किसान हो तो औरंगाबाद के बृजकिशोर मेहता जैसा, खुद तो हुए ही अमीर, साथ में 45 किसान परिवारों को भी किया मालामाल

May 17 2018

आज हम एक ऐसे किसान के बारे में आपको बताएंगे जिसने बिहार की जमीन पर स्ट्रॉबेरी की खेती ( strawberry farming in bihar) करके अपनी जिंदगी के साथ-साथ कई किसानों की जिंदगी सवार दी। औरंगाबाद के इस किसान के हौसले और जुनून ने पूरे गांव की तकदीर बदल दी। आज औरंगाबाद के चिल्हकी बिगहा गांव के किसान स्ट्रॉबेरी की खेती करके मालामाल हो रहे हैं। इसका श्रेय औरंगाबाद के कुटुंबा प्रखंद के चिल्हकी बिगहा गांव के बृजकिशोर मेहता को जाता है।

बृजकिशोर मेहता ने 2013 में पहली बार स्टोबेरी के सात पौधे लगाकर इसकी शुरुआत की थी। धीरे-धीरे इस खेती से अच्छा मुनाफा होते देख इसे बड़े पैमाने पर उगाने लगे। बृजकिशोर की इस सफलता को देखते हुए गांव के अन्य किसान भी स्ट्रॉबेरी की खेती करने लगे। आज चिल्हकी बिगहा गांव के अलावा आसपास के लगभग 25 किसान लगभग 44 बीघे में इसकी खेती कर रहे हैं।

कितनी होती है कमाई

स्ट्रॉबेरी की खेती में प्रति बीघा लगभग 1 से 2 लाख रुपये की लागत आती है यानी एक एकड़ में 5 से 10 लाख रूपए। अगर कमाई की बात करें तो इसमें लगभग 4 से 5 लाख रुपये की कमाई प्रति बीघा होती यानी एक एकड़ में 20 से 25 लाख रुपये की कमाई।इतनी लागत होने का सबसे बड़ा कारण है पौधों को महंगा होना क्योंकि इनको बाहर से मंगवाया जाता है।

कैसे पहाड़ों की खेती बिहार के मैदानी इलाके में शुरु हुई

बृजकिशोर मेहता को औरंगबाद में खेती करने की ख्याल तब आया जब वह अपने बेटे से मिलने हरियाणा गए। उन्होंने वहां देखा कि हरियाणा की जलवायु और जमीन पर स्ट्रॉबेरी की खेती की जा रही है। तब उन्होंने सोचा की जब हरियाणा की जलवायु औऱ जमीन पर स्ट्रॉबेरी की खेती हो सकती है तो बिहार में क्यों नहीं? बिहार और हरियाणा की जलवायु लगभग एक समान तो है।

धीरे-धीरे यहां के मुख्य व्यवसाय में उभर रही है स्टॉबेरी की खेती

बृजकिशोर मेहता जब साल 2013 में हिसार से वे स्ट्रॉबेरी की खेती देखकर आए थे तब उन्होंने सात स्ट्रॉबेरी के पौधों लगाकर खेती की शुरूआत की। धीरे धीरे स्ट्रॉबेरी की खेती मे अच्छा मुनाफा देख बृजकिशोर ने बड़े स्तर पर खेती की शुरूआत की। अब धीरे-धीरे चिल्हकी विगहा गांव के अन्य किसान भी इस खेती में अपना हाथ आजमाने लगे हैं। आज यह खेती यहां के किसानों का मुख्य व्यवसाय के रूप में उधर चुकी है। चिल्हकी बिगहा गांव के अलावा आस-पास के गांव ही नही बल्कि झारखंड भी इसकी खेती करने लगी है।

इटली से भी मंगाए जाने लगे हैं पौधे

जब बिहार में स्टॉबेरी की खेती की शुरूआत की गई तब स्ट्रॉबेरी लगाने के लिए हरियाणा से पौधे मंगाए जाते थे लेकिन अब यहां के किसान इटली से भी स्ट्रॉबेरी के पौधे मंगाने लगे हैं। यहां के किसानों के मुताबिक इटली के पौधों की वैरायटी अच्छी होती है। इससे लगने वाले स्ट्रॉबेरी काफी मीठे और बड़े होते हैं और बाजार में इसकी मांग भी काफी होती है।

क्या है सबसे बड़ी समस्या और उसका समाधान

स्टॉबेरी की खेती के लिए सबसे बड़ी समस्या मार्केटिंग और स्टोरेज की है। यहां के किसान स्ट्रॉबेरी को स्टोर खुद नहीं कर सकते और न ही सरकार ने इसके लिए कोई कदम उठाया है। लेकिन बिहार के किसानों ने इसका भी समाधान निकाल लिया है। बिहार के किसान अब कोलकाता और बाकी के बड़े शहरों में जाकर इसकी मार्केटिंग भी कर रहे हैं जिससे उनकी पूरी फसल अच्छे दामों पर बिक जाती है।

दिल्ली, कोलकाता जैसे बड़े शहरो में होती है सप्लाई

औरंगाबाद के स्ट़ॉबेरी की सप्लाय अब केवल बिहार ही नही बल्कि कोलकाता, दिल्ली जैसे शहरों में भी होने लगे हैं।
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