बिना अन्नदाता को खुश किए आसान नहीं होगा लोकसभा 2019 का रण

December 10 2018

हाल ही में राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में देशभर से किसान जमा हुए थे। किसानों ने दिल्ली में रैली निकाली। अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति (एआईकेएससीसी) के बैनर तले 29-30 नवंबर को किसान मार्च का आयोजन किया गया। किसानों ने 15 सूत्री मांगों के जरिए अपनी डिमांड सरकार के सामने रखी। किसान संगठन के किसानों ने 23 दिनों में चार लंबे मार्च के जरिए 18,000 किलोमीटर से भी ज्यादा की पद यात्रा कर सरकार तक अपनी मांगें पहुंचाने की कोशिश की। किसानों की एकता देखकर राजनीतिक दलों ने भी इसे भुनाने की कोशिश की। विपक्षी नेता किसानों के मंच पर पहुंच गए। केंद्र सरकार के खिलाफ उन्होंने किसानों के मंच पर महागठबंधन की एकजुटता को फिर से दिखाने की कोशिश की। ऐसे में बड़ा सवाल है कि क्या 2019 की लोकसभा चुनाव में क्या किसान वोटिंग ब्लॉक हैं। अगर विधानसभा चुनावों की बात करें तो राजनीतिक दलों ने इस मुद्दे को भुनाने की कोशिश की है।

राजस्थान विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस पार्टी ने किसानों को कर्ज माफी का तोहफा देने का ऐलान किया। कांग्रेस पार्टी ने ऐलान किया है कि अगर प्रदेश में उनकी सरकार बनती है तो 10 दिनों के भीतर किसानों के कर्ज माफ कर दिए जाएंगे। इतना ही नहीं कांग्रेस पार्टी ने किसानों को आसानी से और कम ब्याज पर कर्ज मुहैया करवाने की बात कही। वहीं मोदी सरकार भी किसानों को हल्के में नहीं ले रही है। केंद्र सरकार ने किसानों की आय बढ़ाने का भरोसा दिया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने साल 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने का भरोसा दिया है। वहीं कृषि लोन की रकम बढ़ाने का भी ऐलान किया है।

हर पार्टी ने किसानों के मुद्दों को अपने मेनिफेस्टो में प्रमुखता से जगह दी है। राजनीतिक दलों के लिए किसान एक बड़ा वोटिंग बैंक है। 54 साल पहले दिल्ली के रामलीला मैदान में लाल बहादुर शास्त्री ने जय जवान-जय किसान का नारा दिया था। 54 साल बाद एक बार फिर से देशभर के किसान दिल्ली पहुंचे, लेकिन इस बार वो अपनी आवाज सरकार तक पहुंचाने आए थे।

न्यूज 18 की रिपोर्ट के मुताबिक हैदराबाद स्थित एनजीओ ने मध्य प्रदेस विधानसभा तुनाव से पहले एक रिपोर्ट तैयार की, जिसमें बताया गया कि 1970 से पहले मध्य प्रदेश की राजनीति में जाति-धर्म सबसे अहम मुद्दा होता था, लेकिन अब स्थिति बदल गई। अब किसान सबके लिए अहम वोट बैंक है। किसान वोटिंग का एक मुख्य गुट हैं, जिसे सब अपने में भुनाने की कोशिश कर रहे हैं। 

अगर किसानों की बात करें तो ये भी अलग-अलग कैटेगिरी में है। कुछ खेतीहर मजदूर हैं तो कुछ भूमिहीन किसान। कुछ गरीब किसान हैं तो कुछ अमीर किसान। 1990 के दौर में किसान यूनियंस जब गतिशील हुई तो उसने भी जाति-धर्म को परखना शुरू कर दिया। नतीजा यहां भी वर्चस्व की स्थिति पैदा हो गई। किसानों में जाति-धर्म के साथ-साथ फसलों के आधार पर विभाजन होने लगा। जैसा गन्ना किसान, आलू किसान। इनके बीच भी काफी कुछ असमानता है। यूपी में गन्ना किसानों की स्थिति बंगाल के आलू किसानों से बिल्कुल अलग है। किसान यूनियंस कहते हैं भले ही हम बंटे हो, लेकिन हमारी स्थिति एक है। हमें मंदिर नहीं हमें कर्ज से मुक्ति चाहिए। हमें समर्थन मूल्य में बढ़ोतरी चाहिए।

हर पार्टी दावा कर रही है कि उन्होंने किसानों के लिए ये किया-वो किया। आरएसएस से संबंधित भारतीय किसान संघ ने भी किसान आंदोलन से पीछे चल रही राजनीति का बहिष्कार किया। जानकारों के मुताबिक किसानों के मसले को लेकर कुछ परिदृश्य हैं,जिसे ध्यान में रखा जाना चाहिए।

 

Source: One India