IFFCO मार्च से बनाएगा सस्ता नैनो यूरिया, 10 फीसदी कम होगी कीमत

December 05 2019

इफको (इंडियन फारमर्स फर्टिलाइजर कोआपरेटिव लिमिटेड) ने हाल ही में नैनो- टेक्नोलॉजी आधारित उत्पाद ‘नैनो जिंक और नैनो कॉपर’ को ऑन-फील्ड परीक्षणों के लिए लॉन्च किया था. अब मार्च 2020 से नई नैनो प्रौद्योगिकी आधारित नाइट्रोजन उर्वरक का उत्पादन शुरू कर देगा जिसके बाजार में उपलब्ध हो जाने से एक बोरी यूरिया की जगह पर सिर्फ एक बोतल नैनो उत्पाद से काम चल जाएगा. हालांकि इसका मूल्य परम्परागत यूरिया के एक बैग की तुलना में दस प्रतिशत कम होगा

240 रुपए होगी एक बोतल यूरिया की कीमत

खबरों के मुताबिक, एक बोतल नैनो यूरिया का कीमत लगभग 240 रुपए होगा. हालांकि इसका मूल्य परंपरागत यूरिया के एक बैग की तुलना में 10 प्रतिशत कम होगा. यानी अगर किसान भाई नैनो उत्पाद का इस्तेमाल करेंगे तो लागत के साथ– साथ धन की भी बचत होगी. कंपनी के प्रबंध निदेशक उदय शंकर अवस्थी ने मंगलवार को बताया कि गुजरात के अहमदाबाद स्थित कलोल कारखाने में नाइट्रोजन आधारित उर्वरक बनाने का कार्य किया जाएगा. यह पूरी तरह से मेक इन इंडिया के तहत होगा जिससे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के 2022 तक किसानों की आय दोगुना करने के लक्ष्य को पूरा करने में मदद मिलेगी. कंपनी की योजना सालाना ढाई करोड़ बोतल उत्पादन की है.

नए यूरिया से बढ़ेगा फसलों का उत्पादन

अवस्थी ने आगे बताया कि 500 मिलीलीटर की बोतल नैनो यूरिया 45 किलो यूरिया के बराबर होगा. इस नए उत्पाद से देश में 50 प्रतिशत तक यूरिया की खपत कम होगी और फसलों का उत्पादन भी बढ़ेगा. गौरतलब है कि देश में मौजूदा वक्त में 3 करोड़ टन यूरिया की खपत है और किसान भी फसल की पैदावार बढ़ाने के लिए इसका अधिक इस्तेमाल करते हैं. ऐसे में अब इस नए उर्वरक के प्रयोग से अब उसके खर्च में कमी आएगी. अभी प्रति एकड़ 100 किलोग्राम यूरिया की जरुरत होती है. इस नए मामले में प्रति एकड़ एक बोतल नैनो उर्वरक या एक बैग यूरिया की जरुरत पड़ेगी.

11 हजार स्थानों पर हो रहा है प्रयोग

बता दे कि इफको, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (Indian Council of Agricultural Research ) की सहायता से देश में 11000 जगहों पर प्रयोग कर रही है. इसके अलावा 5000 अन्य स्थानों पर भी इसकी जांच की जा रही है. नैनो नाइट्रोजन उर्वरक का हरेक जलवायु क्षेत्र और मिट्टी में जांच की जाएगी. इस नई तकनीक से उर्वरक पर सब्सिडी आधी रह जाएगी.

 

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स्रोत: कृषि जागरण