धान उत्पादन में आगे रहने वाले मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों को केंद्र सरकार ने चेतावनी दी है कि यदि उन्होंने धान के समर्थन मूल्य पर अलग से बोनस देने का प्रावधान किया तो वह उनसे धान की खरीद नहीं करेगी। केंद्रीय खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति मंत्रालय ने साफ कर दिया कि राज्यों के बोनस देने से स्थानीय बाजार बिगड़ता है और ऐसी स्थिति में सरकार पर खरीद का दबाव बढ़ता है।
केंद्र के पास धान का बंपर स्टाक है इसलिए वह धान नहीं खरीदेगा। मप्र में फिलहाल धान खरीद को लेकर पंजीयन हो रहा है। गौरतलब है कि गेहूं और धान की खरीद पर केंद्र द्वारा तय किए गए न्यूनतम समर्थन मूल्य पर राज्य अपनी तरफ से बोनस/प्रोत्साहन राशि का ऐलान करते हैं। यह राजनीतिक मुद्दा भी बनता है। मप्र में गेहूं पर 160 रु. प्रति क्विंटल प्रोत्साहन राशि पिछले साल देने का ऐलान किया गया था।
भंडारण और उपयोग की समस्या
विभिन्न् राज्यों को भेजे पत्र में खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्री राम विलास पासवान ने कहा कि मौजूदा समय में केंद्रीय पूल में पहले से ही स्टाक से काफी अधिक चावल उपलब्ध है। केंद्र सरकार ने 2019-20 के लिए धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य 1815 कामन और ग्रेड ए का 1835 रुपए तय किया है। धान उत्पादन वाले राज्यों को पासवान ने कहा कि इस साल धान की काफी अच्छी खरीद होने की उम्मीद है। पासवान ने कहा कि अनुमानित खरीद के कारण चावल का भंडारण और उसके परिसमापन में गंभीर समस्या उत्पन्न् होने की संभावना है। विश्व व्यापार संगठन के कृषि समझौते के मुताबिक इस सार्वजनिक भंडार से निर्यात भी नहीं किया जा सकता है।
खरीददार विचलित होते हैं
पासवान ने कहा कि राज्य सरकारों द्वारा बोनस की घोषणा करने से बाजार विकृत होता है और बाजार में मौजूद अतिरिक्त अनाज का मूल्य बढ़ता है। ऊंचे मूल्य की वजह से प्राइवेट खरीदार विचलित होते हैं। सरकारी एजेंसियों को भी अतिरिक्त खरीदी करनी पड़ती है। केंद्रीय मंत्री ने अपने पत्र ये स्मरण भी कराया कि राज्य सरकारों को बोनस की घोषणा करने से रोकने के लिए ही एमओयू में यह प्रावधान भी जोड़ा गया है कि ऐसे हालात में केंद्र सरकार चावल नहीं खरीदेगी। जिन राज्यों ने बोनस की घोषणा के लिए केंद्र सरकार से छूट दिए जाने का आग्रह किया था, पासवान ने इससे साफ इंकार कर दिया।
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स्रोत: नई दुनिया