ग्रीष्म फसल में धान उत्पादन को प्रतिबंधित करने के बाद जिला कृषि विभाग ने अपने अनुमानित लक्ष्य निर्धारण में धान को शामिल किया है। विभाग से तैयार किए गए क्षेत्राच्छादन पत्र में रबी फसल 2018-19 के लिए 150 हेक्टेयर का लक्ष्य रखा गया है। एक किलो ग्रीष्म धान उत्पादन में 180 लीटर पानी व्यय होता है, इस आशय से कृषि संचालनालय से प्रतिबंध लगाया गया है। गर्मी में पानी की किल्लत को देखते हुए किसानों को कम पानी में बेहतर फसल गेहूं, चना, सरसों जैसे फसल को बढ़ावा देने का प्रावधान है। अफसरों की अनदेखी की चलते किसानों को रबी फसल योजना का सही लाभ नहीं मिल रहा है।
फसल उत्पादन को लेकर बनाए जाने वाले प्लानिंग में शासन के नियमों की उपेक्षा की जा रही है। जिले में पिछले दो साल से रबी फसल उत्पादन में धान फसल को प्रतिबंधित कर दिया गया है। वहज यह है एक किलो धान उत्पादन में 180 लीटर पानी खर्च होता है। गर्मी के समय वैसे भी पानी की किल्लत होती है। किसानों ने बोर लगाकर खेती शुरू कर दी है। ऐसे में गर्मी में भूमिगत जल स्त्रोत का उपयोग धान के लिए किए जाने से अधिक मात्रा में पानी का अपव्यय होता है। फसल की किसानों को वह कीमत नहीं मिली पाती जैसे दीगर फसलों की होती है। ठंड का मौसम गेहूं बुआई के लिए बेहतर होता है। धान की अपेक्षा प्रति किलो गेहूं उत्पादन में 30 से 40 लीटर पानी का व्यय होता है। इसके अलावा अल्प समय में होने वाली सब्जी व दलहन तिलहन के फसल जैसे सरसों, तिवड़ा, मूंगफली उत्पादन को बढ़ावा देने का प्रावधान है। कृषि भूमि में ऐसे फसलों के लिए अपार संभावना होने के बाद भी किसानों को जानकारी विभाग से नहीं दी जा रही है। खरीफ फसल में किसानों को सूखे का सामना करना पड़ा है, जिसकी भरपाई के लिए किसान दीगर फसल लगाकर करना चाहते हैं।
तकनीकी खेती से वंचित किसान
जिले के किसान आज भी तकनीकी खेती से नहीं जुड़ पाए हैं। रबी हो या खरीफ दोनों ही सीजन में किसानों को पारंपरिक तौर तरीके से खेती करते हुए देखा जा रहा है। विभाग से संबंध कृषि विस्तार अधिकारी गांवों में न रह कर शहर से आना-आना करते हैं। समय पर अधिकारियों से संपर्क नहीं होने से किसानों को खेती संबंधी जानकारी नहीं मिल रही है। पᆬील्ड स्तर के अपᆬसरों पर जिला स्तर के अपᆬसरों का नियंत्रण नहीं होने से मनमानी बनी हुई है। तकनीकी खेती परीक्षण के नाम पर केवल औपचारिकता का ही निर्वहन हो रहा है।खाली रहता है 65 हजार हेक्टेयर भूमि
खरीफ फसल में जहां खेती का रकबा 98 हजार हेक्टेयर रहता है, वहीं ग्रीष्म फसल के दौरान 33 हजार हेक्टेयर में ही दीगर फसल की बुआई होती है। इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि पूरे ग्रीष्म माह भर 65 हजार हेक्टेयर भूमि खाली रहता है। बुआई की गई फसल में जिस तादाद में भूमि जल स्त्रोत का उपयोग किए जाने गर्मी में पानी की कमी से पर्याप्त उत्पादन से किसानों को वंचित होना पड़ता है। किसानों को वर्षा जल संरक्षण के लिए प्रशिक्षित नहीं किए जाने से योजनाओं का सही लाभ नहीं मिल रहा है।
सिंचित क्षेत्र का नहीं बढ़ा दायरा
जिले में कृषि योजनाओं के फसल होने की मुख्य वजह सिंचाई सुविधा का अभाव है। हसदेव नदी पर बांगो व दर्री डैम के बाद भी जिले के किसानों को सही लाभ नहीं मिल पाया है। दर्री बरॉज से निकले दायीं व बायीं तट नहर से कोरबा व करतला के उथले खेतों तक पानी पहुंचाने के लिए लिफ्ट इरीगेशन कई साल से प्रस्तावित है, जो अब तक अस्तित्व में नहीं है। इसी तरह माइनर के लिए निर्मित जलाशयों में जल भराव नहीं होने से किसानों को सिंचाई का लाभ नहीं मिल पा रहा है।
कृषि विभाग का अनुमानित प्लान
फसल लक्ष्य हेक्टेयरप्रगति हेक्टेयर
गेहूं-900-91
मक्का-500-12
धान -150-0
दलहन-8500-963
तिलहन-7200-1187
सब्जी अन्य-16300-1049
ग्रीष्म फसल में धान उत्पादन प्रतिबंधित हैं। इस वर्ष कुछ स्थानों में सूखे की शिकायत आई है, जिसे देखते हुए विभाग से 150 हेक्टेयर का लक्ष्य निर्धारण केवल उन किसानों के लिए है, जहां जल स्त्रोत की उपलब्धता है। पानी की उपयोगिता सुनिश्चित करने के लिए किसान वहां फसल ले सकते हैं।
- एमजी श्यामकुंवर, उपसंचालक कृषि
Source : Nayi Dunia