर पाया गया है, जो कि राष्ट्रीय तुलनात्मक किस्म टी-397 से 15.1 फीसद, जोनल तुलनात्मक किस्म कोटा बारानी अलसी-4 से 22.6 फीसद ज्यादा उपज देती हैं। नवीन विकसित किस्म वर्षा अलसी में तेल की मात्रा 35.7 फीसद हैं, प्रति हेक्टयर तेल का उत्पादन 367.6 किलोग्राम पाया गया है, जो कि राष्ट्रीय एवं जोनल तुलनात्मक किस्मों से क्रमश 4.49 फीसद एवं 4.2 फीसद ज्यादा तेल की मात्रा एवं तेल का उत्पादन पाया गया है।

उतेरा अलसी-दो बेहतर पैदावार

उतेरा अलसी-2 (आरएलसी-153) अलसी की उतेरा बोनी हेतु भ्ाारतवर्ष के सात राज्यों के लिए अनुमोदित किया गया है। इसी तरह से दूसरी जो किस्म विकसित की हैं, जो उतेरा पद्धति में विपुल उत्पादन देने में सक्षम है। नवीन विकसित किस्म उतेरा अलसी-दो का औसत उपज उत्पादन 519 किलोग्राम प्रति हेक्टयर है, जो कि राष्ट्रीय तुलनात्मक किस्म टी-397 (477 किलोग्राम प्रति हेक्टयर ) से क्रमश 16.10 फीसद ज्यादा उपज देती है।

इस किस्म में तेल की मात्रा 34.8 फीसद है। प्रति हेक्टयर तेल का उत्पादन 181.1 किलोग्राम है। इस किस्म को सात राज्यों के अनुमोदित किया गया। इस किस्म को विकसित करने में डॉ. नंदन मेहता, प्रमुख वैज्ञानिक (प्रजनक), डॉ.केपी वर्मा, प्रमुख वैज्ञानिक (पौध रोग विशेषज्ञ), डॉ. बीपी कतलम, वैज्ञानिक (सस्य वैज्ञानिक), एवं डॉ. संजय द्विवेदी, वैज्ञानिक (सस्य विज्ञान) की प्रमुख भूमिका रही।

 

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स्रोत: नई दुनिया