potato crop

आलुओं की खेती में सिंचाई का सही प्रबंध

आलू पंजाब के कई जिलों में उगायी जाने वाली फसल है। इसकी अधिक पैदावार लेने के लिए कई संशोधित किस्में, बीज, खाद और पानी का प्रबंध बहुत जरूरी है। इस फसल की सबसे पहले और आवश्यक पानी की जरूरत होती है। और पानी का कम या ज्यादा मात्रा में मिलना, दोनों फसल की उपज कम करते हैं। पानी का अधिक मिलना या कम मिलना पौधों के विकास को रोक देता है। इसलिए आलुओं की फसल को सही मात्रा में पानी देना बहुत ज़रूरी होता है। कई बार सिंचाई के समय पानी मेंड़ों में खड़ा रहता है। जिसका फसल पर बुरा असर पड़ता है।

ऐसी स्थिति में ऑक्सीजन की कमी होने के कारण फसल की जड़ों को सांस लेने में दिक्कत आती है और फसल सूखना शुरू कर देती है। इसके अलावा जड़ों में फंगस लगनी भी शुरू हो जाती है। ज्यादा नमी के कारण फसल पर बीमारी का हमला ज्यादा होता है। सिंचाई का सही प्रबंध करके आलुाओं की फसल से अधिक उपज ली जा सकती है। आलुओं में सिंचाई दो तरीकों से की जा सकती है

खालियों के द्वारा — यह एक रवायती ढंग है जिसमें कई बार आवश्यकता से अधिक पानी भी लग जाता है। जिससे फसल का नुकसान भी हो जाता है। आलुओं को पहली सिंचाई बिजाई के तुरंत बाद करें जिससे फसल सही तरीके से उगती है। आलुओं को हल्की सिंचाई करे। इस विधि से सिंचाई करने का यह नुकसान होता है कि कई बार पानी मेंड़ों पर ही बह जाता है। जिससे मिट्टी सख्त हो जाती है और फसल की वृद्धि पर बुरा असर पड़ता है। फसल की अधिक उपज के लिए 7—8 सिंचाइयां करें। यदि खेत में बिजाई के तुरंत बाद धान की पराली बिछा दी जाए तो पानी की बचत हो जाती है।

तुपका सिंचाई विधि — आवश्यकता से अधिक सिंचाई फसल को नुकसान देती है इससे पौधे की जड़ें गल जाती हैं। फसल को पानी उतना ही दें जितनी फसल को ज़रूरत है। आलुओं में सिंचाई के लिए सबसे बढ़िया तरीका तुपका सिंचाई है। जिससे फसल की उपज भी बढ़िया निकलती है और 38 प्रतिशत पानी की बचत भी होती है। इस विधि से पौधे को आवश्यकतानुसार बूंद—बूंद पानी सीधा जड़ों में दिया जाता है। इस विधि से सिंचाई दो दिनों के फासले पर की जाती है।

इस विधि से सिंचाई करने के फायदे निम्नलिखित हैं:
• पानी सीधा पौधों की जड़ों में जाता है। जिससे पानी का सही प्रयोग होता है।
• इससे नदीन भी खेत में कम उगते हैं।
• फसल की उपज में वृद्धि होती है।
• आलुओं को बीमारी कम पड़ती है जिस कारण स्प्रे का प्रयोग कम होता है।
• इस विधि से फर्टीगेशन करने से खादों की भी बचत होती है।
• इस विधि से आलुओं की पुटाई का समय भी अगेता हो जाता है।

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