भारत में सुपारी की खेती

Arecanut palm आम चबायी जाने वाली गिरी का स्त्रोत है, जिसे सामान्य तौर पर बीटल नट या सुपारी के नाम से जाना जाता है। सुपारी को मिट्टी की व्यापक किस्मों में उगाया जा सकता है, यह फसल जैविक सामग्री से भरपूर चिकनी दोमट मिट्टी में अच्छी तरह उगती है। इसके लिए मिट्टी की पी एच 7—8 होनी चाहिए।

किस्में —
Swarnamangala(VTL-12):- इस किस्म के वृक्ष अर्ध लंबे से लंबे होते हैं और छोटी पोरों के साथ मजबूत तना होता है। फल का रंग संतरी से गहरा पीला होता है और इसका आकार अंडाकार से गोल और मोटा होता है।

Vittal Areca Hybrid- 1 (VTLAH-1):- यह छोटे कद की किस्म है और छतरी के आकार की होती है और इसका तना बहुत सख्त होता है। इस किस्म के फलों का आकार अंडाकार होता है और ये पीले से संतरी रंग के होते हैं।

दूसरे राज्यों की किस्में

Mangala, Sumangala, Mohitnagar, Hirehalli dwarf.

खेत की तैयारी और बिजाई — मिट्टी के भुरभुरा होने तक खेत की दो से तीन बार जोताई करें और खेत को नदीन मुक्त रखें। इस फसल की बिजाई के लिए सितंबर से अक्तूबर और मई से जून के महीने की सिफारिश की गई है। सुपारी की बिजाई के लिए 2.7 x 2.7 मीटर का फासला उपयुक्त होता है। 90 x 90 x 90 सैं.मी. आकार के गड्ढे खोदें जाते हैं। इसे बीजों के द्वारा काश्त किया जाता है।

बीज का उपचार — जड़ों के अच्छे विकास के लिए, गड्ढों में रोपाई से पहले, नए पौधों को IBA@1000ppm और क्लोरपाइरीफॉस 5 मि.ली. प्रति लीटर पानी से दो से पांच मिनट के लिए डुबोएं।

अंतर फसली — काली मिर्च, कॉफी, वैनिला, इलायची, लौंग और सिटरस आदि फसलें अंतर फसली के तौर पर ली जा सकती हैं।

खादें — 10 से 20 किलो अच्छी तरह से गली हुई रूड़ी की खाद 5 या इससे अधिक वर्षों के पौधों में डाली जानी चाहिए। नाइट्रोजन 100 ग्राम, फास्फोरस 40 ग्राम, पोटाश 140 ग्राम प्रति पौधे में डाली जानी चाहिए। जो पौधे 5 वर्ष से कम के हों, उनमें उपर्युक्त खादों की आधी मात्रा पड़ेगी। ये खादें जनवरी से फरवरी माह में डालें।

खरपतवार नियंत्रण और सिंचाई — एक वर्ष में दो से तीन बार कुदाली द्वारा गोडाई की जाती है। जहां पर ज़मीन ढलानदार होती है वहां मिट्टी के कटाव को रोकने के लिए उसे सीढ़ीनुमा बनाया जाता है। नवंबर — फरवरी और मार्च — मई महीने के दौरान सप्ताह में एक बार सिंचाई की जानी चाहिए।

तुड़ाई — बिजाई के 5 वर्षों के बाद फल निकलना शुरू होते हैं। इसकी तुड़ाई गिरियों के तीन चौथाई पके जाने पर की जाती है।

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