जिस नक्सली इलाके में मोदी सेना भेजने की हिम्मत नहीं कर पाते, उस इलाके में एक व्यक्ति बैंक की नौकरी छोड़ 22 हजार किसानों के साथ कर रहा है खेती, 70 औषधियों की खेती करने वाले अकेले शख्स

May 17 2018

छत्तीसगढ़  का नाम आते ही आपके जेहन में नक्सल प्रभावित पिछड़े राज्य की तस्वीर उभर आती होगी और अगर छत्तीसगढ़ के बस्तर (bastar naxalite area) जिले का नाम लें तो निश्चित तौर पर आपको सिर्फ और सिर्फ नक्सलियों की तस्वीर दिखने लगेगी। लेकिन किसानख़बर की इस विशोष रिपोर्ट को पढ़ने के बाद आप यह सोचने पर मजबूर हो जायेंगे कि भला कैसे कोई एक किसान नक्सलियों के बीच रहकर करोड़ों की कमाई वाली खेती कर पा रहा है।

दरसअल, बस्तर वो इलाका है जहां 1996 से लेकर 2018 के बीच 12 से 15 हजार लोग नक्सिलयों के साथ हिंसा में मारे जा चुके हैं। लेकिन डॉ. रामनरेश त्रिपाठी वो शख्स हैं जिन्होंने इस इलाके में ही खेती की खातिर बैंक की नौकरी छोड़ दी।

सिर्फ इतना ही नहीं, डॉ. त्रिपाठी वहां रहकर न सिर्फ खेतीबाड़ी कर रहे हैं है बल्कि वहां के सैकड़ों आदिवासी परिवार को रोज़गार भी दे रहे हैं। आपको जानकर हैरत होगी कि रोजगार के अलावा 20 हजार से ज्यादा किसानों की वो सीधे तौर पर फ्री ट्रेनिंग, बीज आदि देकर मदद कर रहे हैं।

डॉ. रामनरेश के मुताबिक उन्होंने शुरुआत विदेशी सब्जियों की खेती से की। विदेशी सब्ज़ियां ज़्यादातर बड़े होटलों में बिकती हैं। लेकिन इन सब्जियों को खराब होने से बचाने के लिए कोई अच्छी सुविधा नहीं हैं, जिससे काफी नुकसान हुआ। तब उन्होंने जड़ी-बूटियों की खेती करने के बारे में सोचा और सबसे पहले 25 एकड़ जमीन पर सफेद मूसली की खेती की। इससे काफी मुनाफा हुआ। उसके बाद उन्होंने अपनी खेती का दायरा बढ़ाया और ज्यादा कृषि भूमि पर सफेद मूसली के अलावा स्टीविया, अश्वगंधा, लेमन ग्रास, कालिहारी और सर्पगंधा जैसी जड़ी-बूटियों की भी खेती शुरू कर दी।

कमाई और मार्केटिंग की परेशानी का समाधान

धान, गेहूं, दलहन जैसी फसलों में 100 रुपए से ज्यादा किसी की कीमत नहीं मिलती है, लेकिन औषधीय फसलों में यह कमाई कई गुना ज्यादा होती है। सबसे अच्छी बात यह है कि इसमें पौधे का 80% भाग बिक जाता है। लेकिन इसकी मार्केटिंग में किसानों को परेशानी होती है।

लेकिन डॉ. त्रिपाठी ने इसका भी इलाज खोज निकाला। उन्होंने किसानों का एक बड़ा संगठन बनाया, जिससे अब हजारों किसान जुड़े चुके हैं। फिर उन्होंने सेंट्रल हर्बल एग्रो मार्केटिंग फेडरेशन की स्थापना की। इससे देशभर के 22 हजार किसान जुड़े हैं। इसी फेडरेशन के जरीए ही वो अब कंपनियों को अपनी फसलें बेचते हैं।

करीब 70 प्रकार की जड़ी-बूटियों की खेती करने वाले डा. त्रिपाठी को खेती में उनके योगदान के लिए बैंक ऑफ स्कॉटलैंड उन्हें 2012 में अर्थ हीरो के पुरस्कार से नवाज चुका है। वहीं भारत सरकार ने उनको राष्ट्रीय कृषि रत्न पुरस्कार से सम्मानित किया है।

 

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Source: Kisan Khabar